RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“लो, नुसरत भाई!”
नुसरत ने हाथ फैलाकर कहा—“लाओ, तुगलक बहन!”
“लो!” तुगलक ने बैल्ट का एक सिरा उसे देते हुए कहा—“बांध लो, लन्दन आ गया है!”
“रहोगे बेटा जामुन की औलाद ही! अबे लन्दन नहीं आया है, बल्कि हमारा विमान लन्दन में आ गया है, अब लैंड करने वाला है!”
“हां, विमान तो बाप का है तेरे!”
“नहीं तो क्या तेरे बाप का है!”
ये थे पाकिस्तान के अजीमोश्शान जासूस!
नुसरत अली और तुगलक खान!
जासूस कम, नमूने ज्यादा—वे हमेशा एक ही लिबास में रहते थे, यह उनका परम्परागत लिबास था, इस वक्त भी वही पहने थे—चूड़ीदार सफेद पायजामा, बन्द गले का घुटनों तक आने वाला काला कोट, सिर पर कलफ से कड़कड़ा रही, चुन्नटदार तिरछी सफेद टोपी—मुंह में पान, आँखों में काजल!
इस लिबास में वे जासूस नहीं, शायर लगते थे।
बातें ऐसी करते थे कि जिनका जवाब नहीं, हरकतें ऐसी कि अपने इन नमूनों से खुदा भी पनाह मांग जाए। बातों से ये जितने बड़े बेवकूफ और हरकत से नमूने नजर आते हैं असल में उससे कई गुना ज्यादा खतरनाक हैं!
बैल्ट बांधते हुए नुसरत ने कहा— “वैसे एक बात तो मानोगे तुगलक भाई?”
“जरूर मानेंगे नुसरत बहन, मगर कौन-सी बात?”
“यही कि हम पाकिस्तान के सबसे बड़े जासूस हैं!”
“बिल्कुल नहीं, एकदम गलत!” तुगलक ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा—“अगर फिर तूने ये बकवास की तो तेरी आंतें फाड़ दूंगा, अबे पाकिस्तान आखिर साला है क्या चीज—पिद्दी न पिद्दी का शोरबा। हम सबसे बड़े जासूस जरूर हैं लेकिन दुनिया के सबसे खतरनाक, बेहद खूंखार और जालिम!”
“तभी तो उस धीवट की शादी में जा रहे हैं!”
“हां, वो साला—खुद को आजाद शेर कहता था। खूबसूरत लौंडिया की एक ही अड़ंगी में हो गया न चित्त—उल्लू का पट्ठा, कहता था कि मैं ये कर दूंगा—वो कर दूंगा—हो गया टांय-टाय फिस्स!”
“अच्छा ही हुआ!”
“अजी क्या खाक अच्छा हुआ?”
“मानो तुगलक भाई, मेरी बात मानो—उसके लिए अच्छा ही हुआ, जरा सोचो, कान में घासलेट डालकर सोचो कि अगर यह न होता तो वह हो जाता!”
“क्या हो जाता!”
“अगर उसे वह लौंडिया चित्त न करती तो हम पट्ट कर देते यानी अपने हाथ लगते ही हम उसकी हड्डियों का सुरमा बनाकर अपनी आंखों में डाला करते—उसकी खाल खिंचवाकर पैरों में जूतियां पहना करते—उसकी आंखें निकालकर कंचे खेला करते—हमसे टकराता तो उसका यही होता न, जरा सोचो!”
और तुगलक ने ऐसी मुद्रा बना ली जैसे सचमुच नुसरत के कहे पर बहुत गम्भीरतापूर्वक सोच रहा हो, जब काफी देर हो गई और तुगलक सोचता ही रहा तो नूसरत ने पूछा— “क्या सूंघ रहे हो तुगलक भाई?”
“सूंघने दे।”
“मेरी बात में से कैसी खुशबू आई?”
“खुशबू नहीं, बदबू आ रही है।”
“झूठ मत बोलो, खुशबू आ रही होगा!”
“बको मत!” तुगलक गुर्राया—“बदबू आ रही है!”
“खुशबू आ रही होगी!”
“अच्छा छोड़, इस तरह फैसला नहीं होगा—हम इन भाई साहब से पूछ लेते हैं।” तुगलक ने पास ही बैठे एक यात्री के लिए कहा, जो काफी देर से कान लगाए उनकी ऊल-जलूल बातें सुन रहा था, यात्री अचानक ही उनके बीच अपना जिक्र सुनकर सकपका गया और अभी संभल भी नहीं पाया था कि तुगलक ने उससे पूछा—“क्यों भाई साहब, आपने इस चीमटे की औलाद की बात सुनी?”
“जी...जी हां!”
“उसमें से आपको खुशबू आ रही है या बदबू?”
“ज...जी!”
“हां-हां!” नुसरत ने उसे उत्साहित किया—“सूंघकर बताइए!”
यात्री की खोपड़ी घूम गई, दिमाग ‘इनसेट’ की तरह अन्तरिक्ष में पहुंचकर पृथ्वी के चक्कर लगाने लगा, यह बात उसकी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही थी कि किसी बात में से खुशबू या बदबू कैसे आ सकती है?
“बोलो न भाई साहब!” तुगलक ने नजाकत के साथ कहा।
नुसरत ने किसी कुंआरी कन्या की तरह शरमाकर कहा, “बोलिए न बहनजी!”
यात्री की अजीब हालत हो गई, फिर भी यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि वह कोई मुकद्दर का सिकन्दर ही था, जो उसी समय विमान लैंड कर गया, वरना इन दोनों नमूनों की बातों के चक्रव्यूह में तो वह फंस ही गया था। निश्चय ही पांच-दस मिनट में वह अपने कपड़े फाड़ने लगता!
सीढ़ी लगते ही वह यात्री सबसे पहले लपका और विमान से गायब। कस्टम पर पहुंचते ही पुलिस ने उन्हें अपने घेरे में ले लिया, और एक अफसर आगे बढ़कर बोला— “लंदन में हम आपका स्वागत करते हैं!”
“स...स्वागत—हां, क्यों नहीं—करो स्वागत!”
“आइए!” अफसर ने उनकी अगवानी की।
दोनों उसके पीछे चल दिए, सशस्त्र पुलिस का घेरा उनके चारों तरफ था—एयरपोर्ट की इमारत से बाहर निकलने वाले दरवाजे पर ही वे ठिठक गए—बाहर अथाह जनसमूह का जबरदस्त शोर गूंज रहा था।
तुगलक ने नुसरत से पूछा— “ये भीड़ कैसी है नुसरत भाई?”
“यहां कहीं कठपुतली का खेल हो रहा होगा!” नुसरत ने अपना आइडिया पेश किया।
तुगलक के कुछ कहने से पहले ही अफसर ने उन्हें बताया— “ये सब लंदनवासी हैं सर, जानते हैं कि आज मिस्टर अलफांसे की शादी में शरीक होने दुनिया भर के श्रेष्ठ जासूस आ रहे हैं—ये भीड़ उनके दर्शन करने और उनका स्वागत करने के लिए यहां इकट्ठी हुई है!”
“यानी हमारे दर्शन करने!”
“जी हां, लेकिन आप फिक्र न करें—इस भीड़ की वजह से आपको कोई असुविधा नहीं होगी, गाड़ी में बैठिए—हम आपको भीड़ से बचाते हुए एलिजाबेथ ले जांएगे!”
“तूने सुना चिमटे के?” तुगलक ने कहा।
“सुना!”
“क्या सुना?”
“यही कि यह भीड़ हमारी दर्शनाभिलाषी है!”
“तो क्या इस तरह कार में बैठकर उड़न-छू हो जाना ठीक है?”
“हरगिज नहीं, ये तो इस भीड़ पर जुल्म होगा!”
“फिर?”
“उस धीवट के होटल तक अपनी शाही चाल से जाएंगे!”
बस, हो गया फैसला और इसमें रत्ती बराबर भी शक नहीं है कि जो फैसला ये एक बार कर लेते हैं उस पर अडिग रहते हैं, अफसर ने उन्हें गाड़ी में बैठाने के लिए एड़ी-चोटी तक का जोर लगा लिया परन्तु नाकाम रहा, अन्त में वे सडक पर पैदल ही चले और वह भी अपनी सदाबहार चाल के साथ!
आप तो जानते ही हैं कि उनकी सदाबहार चाल क्या है, नहीं जानते तो सुनिए—सड़क पर, पुलिस के घेरे के ठीक बीच में वे कैबरे करते चले जा रहे थे—एक हैलेन की तरह नाच रहा था तो दूसरा जयश्री टी की नकल हू-ब-हू कर रहा था—सड़क के दोनों तरफ खड़ी भीड़ पेट पकड़े हंस रही थी, लोग सीटियां बजा रहे थे।
उनका अंग-अंग मटक रहा था।
जहां चाहे रुक जाते, काजल से भरी आंखें और भवें मटकाकर लोगों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर देते और फिर खुली सड़क पर कैबरे करते हुए एलिजाबेथ की तरफ बढ़ जाते।
लोग एक-दूसरे से कह रहे थे—“ये हैं पाकिस्तान के सर्वोत्तम जासूस—नुसरत-तुगलक!”
दर्शकों में बागरोफ का गार्डनर के घर जाकर गालियां बकना चर्चा का विषय बन चुका था, इधर उन्हें देखकर लोग कह रहे थे— “वाकई, यह शादी इस युग की सबसे अजीब शादी हैं—बड़े ही अजीब-अजीब बाराती हैं अलफांसे के। एक से बढ़कर एक—कोई नहीं कह सकता कि इनमें सबसे ज्यादा शैतान कौन है।”
एलिजाबेथ पहुंचने में उन्हें दो घण्टे लगे।
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