RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
उस रात भी सदा की भांति जमींदार रामदास अपनी अतिथिशाला में बैठे अपने अतिथि सेठ श्यामसुंदर के साथ बातचीत में व्यस्त थे। पास ही राज एक कुर्सी पर बैठा उनकी बातचीत का आनंद ले रहा था।
'जमींदार साहब, आप जैसे संपन्न और प्रसन्नचित्त मनुष्य हमारे शहर में तो ढंटे से भी न मिलेंगे। भगवान ने भी आपको अपनी प्रकृति से दूर छिपा रखा है।' श्यामसुंदर कह रहे थे।
'वाह साहब, आपने भी खूब कही। भला हम किस योग्य हैं! यह तो एक कर्त्तव्यमात्र है जिसे निभाने का मुझे अवसर दिया गया, नहीं तो कौन देवता और कौन पुजारी! यह सब उसकी बिखरी हुई माया है।' जमींदार साहब ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।
'परंतु फिर भी आप हमारे लोभी और बनावटी संसार में आवें तो आप भले और बुरे की परख कर सकें।'
'बहुत देखा साहब आपका संसार, उसकी रंगीनियां और न जाने क्या कुछ, परंतु अब देखने को जी नहीं चाहता। भगवान का दिया सब कुछ है, किस दिन काम आएगा! सब कुछ पास होने पर भी जो मनुष्य ऐसी बातों से परे रहे, उसके जीवन को धिक्कार है।'
'हैलो राज, चुप क्यों हो?' श्यामसुंदर ने बात बदलते हुए कहा।
'यों ही। आप और पिताजी की बातचीत सुन रहा था।'
"कितने भाग्यवान हो तुम कि तुम्हें इतने अच्छे पिता मिले
'भाग्यवान तो मैं भी कम नहीं जिसे इतना होनहार और आज्ञाकारी पुत्र मिला है।' जमींदार साहब बोले।
इस पर सब हंसने लगे। इस प्रकार बहुत देर तक बातचीत होती रही, व्यापार संबंधी, घरेलू संसार संबंधी! सेठ श्यामसुंदर बंबई के प्रसिद्ध व्यापारी थे। बंबई में इनका ऐनक बनाने का कारखाना था। लाखों की आमदनी थी। सारे शहर में अपने ढंग का एक ही कारखाना था।
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