RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
पीटर हाउस के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित उस कमरे में पड़े सोफे पर चैम्बूर के बेहोश जिस्म को लिटाते हुए विजय ने एक लम्बी सांस ली, माथे से पसीना पोंछा और हांफता हुआ स्वयं भी ‘धम्म’ से सोफे पर गिर पड़ा—चैम्बूर को कन्धे पर लादकर रेनवाटर पाइप पर चढ़ने तथा फिर वहां से यहां तक लाने में उसकी सांस फूल गई थी।
सांसें विकास, अशरफ और विक्रम की भी अनियंत्रित थीं।
चैम्बूर की कोठी से यहां तक पहुंचने के लिए विक्रम ने कार आंधी के समान तेज चलाई थी, प्रत्येक पल यह खतरा लगा रहा था कि कहीं कोई गश्ती पुलिस टुकड़ी उन्हें रोक न ले।
मस्तिष्क तरह-तरह की आशकांओं के अधीन तनावग्रस्त रहे थे।
विक्रम ने कहा—“गाड़ी में तुम लोग बाण्ड के बारे में बात कर रहे थे, वह भला चैम्बूर की कोठी में कहां से पहुंच गया?”
“यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है।” अशरफ ने कहा—“मैं तो ऑपरेशन की कामयाबी पर पूरी तरह आश्वस्त होकर कमरे से बाहर निकला था कि गैलरी का दृश्य देखते ही चौंक पड़ा, एक व्यक्ति से बाकायदा विकास का मल्लयुद्ध चल रहा था, तब—मेरे दिमाग में उस फायर की आवाज का आशय समझ में आया जो मैंने कलिंग के पास कमरे में रहते सुनी थी—बाण्ड को पहचानते ही तो मेरे होश फाख्ता हो गए और मैंने निश्चय कर लिया कि बाण्ड को बेहोश किए बिना हम यहां से नहीं निकल सकेंगे।”
“और आपने रिवॉल्वर के दस्ते से उसे बेहोश कर दिया!”
“हां, मगर समझ में नहीं आया—रात के इस वक्त बाण्ड आखिर वहां कर क्या रहा था?”
“हमारा इन्तजार!” विजय ने बड़े आराम से कहा। तीनों एक साथ चिहुंक पड़े, विकास बोला—“इन्तजार! क्या उन्हें मालूम तथा कि हम वहां पहुंचेंगे?”
“बेशक मालूम था!”
“कैसे?”
“इस बार चूक हमसे हो गई प्यारे, इसीलिए कहते हैं कि बड़े-बड़े धुरन्धर चूक जाते हैं।”
विकास ने पूछा—“क्या चूक हो गई आपसे?”
“तुमने चैम्बूर को गार्डनर के नाम से फोन किया और फिर उसकी आवाज सुनते ही बिना एक लफ्ज भी बोले रख दिया, यह छोटी-सी बात हमारे दिमाग में नहीं आई कि चैम्बूर और गार्डनर के बीच इस रहस्यमय फोन की चर्चा होनी कितनी स्वाभाविक है—गार्डनर ने चैम्बूर से कहा होगा कि उसने ऐसा कोई फोन नहीं किया था—फिर सवाल उठा कि फोन किसने किस मकसद से किया—तभी उन्हें ग्राडवे का कत्ल होने की बात स्पष्ट हो गई होगी—उसमें आशा का कोहिनूर देखना भी जुड़ गया— इन तीन वारदातों ने उन्हें बता दिया कि कुछ लोग कोहिनूर में दिलचस्पी ले रहे हैं—और शायद इसी केस पर काम करने के लिए के.एस.एस. ने एम से बाण्ड को इस केस पर नियुक्त करने को कहा—इस प्रकार बाण्ड के लिए यह समझ जाना कितना आसान है कि कोहिनूर में दिलचस्पी लेने वालों का अगला शिकार चैम्बूर है और इतना पता लगने पर भी बाण्ड चैम्बूर के इर्द-गिर्द न रहता?”
“ओह!”
“अगर हम उसी वक्त सोच लेते कि तुम्हारे फोन की उधर क्या प्रतिक्रिया होगी तो हमें बाण्ड की वहां मौजूदगी का पहले से ही आभास होता और इस तरह चौंकते नहीं।”
“क्या बाण्ड को वहां देखकर आप भी चौंके थे गुरु?”
“चौंक पड़ना तो स्वाभाविक ही था, हम थम्ब के पीछे घात लगाए खड़े थे कि कब दरवाजा खुले—दरवाजा खुलने से पहले ही हमें कमरे के अन्दर से आवाजें आईं— यह सोचकर हम चकराए कि कमरे में चैम्बूर यदि अकेला है तो वह बोल क्यों रहा है और यदि कोई दूसरा है तो कौन है— तभी एक झटके से दरवाजा खुला—अभी बाण्ड पर नजर पड़ते ही हमारी बुद्धि को जंग लगा, वह एक पल बौखलाया फिर गैलरी में ठिठके बिना भागता चला गया था—और उसी क्षण वे सारी बातें बिजली की तरह हमारे दिमाग में कौंध गईं जो थोड़ी देर पहले कह आए हैं।”
“और यदि सच कहा जाए गुरु तो मैं आज बाल-बाल बचा हूं।”
विकास ने कहा—“गैलरी के दूसरी तरफ से भागते कदमों की आहट सुनकर भी मैं लापरवाह बना रहा, यह सोचकर कि आप होंगे मगर आपके स्थान पर बाण्ड को देखते ही मैं भौंचक्का रह गया, उस वक्त मेरे सामने वहां बाण्ड आ खड़ा होगा, इस सच्चाई पर मैं तो अब भी ठीक से विश्वास नहीं कर पा रहा हूं— मेरे दिल वाले स्थान का निशाना लिया था, वह तो मैं खुद को संगआर्ट का प्रदर्शन करके...।”
“स...संगआर्ट?” विजय एकदम इस तरह उछल पड़ा जैसे उसे सैकड़ों बिच्छुओं ने एक साथ डांक मार दिए हों।
तीनों भौंचक्के-से उसकी तरफ देखने लगे।
“क्या हुआ गुरु?”
“तुमने संगआर्ट से खुद को उसकी गोली से बचाया था?”
“और नहीं तो क्या करता?”
“मारे गए मलखान!” कहकर विजय ने बहुत जोर से अपने माथे पर हाथ मारा और लहराकर इस तरह वापस ‘धम्म’ से सोफे पर गिर पड़ा जैसे माथे में गोली लगी हो, फिर उसने अपने सारे शरीर को इस तरह ढीला छोड़ दिया जैसे उसमें प्राण ही बाकी न रहे हो।
हैरत में डूबे तीनों उसे देख रहे थे।
“क्या हुआ गुरु?”
“सब कुछ हो गया है प्यारे—होने के लिए अब बाकी कुछ नहीं बचा है।” विजय की अवस्था उस सेठ जैसी दिखाई दे रही थी, जो रात को तिजोरी को नोटों से लबालब भरी छोड़कर सोया था और सुबह होते ही उसे बिल्कुल खाली पाया।
अशरफ चीख–सा पड़ा—“ऐसा क्या हो गया है विजय, बताते क्यों नहीं?”
“बाण्ड जान गया है प्यारे कि हम लोग कौन हैं?”
“क...कैसे?” विक्रम चीख उठा।
“जब ये लम्बू उसके सामने संगआर्ट का प्रदर्शन करेगा तो होगा ही क्या, किसी ने सच कहा है—साले लम्बों की अकल घुटने में ही होती है।”
और विजय के आशय को समझकर जहां विक्रम और अशरफ भौंचक्के रह गए, वहीं विकास का चेहरा बिल्कुल फक्क पड़ गया— सफेद—राख की तरह बिल्कुल निस्तेज—कुछ कहते नहीं बन पड़ा उस पर—यह तो उसने सोचा भी नहीं था कि वह इतनी बड़ी भूल कर चुका है—अशरफ और विक्रम की तरह वह भी केवल विजय के चेहरे को देखता रह गया।
“वह जानता है प्यारे कि संगआर्ट का इस्तेमाल दुनिया के गिने-चुने लोग ही कर सकते हैं—उन गिने-चुने लोगों में से अपनी विशेष लम्बाई के तुम अकेले ही हो— पुष्टि के लिए वह टॉर्च आदि से प्राप्त उंगलियों के निशानों को तुम्हारे और अशरफ के निशानों से मिला लेगा— जब तुम दोनों यहां हो तो वह बड़ी आसानी से लंदन ही में हमारी मौजूदगी की भी कल्पना कर लेगा।”
कोई कुछ नहीं बोला, जुबान पर ताले लटक गए थे।
विजय ने भन्नाए हुए स्वर में कहा—“अब मुंह लटकाए क्या बैठे हो?”
“सचमुच गुरु, बहुत बड़ी भूल हो गई।”
“इसमें भूल ही क्या करेगी प्यारे, गोली साली तुम्हारे दिल पर लपक रही थी—दो बातों में से एक तो होनी ही थी, या तो तुम्हारा कल्याण या ये भूल—कल्याण से फिर भी भूल अच्छी है।”
“वह तो ठीक है गुरु लेकिन...।”
“लेकिन?”
“गलती करने के बाद भी मुझे अहसास नहीं हुआ कि गलती हो चुकी है।”
“अब मुंह लटकाने या जो हो चुका है उस पर अफसोस करने से न तेल निकलने वाला है न तेल की धार—अब तो हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि अब इन नए हालात में हमारी स्थिति क्या है और हम क्या कर सकते हैं!”
“अब उसे केवल यह पता लगाना बाकी है कि लंदन में हम कहां रह रहे हैं?”
विकास बोला—“यह पता लगाने के लिए वह आशा आण्टी को गिरफ्तार कर सकता है।”
“आशा—ओह, प्यारो गए काम से!” इस क्षण विजय दूसरी बार पस्त हुआ—“हमारे नाम समझ में आते ही वह बहुत आसानी से समझ गया होगा कि वह ब्यूटी नहीं आशा है।”
“हमें आशा आण्टी को फौरन वहां से हटा देना चाहिए।” विकास ने जल्दी से कहा।
रिस्टवॉच पर नजर डालते हुए विजय ने कहा—“बहुत देर हो चुकी है।”
“क्या मतलब ?”
“बाण्ड के सिर पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार हुए एक घण्टा गुजर चुका है, जबकि बाण्ड जैसी इच्छाशक्ति वाला उस चोट से पन्द्रह मिनट से ज्यादा तक बेहोश होने वाला नहीं है और होश में आते ही उसने आशा के चारों तरफ पहरा इतना कड़ा करा दिया होगा कि यदि हममें से किसी ने उस तक पहुंचने की मूर्खता की तो फौरन गिरफ्तार हो जाएगा।”
सभी के चेहरे लटक गए, अशरफ ने कहा—“लेकिन विजय, क्या जरूरी है कि जो हम सोच रहे हैं वही हुआ हो, ऐसा, भी तो हो सकता है कि बाण्ड के दिमाग में आशा का ख्याल ही न आया हो।”
“हालांकि सम्भावना बहुत कम है, लेकिन फिर भी ऐसा हो सकता है।”
“तो क्यों न हम आशा तक पहुंचने के लिए कम-से-कम एक बार ट्राई करें?” अशरफ ने कहा—“या कोई यही ताड़ने का रास्ता निकालें, कि आशा के चारों तरफ कोई पहरा है या नहीं?”
“गर्म खाने से मुंह जल जाता है प्यारे, इसलिए बुजुर्गों ने कहा है कि फूंक मार-मारकर ठंडा करके खाओ।”
“क्या मतलब?”
“यदि हमारा भेद जानने के बाद भी बाण्ड का ध्यान ब्यूटी के आशा होने पर अभी तक नहीं गया है तो यह ‘तय’ समझो कि भविष्य में बहुत जल्दी जाने वाला भी नहीं है—उस स्थिति में यदि आशा के चारों तरफ इस वक्त कोई पहरा न होगा तो हमें कल दिन में भी यही स्थिति मिलेगी—पहरा होगा तो वैसे ही हम कुछ नहीं कर सकेंगे— अतः कल दिन में ही सारी स्थिति को समझकर कोई कदम उठाना समझदारी है—इस वक्त हमारा लंदन की सड़कों पर निकलना वैसे भी मौत को दावत देने जैसा है।”
विजय की बात तर्कसंगत थी और विकास को जंच भी रही थी, परन्तु फिर भी यह उसे कुछ अजीब-सा लग रहा था कि इस वक्त आशा की खैर-खबर ही न ली जाए—फिर भी वह कुछ बोला नहीं— अपनी कोई राय पेश नहीं की उसने।
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