RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
‘वाह लूमड़ बेटे, इस बार अजीब ही चक्कर चलाया है तुमने—तुम हसीन, नाजनीन और सुन्दरता की पुड़िया के साथ जाने कहां बैठे इश्क की पैंतरेबाजी झाड़ रहे होगे और हम यहां तुम्हारे इन्तजार का खट्टा-मीठा गुड़ खा रहे हैं।’ जिस वक्त बुदबुदाकर विजय स्वयं ही से कह रहा था, उस वक्त रात का एक बजा था—होटल की गैलरी में पूरी तरह सन्नाटा व्याप्त था।
हां, छत पर लगे फैन्सी बल्ब का प्रकाश गैलरी में जरूर बिखरा हुआ था।
उसका कमरा सेवन्टी-वन से थोड़ा हटकर, सामने वाली ‘रो’ में था—अपने कमरे की लाइट ऑफ कर रखी थी उसने, दरवाजे का एक किवाड़ बन्द तथा दूसरा खुला छोड़ दिया था।
वह खुले किवाड़ के समीप ही कुर्सी डाले बैठा था।
वह स्वयं अंधेरे में था, जबकि यहां से अलफांसे के उस बन्द कमरे का दरवाजा स्पष्ट चमक रहा था—डिम स्ट्रीट से रेस्तरां के पार्किंग में खड़ी कार लेकर वह पुनः एक सुनसान सड़क पर गया था, कपड़े बदलकर जिस वक्त वह होटल में पहुंचा था, उस वक्त दस बज रहे थे।
हॉल में डिनर लेने के बाद वह अपने कमरे में आ गया था।
तभी से वह यहां बैठा अलफांसे के लौटने का इन्तजार कर रहा था, उसके देखते-ही-देखते इस फ्लोर पर ठहरे अधिकांश यात्री अपने कमरों में बन्द हो चुके थे।
उस वक्त सवा बजा था जब गैलरी में पदचाप गूंजी। विजय सतर्क होकर बैठ गया और फिर गैलरी में गूंजी सीटी पर कोई अंग्रेजी धुन, अगले ही पल गैलरी में उसे अलफांसे नजर आया, सीटी बजाता हुआ वह बहुत ही मस्त, चाबी के छल्ले को उंगली में डाले घुमाता हुआ अपने कमरे के दरवाजे पर ठिठका ।
जिस वक्त वह थोड़ा झुककर लॉक खोल रहा था, उस वक्त विजय बुदबुदाया—“लूट लो लूमड़ प्यारे जिन्दगी के शाही मजे, तुम भी लूट लो, हिन्दी फिल्म के रोमांटिक हीरो से ज्यादा अच्छी एक्टिंग कर रहे हो।”
वह बुदबुदाता ही रह गया, जबकि अलफांसे कमरे के अन्दर चला गया, दरवाजा अन्दर से बोल्ट होने की आवाज सुनते ही विजय अपने कमरे से गैलरी में आ गया।
बिल्ली के समान दबे पांव आगे बढ़ा।
गैलरी में पूरी तरह खामोशी की हुकूमत थी।
दरवाजे के समीप पहुंचकर वह झुका और ‘की होल’ से आंख सटा दी—अन्दर की लाइट ऑन होने की वजह से कमरे का दृश्य साफ नजर आ रहा था—विजय के देखते-ही-देखते उसने कपड़े उतारे, बाथरूम में गया और दो मिनट बाद ही टॉवल से चेहरा और हाथ पोंछता हुआ बेड तक आया—टॉवल उसने उछालकर एक तरफ फेंका और दो तकिए बेड की पुश्त से लगाकर अधलेटी अवस्था में बैठ गया।
विजय लगातार ‘की होल’ से आंख सटाए उसे देख रहा था।
अलफांसे ने साइड ड्राअर खोली, उसमें से एक किताब निकाली—किताब के अन्दर से एक फोटो और फिर किताब को एक तरफ रखने के बाद अलफांसे एकटक उस फोटो को देखने लगा, जिसकी केवल पीठ ही विजय को चमक रही थी—सारी दुनिया से बेखबर अलफांसे सिर्फ और सिर्फ उसी फोटो में खोया हुआ था, इस वक्त अलफांसे के चेहरे पर दीवानगी नाच रही था, चेहरे के कोने-कोने पर दीवानगी के असीमित चिह्न थे—ऐसे, जिन्हें देखकर विजय बुरी करह चौंक पड़ा— दिल में विचार उठा कि—“तुम तो सचमुच काम से गए लगते हो लूमड़ बेटे!”
विजय समझ सकता था कि यह फोटो केवल इर्विन का ही हो सकता है!
उस वक्त तो विजय को अपने सारे ही विचारों का महल टूट-टूटकर बुरी तरह से बिखरता हुआ-सा महसूस हुआ, जब उसने अलफांसे को किसी पागल दीवाने की तरह उस फोटो को चूमते देखा।
फोटो पर चुम्बनों की झड़ी-सी लगा दी थी उसने।
इस क्षण विजय को लगा कि अलफांसे इर्विन के प्रति बहुत ही गम्भीर है, वह सचमुच इर्विन से प्यार करता है और सच्चे दिल से उससे शादी करना चाहता है—विजय को लगा कि वह व्यर्थ ही शक कर रहा है, अलफांसे के शादी के फैसले के पीछे कोई स्कीम, कोई साजिश नहीं है।
“इर्वि!” अलफांसे की बहुत ही धीमी आवाज उसके कानों में पहुंची, पूरी दीवानगी में डूबा वह धीमे स्वर में फोटो से कह रहा था—“ये तुमने मुझे क्या कर दिया है इर्वि—मैं, जैसे मैं ही न रहा—जब तुम पास नहीं होतीं, तब कुछ भी तो अच्छा नहीं लगता-खाना, पहनना, उठना—बैठना-नींद तक नहीं आती मुझे—अपने पिछले जीवन में मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई लड़की इस कदर मेरी कमजोरी बन जाएगी—मेरी इस दीवानगी पर मेरे पुराने साथी हंसेंगे इर्वि-वे कहेंगे कि नहीं, मैं वह अलफांसे नहीं हूं, मगर...मगर मैं क्या करूं—अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता—तुम्हें गंवाकर एक सांस भी तो नहीं ले सकता मैं.....।”
कहने के बाद वह पुनः फोटो को चूमने लगा।
फिर फोटो को उसने अपने सीने पर रखा, उसके ऊपर दोनों हाथ रख लिए और खुली आंखों से कमरे की छत को निहारने लगा—वह सब कुछ देखकर ‘की होल’ से सटी आंख में जमाने-भर की हैरत उभर आई—इसमें शक नहीं कि विजय की हालत बड़ी अजीब हो गई थी।
काफी देर तक अलफांसे उसी पोज में पड़ा रहा, फिर हाथ बढ़ाकर उसने बेड स्विच ऑफ कर दिया—कमरा अंधेरे में डूब गया। अंतिम बार विजय ने फोटो को अलफांसे के सीने पर ही रखे देखा था।
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