RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“क्या मतलब गुरू?”
“मैंने एक जासूस को अपनी गोगियापाशा पर नजर रखते हुए देखा है।”
“क...क्या?” एक साथ तीनों के मुंह से निकल पड़ा और वे भाड़-सा मुंह फाड़े धुंधले प्रकाश में चमक रहे विजय के चेहरे को देखते रह गए, जबकि विजय बोला—“तुम फिर हैरान रह गए हो प्यारो और मुझे फिर ये कहना पड़ेगा कि यदि तुमने दिमाग के सभी खिड़की-दरवाजे खुले नहीं रखे तो इसी तरह हैरान होते रहोगे और ज्यादा हैरान होने का मतलब होगा—लंदन ही में हम सबकी कब्र बन जाना।”
विकास ने कहा—“आखिर बात क्या है गुरु, हमने तो किसी को आशा आण्टी पर नजर रखते महसूस नहीं किया।”
“इसीलिए तो आंखें खुली रखने की सलाह दे रहा हूं मैं।”
“क्यों बात को लम्बी कर रहे हो, आखिर बताते क्यों नहीं कि बात क्या है?” विक्रम ने पूछा—“कौन जासूस आशा पर नजर रख रहा है और क्यों?”
“क्यों का जवाब तो फिलहाल हमारी जेब में नहीं है प्यारे और न ही उस जासूस का नाम जानते हैं, मगर है—वह एक आकर्षक–सा युवक है और शायद आशा भी जानती है कि वह उसकी निगरानी कर रहा है, कदाचित इसीलिए वह यहां मिलने नहीं आई है, यह जासूस कहां से उसके पीछे लगा—यह तो आशा ही बता सकेगी।”
“इसका मतलब है, खतरा—आशा आण्टी खतरे में हैं।”
विजय ने बड़े आराम से कहा—“ हो सकती है।”
“हमें उनकी मदद करनी चाहिए।”
विजय ने थोड़े कठोर लहजे में कहा—“ये बेवकूफी से भरी सलाह अपने भेजे में ही रखो।”
“क...क्या मतलब गुरु?” विकास बुरी तरह चौंका था—“क्या आप यह कहना चाहते हैं कि आशा आण्टी यदि खतरे में हैं तो रहें, हमें उनकी कोई मदद नहीं करनी है?”
“तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो!”
“ऐसा कैसे हो सकता है?” विक्रम कह उठा—“आशा हमारी साथी है, मुसीबत के समय में यदि हम उसकी मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा—आखिर हम सब एक ही अभियान पर,साथ ही तो हैं।”
“तुम भूल रहे हो प्यारे कि बशीर, मार्गरेट, चक्रम, डिसूजा और ब्यूटी एक-दूसरे के लिए अपरिचित हैं।”
“मैं समझ रहा हूं गुरु कि आप क्या कहना चाहते हैं।” विकास का लहजा अत्यन्त गम्भीर हो गया था—“यही न कि उनकी मदद करने में हमारी असलियत खुलने का डर है, यदि असलियत खुल गई तो हमारी सारी योजना धूल में मिल जाएगी?”
“करेक्ट!”
“और असलियत खुलते ही न केवल कोहिनूर को हासिल करने का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा बल्कि हम सबका लंदन से बचकर निकल जाना भी मुश्किल हो जाएगा?”
“पहले से भी कई गुना ज्यादा करेक्ट!”
“म...मगर गुरु...!”
“मगर पानी में पाया जाता है प्यारे!”
अनजाने ही में विकास का स्वर भभकने लगा था, वह कहता ही चला गया— “म...मगर गुरु, इन सब उपलब्धियों को हासिल करने के लिए हम आशा आण्टी को दांव पर तो नहीं लगा सकते-इससे बड़ी बुजदिली और क्या होगी कि अपने खतरे में फंस जाने या मर जाने के डर से हम आण्टी की मदद न करें, उन्हें मर जाने दें—नहीं गुरु नहीं—ऐसा आप कर सकते होंगे, मैं नहीं कर सकता।”
“तुम भूल गए प्यारे, मैंने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी कि इस अभियान पर बुजदिली जैसे शब्दों को ताख पर रखकर चलना होगा—भावुक न होने का तुमने मुझसे वादा किया था और यह भी कहा था कि अपने माशाअल्लाह दिमाग का उपयोग नहीं करोगे, सिर्फ हमारे ही आदेशों का पालन करना तुम्हारा काम होगा।”
“ल...लेकिन गुरु—इसका मतलब!” विकास कसमसा उठा—“इसका मतलब ये तो नहीं कि हमारी आंखों के सामने हमारा साथी मर जाए और हम उसकी मदद के लिए हाथ भी न बढ़ाएं?”
“इसका मतलब यही है प्यारे!” विजय का लहजा कठोर हो गया।
“ग...गुरु!”
“खुद को संभालो बेटे, होश में रहो, यहां एक पल के लिए भी अपने ओरिजनल कैरेक्टर्स को उजागर करने का मतलब है—मौत, और मौत से भी बढ़कर अपने अभियान में नाकामी—भूल जाओ कि तुम विकास, मैं विजय, ये विक्रम, ये अशरफ या कोई आशा है—माना कि सीक्रेट सर्विस के सदस्य एक-दूसरे पर जान देते हैं, अपनी जान गंवाने की कीमत पर भी दसरे की जान बचाने की तालीम दी गई है हमें—मगर इस अभियान पर हम सीक्रेट एजेण्ट नहीं मुजिरम हैं-ऐसे मुजरिम जिन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी डकैती करने का फैसला किया है—उस डकैती में से हम सबके बराबर हिस्से होंगे, बस आपस में हमारा इतना ही सम्बन्ध है—एक दूसरे से हमारा कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं है—यदि आशा मरती है तो मर जाए, उसे बचाने के चक्कर में हम अपनी सारी योजना के तिनके-तिनके करके नहीं बिखेर सकते।”
“क्या कोहिनूर तक पहुंचने की हमारी योजना में आशा का कोई काम नहीं है?”
“यदि न होता तो उसे साथ लाते ही क्यों?”
अशरफ ने मुस्कराकर कहा— “मुजरिम अपने ऐसे किसी साथी को नहीं मरने दे सकते जिससे आने वाले समय में उनका कोई काम निकलता हो।”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने मगर...!”
“मगर क्या ?”
“मुजरिम अपनी जान जाने या स्कीम बिखर जाने की कीमत पर किसी को नहीं बचाते।”
अशरफ के होंठों पर मुस्कान उभर आई, शायद यह सोचकर कि वह विजय को लाइन पर ले आया है, बोला— “तो हमने कब कहा कि आशा कि मदद इस कीमत पर की जाए?”
“तो प्यारे हमने कब कहा कि खतरे से बाहर रहकर हम उसकी मदद नहीं करेंगे?”
“तुमने तो एकदम से कह दिया था कि...!”
“फर्क था प्यारे—फर्क था, तुम लोग आशा की मदद करने के लिए इस भावना से कह रहे थे कि वह आशा है, हम सबकी साथी है, अपने दिलजले के डायलॉग तो तुमन सुने ही होंगे और हम मदद करने के लिए केवल इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कोहिनूर तक पहुंचने के लिए स्कीम में उसकी जरूरत पड़ेगी, उसके अभाव में हमारे रास्ते में अनावश्यक कठिनाइयां आ सकती हैं और उन अनावश्यक कठिनाइयों से बचने के लिए यदि हम बिना किसी प्रकार का नुकसान उठाए उसकी मदद कर सकते हैं तो करेंगे।”
“चलो यूं ही सही।”
“लेकिन...!”
विक्रम ने कहा—“फिर ये लेकिन की पूंछ?”
“ये पूंछ तो तब तक लगती ही रहेगी प्यारे विक्रमादित्य जब तक कि बात पूरी नहीं हो जाती।”
“मतलब?”
“अभी हमें यह नहीं पता है कि वह जासूस कौन है, अपनी गोगियापाशा की किस गलती की वजह से उसके पीछे लगा है और उससे क्या चाहता हैं, इन सब सवालों के अनुत्तरित होने के कारण हमें यह भी मालूम नहीं है कि अपनी गोगियापाशा किस स्तर के खतरे में फंसी हुई है और यह जाने बिना मदद के लिए हाथ या पैर बढ़ाना अपने हाथ-पैर से महरूम हो जाने के बराबर है।”
“यानी सबसे पहले इन सवालों के जवाब खोजे जाएं?”
“तुम्हारे बच्चे जिएं प्यारे झानझरोखे, सचमुच तुम बड़े समझदार हो गए हो।”
कुछ कहने के लिए अशरफ ने अभी मुंह खोला ही था कि कमरे के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई, एक साथ ही जैसे सबको सांप सूंघ गया, एक-दूसरे का चेहरा ताकने लगे वे—दस्तक उसी सांकेतिक अंदाज में हुई थी जिसमें आशा को देनी थी, कदाचित इसीलिए विकास फुसफुसाया—
“शायद आशा आण्टी हैं।”
उसी सांकेतिक अन्दाज में दस्तक पुन उभरी।
विजय ने होंठों पर उंगली रखकर सबको चुप रहने का संकेत दिया और निःशब्द अपने स्थान से खड़ा हो गया, विकास, अशरफ और विक्रम के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं, वे किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार थे, जबकि बिल्ली की भांति दबे पांव सारा रास्ता तय करने के बाद विजय ने दरवाजा खोल दिया।
सबके दिमाग को झटका-सा लगा, अन्दर प्रविष्ट होने वाली आशा ही थी।
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