RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
उस वक्त करीब साढ़े बारह बज रहे थे, जब अशरफ और विकास पीटर हाउस के उस हॉल में पहुंचे, विजय और विक्रम वहां पहले ही से मौजूद थे, उन्हें देखते ही सोफे से उठकर खड़े होते हुए विजय ने कहा—“आओ, प्यारे, लेकिन तुम्हें तो बारह बजे आना था—तीस मिनट लेट कैसे?”
“पीटर हाउस के बाहर तो हम पौने बारह बजे ही पहुंच गए थे लेकिन दाखिल अब हुए हैं।”
“किस खुशी में?”
“चैक करते रहे कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है, सुबह उस बच्चे ने हमें देख लिया था न!”
“हां प्यारे, देख तो लिया था और सबसे ज्यादा बेवकूफी तो तुमने दिखाई थी, तुम्हें बन्दर की तरह पाइप पर लटका देखकर ही उसे ज्यादा मजा आया था और वह 'हैलो' करने लगा।”
“उसने किसी से कुछ कहा तो नहीं?”
“उसी वक्त एक महिला से कहा तो था, शायद वह उसकी मां थी, लेकिन उसकी बात को शायद उसने बचकानी बात ही समझा—किसी वजह से उस वक्त वह क्रुद्ध थी, बच्चे को मारती हुई बालकनी से ले गई।”
“शुक्र है।” एक ठण्डी सांस लेता हुआ अशरफ सोफे पर बैठ गया।
“तुम्हारे अभियान का क्या रहा यानी अपनी गोगियापाशा कैसी है?”
“बिल्कुल ठीक और सुरक्षित है।” अशरफ ने कहा—“अभी तक वह एलिबेथ होटल के कमरे में ही ठहरी हुई है और हम दोनों की राय में अब उसे कोई जासूस वॉच नहीं कर रहा है।”
“गुड!”
उत्साहित-से विकास ने पूछा—“तो क्या हम आशा आण्टी को यहां ले आएं गुरु?”
“कल रात तक और वॉच करना, यदि स्थिति में कोई परिवर्तन न देखो तो ले आना।”
“ओ.के. गुरू!” विकास को जैसे मनचाही मुराद मिल गई, फिर उसने विजय से पूछा—“आपके अभियान का क्या रहा गुरु?”
“बस इतना ही समझ लो प्यारे कि सारी स्थिति चैम्बूर के बताए मुताबिक ही है।”
“और आप विक्रम अंकल, क्या आप पता लगा सके कि अलफांसे गुरु अपनी योजना के कौन-से स्पॉट पर हैं?”
“नहीं। मैं सारे दिन उसे वॉच करता रहा, लेकिन उसने कहीं भी एक क्षण के लिए भी कोई ऐसी हरकत नहीं की, जिससे यह लगे कि वह कोहिनूर के चक्कर में है या उस स्कीम पर काम कर रहा है जो चैम्बूर ने बताई थी—मुझे लगता है कि....!” वह कहता कहता रुक गया।
“बोलो प्यारे, रुक क्यों गए—कैसा लगता है तुम्हें?”
“यह कि इस बार वह किसी स्कीम पर काम नहीं कर रहा है—वह अपनी शादी और इर्विन के प्रति गम्भीर है। मेरे ख्याल से तो नए सिरे से सोचने की जरूरत है—जरा सोचो विजय, ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि अलफांसे सचमुच अपनी आपराधिक जिन्दगी से ऊब चुका हो?”
“लो प्यारे, अपने लूमड़ ने तो विक्रमादित्य की खोपड़ी पर भी घुमा दिया जादू का डंडा—खैर, फिलहाल लूमड़ की तारीफ में गंवाने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है, बहुत-से काम करने हैं।”
“जैसे?”
“सबसे पहले तो उस साले चैम्बूर की लाश को ही यहां से निकालना है, उसके बाद आराम से बैठकर आइस्क्रीम बनानी है कि लूमड़ को हमें किस स्पॉट पर दबोचना है?”
“चलो—पहले लाश का ही इन्तजाम करते हैं।” कहने के साथ ही विकास उस कमरे की तरफ बढ़ गया, जहां चैम्बूर की लाश थी—विजय, अशरफ और विक्रम भी उसके साथ ही थे।
दरवाजा खोलते ही वे सब उछल पड़े।
“ह...हैं...लाश कहां गई?” विक्रम के कंठ से चीख-सी निकली थी।
कमरे में सचमुच कोई लाश नहीं थी— सभी अवाक्-से स्टैचुओं की तरह उस स्थान को देखते रह गए, जहां वे लाश छोड़ गए थे—विजय मूर्खों की तरह पलकें झपका रहा था।
विकास सहित तीनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
“लाश चली कहां गई?” अशरफ बड़बड़ाया।
विजय बोला—“लाश चलकर नहीं प्यारे, उड़कर गई है।”
“क्या बकते हो?” अशरफ झुंझला-सा गया।
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