RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
हवा के तीव्र झोंके सांय-सांय कर रहे थे। रात के दस बजने का समय था। आने वाली ट्रेन की गड़गड़ाहट सुनाई दी। राज जल्दी से संभला। मुनीमजी और हरिया ने सामान सिर पर उठा लिया। थोड़ी ही देर में गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर रुकी। भीड़ से भरे डिब्बों को छोड़ता हुआ राज एक सैकिंड क्लास के डिब्बे में प्रविष्ट हुआ और जल्दी से सामान जमा दिया। इंजन ने सीटी दी। हरिया और मुनीमजी जल्दी से नीचे उतर गए और गाड़ी चल दी। 'पिताजी का ध्यान रखना।' उसने चलती ट्रेन से आवाज दी और दरवाजा बंद करते ही कमरे का निरीक्षण करना आरंभ किया।
छ: सीटें थीं, परंतु सब की सब भरी हुई। प्रत्येक पर कोई न कोई लेटा हुआ नींद के मजे ले रहा था, परंतु दरवाजे के समीप वाली सीट पर सुंदर लड़की लेटी हुई फिल्मी मैगजीन पढ़ रही थी। राज ने सोचा कि बैठने के लिए थोड़ी जगह मांगे परंतु साहस न कर सका और इसी प्रकार खड़ा रहा। लड़की ने उसे तीखी निगाह से देखा और सिर झुका लिया। उसके होंठों पर एक भावपूर्ण मुस्कराहट थी।। ट्रेन अपनी पूरी चाल पकड़ चुकी थी। अभी तक किसी यात्री की आंख भी न खुली थी कि राज उससे थोड़ी-सी जगह बैठने को मांग लेता। रात का समय था। किसी से जबरदस्ती भी तो नहीं हो सकती थी। उसने सोचा कि अपना बक्स जमाकर उस पर बैठ जाए। उसने अपना बिस्तर बक्स पर से सरकाया।
लड़की उसे कनखियों से देख रही थी। उसे इस प्रकार देखकर बोली 'आप यहां बैठ सकते हैं।' और यह कहकर उसने अपनी टांगें समेट लीं।
'धन्यवाद!' कहकर राज ने सीट के किनारे बैठकर मन में सोचा, यदि पहले ही प्रार्थना कर ली होती तो टांगों को इतना कष्ट न होता।
हवा तेजी से चल रही थी। उस बाला की साड़ी का पल्ला हवा में उड़-उड़कर उसके चेहरे पर आ पड़ता जिस प्रकार चांद के आगे छोटी सी बदली। राज ने पहली बार उसे ध्यान से देखा। वह सुंदर थी। उसके निखरे केश हवा में लहराते बहुत ही भले जान पड़ते थे। राज छिपी-छिपी निगाहों से उसे देख लेता। गाड़ी बहुत दूर निकल गई। राज चाहता था कि सारी रात इसी प्रकार बैठा उस सुंदर मुखड़े को निहारता रहे। उसने बहुत चाहा था कि किसी प्रकार बातचीत का कोई क्रम आरंभ हो जाए तो समय अच्छा कटे, परंतु यह हो किस प्रकार? वे तो एक-दूसरे के नाम तक से अपरिचित थे। कुछ देर दोनों इसी प्रकार चुपचाप बैठे रहे।
'देखिए, यदि कष्ट न हो तो सामने रखी सुराही में से एक गिलास पानी डाल दें। लड़की ने एक बिल्लौरी गिलास बढ़ाते हुए कहा।
राज पहले तो चौंक पड़ा, परंतु फिर उसने संभलते हुए गिलास पकड़ लिया। उसके हाथ कांप रहे थे। राज ने गिलास भर दिया और वह पीने लगी। राज के चेहरे पर एक रौनक-सी दौड़ गई। उसने साहस किया और पूछा, आप कहां जा रही हैं?
'बंबई।'उसने तीखी नजरों से देखते हुए उत्तर दिया।
'मैं भी बंबई जा रहा हूँ।'
परंतु वह चुप बैठी रही। कुछ देर के मौन के बाद राज ने फिर पूछा, 'आप अकेली हैं या आपके साथ कोई और भी है?'
'अकेली हूँ, अब तुम पूछोगे... मेरा नाम क्या है, बंबई में कहाँ रहती हूँ आदि-आदि। आप परिचय ही चाहते हैं ना, तो सुनिये... नाम डॉली है। अकेली यात्रा इसलिए कर रही हूँ कि आप जैसे लोगों से मैं घबराती नहीं और बंबई में रहती कहां हूं, इसलिए बतला नहीं सकती कि आप जैसे जिंदादिल नवयुवक परिचय करते-करते घरों तक पहुंच जाते हैं और कुछ पूछना है आपको...?' वह सब एक ही सांस में कह गई।
'जी नहीं, इतना ही बहुत है।' राज वहां से उठकर सामने वाले यात्री के पास जा बैठा जो डॉली की तेज आवाज सुनकर उठ बैठा था।
"क्यों साहब, क्या बात है?' वह नींद में ही बोला।
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