RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
पत्र पूरा होते ही रैना खुशी से मानो नाचने लगी, उसने मांगे खां से कहा—“बैठो भइया, तुम मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशखबरी लेकर आए हो—मुंह मीठा किए बगैर मैं तुम्हें यहां से नहीं जाने दूंगी।”
“इसकी कोई जरूरत...”
मांगे खां का वाक्य अधूरा ही रह गया, क्योंकि रैना बिना सुने ही मुड़ी, नाचती-सी वह दौड़ती हुई अन्दर की तरफ चली गई। विकास, धनुषटंकार और रघुनाथ अवाक-से खड़े थे।
काफी कोशिश के बाद भी वे अपनी हैरत पर काबू नहीं कर पा रहे थे।
“बैठो मांगे प्यारे, तुमने तो तोते ही उड़ा दिए हैं हमारे!” विजय ने अपनी ही धुन में मांगे खां से कहा, विजय को अजीब-सी नजरों से देखता हुआ मांगे खां एक कुर्सी पर बैठ गया।
तब तक रैना एक तश्तरी में ढेर सारी मिठाई लिए वहां पहुंच गई थी, सबके इनकार करने पर भी रैना ने सभी का मुंह मीठा कराया और जब कुर्सी पर बैठी तो विजय ने कहा—“ तुम्हें बहुत खुशी हो रही है रैना?”
“खुशी की बात नहीं है क्या, मेरे भइया की शादी है।”
विजय केवल बुरा-सा मुंह बनाकर रह गया, जबकि रैना खिलखिलाकर हंस पड़ी—“एक बात मानोगे भइया?”
“कहो मेरी प्यारी बहना!”
“अब तो तुम भी कोई अच्छी-सी लड़की देखकर शादी कर ही लो।”
भोला और उदास चेहरा बनाकर विजय कह उठा—“कोई कन्या मिले तो सही।”
“लड़कियां तो बहुत मिल जाएंगी, अपनी आशा ही है। तुम बस एक बार ‘हां’ कर दो।”
“ग...गोगियापाशा, क्या बात कर रही हो रैना बहन! तुमने शायद उसके पंजे नहीं देखे हैं, चमगादड़ के पंजे तो तुमने देखे होंगे-हां, बिल्कुल चमगादड़ जैसे पंजे हैं आशा के—एक बार जहां चिपकती है, वहीं चिपकी रहती है। एक बार वह मेरी गरदन पर चिपक गई—मैंने चिमटे से पकड़कर छुड़ाया और दूर फेंका, अगले दिन वह मेरी नाक से चिपक...!”
“ब...बस-बस विजय भइया, पेट में दर्द होने लगा है।” बुरी तरह हंसती हुई रैना बड़ी मुश्किल से यह वाक्य कह सकी, उसे देखता हुआ विजय मूर्खों की तरह पलकें झपकाने लगा।
“मैं चलता हूं।” कहने के साथ मांगे खां ने उठने का उपक्रम किया ही था कि विजय ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला—“हमें अकेला छोड़कर अभी कहां जाते हो सैंया, पकड़ लो हमारी बैंया।
“ज...जी?”
“जी हां!” विजय भटियारिन की तरह हाथ नचाकर बोला—“हमारा कार्ड तो दे जाओ।”
“ज...जी, आपका कार्ड—क्या नाम है आपका?”
“विजय दी ग्रेट!”
“क्षमा कीजिए, मेरे पास आपके नाम का कोई कार्ड नहीं है।”
“अजी जाओ भी मियां!” विजय ने अपने ही अन्दाज में हाथ नचाकर कहा—“तुम क्या हमारी साली लगती हो जो हमसे मजाक कर रही हो, भला ऐसा भी कभी हो सकता है कि हमारा लूमड़ शादी करे, राजनगर में कार्ड भी बंटवाए और हमें भूल जाए?”
“मैं मजाक नहीं कर रहा हूं मिस्टर विजय, ये सच है कि मेरे पास आपके नाम का कोई कार्ड नहीं है।”
विकास ने पूछा—“क्या तुम हमें सभी कार्ड दिखा सकते हो?”
“क्यों नहीं!” कहने के साथ ही मांगे खां ने सारे कार्ड जेब से निकाल लिए। विकास और उसके साथ ही रैना, रघुनाथ, मोन्टो और विजय ने भी सभी लिफाफे देखे, लिफाफे ब्लैक ब्वॉय, अशरफ, विक्रम, नाहर, परवेज आशा और ठाकुर साहब के नाम थे—सचमुच विजय के नाम का कोई लिफाफा उनमें नहीं था। केवल एक क्षण के लिए विजय के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“इनमें तो सचमुच आपका कार्ड नहीं है गुरु!”
“लगता है अपना लूमड़ साला हमें भूल गया है।” कहने के साथ ही विजय ने सारे कार्ड मांगे खां को दिए और कहा— “तुम जाओ प्यारे मांगे खां, कहीं दूसरी जगह से मांगकर खाओ।”
मांगे खां सभी कार्ड अपनी जेब में रखकर वहां से चला गया।
सोचती-सी रैना बुदबुदा उठी—“अजीब बात है—अलफांसे भइया ने राजनगर में सभी को कार्ड भेजे हैं, लेकिन भइया को नहीं। ऐसा तो नहीं माना जा सकता कि वे इन्हें भूल गए होंगे।”
“अभी तुम उस साले लूमड़ को जानती नहीं हो रैना, एक नम्बर का छंटा हुआ है वह—उसने जान-बूझकर यह हरकत की होगा, खैर—पहले हम बाथरूम होकर आते हैं, तब सोचेंगे कि ऐसा उसने क्यों किया है।” कहने के बाद किसी का जवाब सुनने की कोई कोशिश किए बिना वह तेजी से अन्दर चला गया, बाथरूम के स्थान पर सीधा फोन पर पहुंचा—गुप्त भवन के नम्बर डायल किए और सम्बन्ध स्थापित होते ही बोला— “हैलो प्यारे काले लड़के।”
“हैलो सर!” पवन का चौकन्ना स्वर!
“मांगे खां नाम का एक व्यक्ति कुछ ही देर पहले सुपर रघुनाथ की कोठी से निकला है, यहां से वह सीधा शायद हमारे बापूजान की कोठी पर जाएगा, अशरफ से कहो कि वह मांगे खां को कैद कर ले।”
“ओ.के. सर, लेकिन आप बता सकेंगे कि चक्कर क्या है?”
“चक्कर नहीं प्यारे, हमें पूरा घनचक्कर नजर आ रहा है—कुछ ही देर बाद मैं गुप्त भवन पहुंच रहा हूं, वहीं बैठकर बातें करेंगे—हां, तब तक झानझरोखे को उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए।”
“क्या आप मांगे खां का हुलिया बता सकते हैं सर?”
विजय धीमें स्वर में मांगे खां का हुलिया बयान करने लगा।
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