RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
दूर कहीं किसी चर्च का घण्टा दो बार बजा।
लन्दन शहर की नीवरता दूर तक भंग होती चली गई।
सारा शहर इस वक्त नींद के आगोश में डूबा पड़ा था, सर्दी काफी थी और इसी वजह से ‘जॉनसन स्ट्रीट’ के चौकीदार ने अपने काले रंग के गर्म ओवरकोट के कॉलर खड़े कर रखे थे, एक हाथ में लाठी तथा दूसरे में शक्तिशाली टॉर्च लिए वह दूर-दूर तक सुनसान पड़ी, चिकनी और चौड़ी जॉनसन स्ट्रीट पर इस तरह टहल रहा था जैसे वह इस सड़क का बादशाह हो।
और इसमें शक भी नहीं कि रात के समय वह इस इलाके का बादशाह ही दिखाई देता था, क्योंकि रात के इस समय इस सड़क को इस्तेमाल करने वाला दूर-दूर तक भी कोई नहीं होता था। रह-रहकर उसकी मजबूत लाठी का निचला सिरा सड़क से टकराकर जॉनसन स्ट्रीट पर सोए हुए बेचारे सन्नाटे को डिस्टर्ब कर दिया करता था। सड़के के बीचोबीच रुककर उसने एक सिगरेट सुलगाई और अभी माचिस जेब में डाल ही रहा था कि ठीक सामने बहुत दूर उसे सड़क पर दो प्रकाश-बिन्दु नजर आए, वे बिन्दु तेजी से उसके नजदीक आते जा रहे थे, चौकीदार ने पूरी लापरवाही के साथ एक कश लिया और धुआं हवा में उछाला।
अपने अनुभव के आधार पर वह कह सकता था कि आने वाला वाहन कार या टैक्सी है।
उसका अनुमान ठीक ही था, देखते-ही-देखते एक नीली ‘डेल्टा’ बहुत करीब आ गई, उसको रास्ता देने के लिए चौकीदार एक तरफ हट गया, मगर ‘डेल्टा’ उसके समीप से गुजरकर जाने के स्थान पर उससे करीब पांच मीटर की दूरी पर ही रुक गई।
“भाई चौकीदार!” कार का अगला दरवाजा खुलने के साथ ही एक व्यक्ति उसे पुकारता हुआ बाहर निकला, चौकीदार ने देखा कि उसके शरीर पर एक ओवरकोट था, सिर पर फैल्ट हैट-कोट के कॉलर खड़े थे और हैट का अग्रिम कोना ललाट पर कुछ ज्यादा ही झुका हुआ था, चौकीदार अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि वह व्यक्ति करीब आकर बोला—“तुम्हें यहां कहीं से कोई पर्स तो नहीं मिला?”
“नहीं तो शाब!”
“देख लो, अगर मिला हो तो बता दो, मैं तुम्हें सौ पाउण्ड इनाम दूंगा, उस पर्स में रकम के नाम पर कुछ भी नहीं है, सिर्फ कुछ जरूरी कागज हैं, जो मेरे लिए लाखों के हैं, मगर किसी और के लिए कौड़ी के भी नहीं।”
“आप कैसी बात कर रहे हैं शाब, यदि मिला होता तो हम बता देते।”
“उफ्फ, कहां गया? मैं तो बर्बाद हो जाऊंगा।” परेशान-सा वह चारों तरफ देखने लगा।
चौकीदार ने राय दी—“किसी न्यूज पेपर में निकलवा दीजिए शाब, हो सकता है जिसे मिला हो वह पढ़ ले!”
“अरे—उधर, हां—वहां हो सकता है।” कहने के साथ ही व्यक्ति घूमा और सड़क के उस पार बने टॉयलेट की तरफ लपका—फिर चार या पांच कदम आगे बढ़ाने के बाद स्वयं ही रुक गया, घूमा और बोला—“क्या एक मिनट के लिए तुम मुझे अपनी टॉर्च दे सकोगे चौकीदार?”
“क्यों शाब?”
“वहां, उस टॉयलेट में मैंने य़ूरीनल किया था—शायद वहां गिर गया हो—टॉयलेट में अंधेरा है।”
“हम खुद देख देते हैं शाब!” कहने के साथ ही चौकीदार उसके समीप पहुंच गया, सड़क पार करके वे टॉयलेट में पहुंचे—चौकीदार ने टार्च ऑन की और झुककर टायलेट के फर्श को देखने लगा और यही वह क्षण था जब आगन्तुक ने बिजली की-सी फुर्ती के साथ एक कराटे चौकीदार की कनपटी पर रसीद कर दी।
दूर तक एक चीख की आवाज गूंजती चली गई।
चौकीदार मुंह के बल टाइलदार फर्श पर गिरा और वहीं पड़ा रह गया, इस नपे-तुले एक ही वार में वह बेहोश हो चुका था, जली हुई सिगरेट गीले फर्श पर गिरने के बाद बुझ चुकी थी, टॉर्च उठाई और उस वक्त वह ध्यान से चौकीदार का निरीक्षण कर रहा था जब कार की तरफ से विकास की आवाज आई—“क्या रहा अंकल?”
“ये बेहोश हो चुका है।” आगन्तुक के मुंह से निकली आवाज अशरफ की थी।
उसके बाद, कार स्टार्ट होकर थोड़ी आगे बढ़ी—फुटपाथ पर चढ़ी और एक दुकान के सामने खड़ी हो गई, एक झटके से अगला दरवाजा खुला और लम्बा लड़का बाहर निकला।
उसके जिस्म पर भी लम्बा ओवरकोट था और अशरफ की तरह ही उसने भी अपने चेहरे का अधिकांश भाग छुपा रखा था, वह घूमकर दुकान के चबूतरे पर चढ़ गया—जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और शटर के दाईं तरफ लगे ताले को खोलने की कोशिश करने लगा।
वह दुकान बन्दूक आदि शस्त्रों की थी।
उनके काम करने का तरीका ही बता रहा था कि जो कुछ इस वक्त हो रहा है, सब ‘वैल-प्लान’ है—सारे मिशन का एक-एक क्षण पूरी तरह सोचा-समझा था—जिस वक्त दाईं तरफ का ताला खोलने के बाद विकास गुच्छा संभाले बाईं तरफ लपक रहा था, उस वक्त टॉयलेट से चौकीदार के कपड़े पहने अशरफ बाहर निकला, उसके एक हाथ में टॉर्च थी—दूसरे में लाठी।
विकास दूसरे ताले को खोलने में जुटा हुआ था।
सड़क पार करके अशरफ कार के नजदीक आता हुआ बोला—“क्या रहा?”
“एक खुल चुका है, दूसरे को खोलने की कोशिश कर रहा हूं।”
“जल्दी करो।”
“बस खुल गया!” विकास कोशिश करता हुआ बोला, मगर दरअसल अभी वह ताला खुला नहीं था, लाठी बजाता हुआ अशरफ घूमा और सड़क की तरफ बढ़ा, अभी वह सड़क के किनारे पर ही पहुंचा था कि दाईं तरफ दूर उसे प्रकाश–बिन्दु नजर आए, वह लगभाग चीख पड़ा—“कोई वाहन आ रहा है, क्विक!”
इधर विकास ने इस ताले को भी खोल लिया।
“अरे!” अशरफ हड़बड़ाता हुआ कार की तरफ लपका और बोला—“वह तो कोई जीप लगती है—जल्दी करो विकास, जीप में पुलिस भी हो सकती है—शटर उठाकर दुकान के अन्दर घुस जाओ।”
विकास ने बहुत फुर्ती से शटर उठाया और दुकान के अन्दर घुस गया।
जीप को नजदीक आती देखकर अशरफ सड़क की तरफ लपका और अपने पीछे से शटर गिरने की आवाज को सुनकर थोड़ा संतुष्ट हुआ, अपनी उखड़ी हुई सांसों को वह काबू में करने की चेष्टा कर रहा था।
हड़बड़ाहट को छुपाने के लिए उसने चौकीदार के कोट की जेब से सिगरेट-माचिस निकाली और सिगरेट सुलगाने लगा, जिस वक्त वह सिगरेट सुलगा रहा था, ठीक उसी वक्त बहुत तेजी से दौड़ रही जीप ‘सांय’ की आवाज के साथ उसके सामने से गुजर गई।
पल भर में ही जीप काफी दूर निकल गई थी।
दूर होती हुई पिछली लाल लाइटों को देखकर अभी उसने शान्ति की पहली सांस ही ली थी कि—जॉनसन स्ट्रीट का सारा इलाका टायरों की चरमराहट की आवाज से गूंज उठा।
जीप चालक ने अचानक ही बहुत जोर से ब्रेक मारे थे।
जीप के रुकते ही अशरफ के जिस्म पर मौजूद सभी मसामों ने एकदम पसीना उगल दिया, अपना सारा शरीर उसे एकदम ‘सुन्न’ सा पड़ता महसूस हुआ और उस वक्त तो मानो उसके हाथ-पैरों में जान ही न रही, जब जीप उल्टी चलती हुई बड़ी तेजी से उसकी तरफ आई।
अपना दिमाग उसे अन्तरिक्ष में चक्कर काटता हुआ-सा महसूस हुआ।
अशरफ हक्का-बक्का-सा ही खड़ा था कि इस बार टायरों की हल्की-सी चरमराहट ने उसे चौंका दिया। जीप उसके करीब ही रुक गई थी, अन्दर से एक कड़क आवाज ने पूछा—“ऐ कौन हो तुम?”
“च...चौकीदार शाब, हम यहां का चौकीदार है!” उसने सिगरेट एक तरफ फेंकते हुए कहा।
“इधर आओ!” जीप में बैठे इंस्पेक्टर ने अपने हाथ में दबे छोटे गोल रूल से उसे संकेत किया, इंस्पेक्टर जीप के इधर वाले दरवाजे पर ही बैठा था—अशरफ लपकता हुआ-सा समीप पहुंचा और बोला—“जी शाब!”
“तुम रोज यहीं की चौकीदारी करते हो?”
“जी शाब!”
इंस्पेक्टर ने रूल से डेल्टा की ओर संकेत करते हुए पूछा—“क्या वह कार हर रोज रात को यहीं खड़ी रहती है?”
“न...नो शाब!” अशरफ ने जवाब दे तो दिया, परन्तु इंस्पेक्टर द्वारा कार के बारे में पूछते ही उसके तिरपन कांप गए थे, क्योंकि रात नौ बजे यह कार एक होटल के पार्किंग से चुराई गई थी।
“तो आज क्यों खड़ी है?”
“प...पता नहीं शाब!”
इंस्पेक्टर ने जीप के अन्दर बैठे अपने किसी सहयोगी से कहा—“जरा देखना कार्पेट, कहीं ये वही कार तो नहीं है—वायरलेस द्वारा बताया गया नम्बर तो तुमने नोट कर ही लिया था न?”
“यस सर!” कहता हुआ एक सब-इंस्पेक्टर जीप के दूसरी तरफ वाले दरवाजे से सड़क पर कूद पड़ा और जीप का एक चक्कर काटता हुआ कार की तरफ बढ़ा, अशरफ ने उसके हाथ में एक शक्तिशाली टॉर्च देखी थी और यह लिखना गलत नहीं होगा कि उस वक्त अशरफ की टांगें कांपने लगी थीं।
खड़ा रहना भारी हो गया उसके लिए।
हलक बुरी तरह सूखने लगा, अब उसे बचाव की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी।
अशरफ तब चौंका तब जीप की तरफ से सब-इंस्पेक्टर की आवाज आई—“अरे, ये तो वही गाड़ी है सर!”
“वैरी गुड!” कहता हुआ इंस्पेक्टर भी जीप से बाहर आ गया। अशरफ की समझ में नहीं आ रहा था वो कि क्या करे, तभी इंस्पेक्टर ने रूल से उसका कन्धा थपथपाते हुए पूछा—“ये कार यहां किसने खड़ी की है?”
“म...मुझे नहीं मालूम शाब, मैंने इसे यहां किसी को खड़ी करते नहीं देखा।”
“तो गाड़ी यहां कहां से आ गई?” इस बार इंस्पेक्टर कुछ ऐसे खतरनाक अन्दाज में गुर्राया कि अशरफ के तिरपन कांप गए, गिड़गिड़ाया—“म...मुझे नहीं मालूम शाब!”
“कब से यहां खड़ी है ये?”
“म...मैं यहां अपनी ड्यूटी पर दस बजे आया था शाब, गाड़ी तो तभी से यहां खड़ी है—मैंने सोचा कि अपने इलाके में रहने वाले किसी के घर गाड़ी में कोई गेस्ट आया होगा।”
“ये झूठ बोल रहा है सर!” कहने के साथ ही लपकता हुआ सब-इंस्पेक्टर उनके समीप आ गया और अशरफ को घूरता हुआ गुर्राया—“गाड़ी का बोनट अभी गर्म है, इसका मतलब ये है कि गाड़ी को यहां पहुंचे ज्यादा-से-ज्यादा पन्द्रह मिनट हुए हैं।”
अब अशरफ के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।
“तुमने झूठ क्यों बोला?” इंस्पेक्टर गुर्राया।
अभी अशरफ बेचारा कोई जवाब दे भी नहीं पाया था कि चौंकते हुए सब-इंस्पेक्टर ने कहा—“अरे, इसकी टॉर्च का तो शीशा टूटा हुआ है सर, और ये कोट पर कीचड़ कैसा—तुम कहीं गिरे हो?”
“न...नहीं तो शाब!”
अचानक इंस्पेक्टर ने आदेश दिया—“इसे गिरफ्तार कर लो कार्पेट!”
और अब, बात इतनी बढ़ चुकी थी कि अशरफ के पास बचने का कोई रास्ता नहीं रह गया—इसलिए एक कदम पीछे हटते हुए उसने टॉर्च फेंकी और बिजली की-सी गति से लाठी का भरपूर प्रहार सब-इंस्पेक्टर के सिर पर किया।
एक जबरदस्त चीख के साथ सब-इंस्पेक्टर सड़क पर जा गिरा।
भौंचक्के-से इंस्पेक्टर ने पहले रूल घुमाया, परन्तु रूल का वार खाली गया, जबकि अशरफ ने लाठी का प्रहार उसकी कमर में किया, एक चीख के साथ इंस्पेक्टर भी सड़क पर जा गिरा।
तभी शटर उठाने की आवाज गूंजी।
अशरफ के दूसरे प्रहार से पहले ही सड़क पर पड़े इंस्पेक्टर ने अपने होल्स्टर से रिवॉल्वर निकाल लिया और अभी उसने हाथ सीधा किया ही था कि—‘धांय!’
हथियारों की दुकान की तरफ से चली एक गोली इंस्पेक्टर के माथे में आ धंसी, इधर इंस्पेक्टर मर्मान्तक चीख के साथ सड़क पर लुढ़का, उधर जीप कमान से निकले हुए तीर की तरह सड़क पर भागी।
तभी हथियारों की दुकान के चबूतरे से जिन्न की तरह कूदकर विकास भागता-सा सड़क पर आया—उसके हाथ में एक स्टेनगन थी।
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