RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
डॉली उसे देखते ही चिल्लाई 'तुम मेरा पीछा करते हुए यहां तक आ पहुंचे!'
'तो क्या यह सेठ श्यामसुंदर.....।'
'हां, हां उन्हीं का मकान है। आप जैसे लोगों को किसी के सूटकेस या बिस्तर से पता नोट करते क्या देर लगती है?' वह आवेश में बोल रही थी, 'कुशलता चाहते हो तो यहां से निकल जाओ।'
'यह शोर कैसा?' दूसरे कमरे से किसी की आवाज आई।
'डैडी, देखिए ना यह साहब....।'
'हैलो राज! तुम कब आए?' सेठ जी ने कमरे से निकलते ही पूछा।
'अभी फ्रंटियर से।'
'डॉली भी तो इसी ट्रेन से आ रही है, परंतु तुम्हारा परिचय नहीं हुआ। यह है मेरी इकलौती बच्ची, डॉली। सेठ साहब ने डॉली के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, और यह हैं राज, जिनके यहां हम चंद्रपुर में एक रात रुके थे।'
'नमस्ते। बहुत प्रसन्नता हुई आपसे मिलकर।' राज ने सस्मित कहा।
डॉली का चेहरा पीला पड़ रहा था। वह इस प्रकार मौन खड़ी थी मानों उसके मुंह को ताला लगा दिया गया हो। राज के होंठों पर एक मुस्कराहट थी।
'जमींदार साहब कैसे हैं? उन्हें भी साथ ले आए होते।'
ठीक हैं, दिल तो उनका भी आपसे मिलने को बहुत चाहता था परंतु उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा की आज्ञा नहीं देता। कुछ स्वास्थ्य और कुछ उनकी बनाई हुई दुनिया। उसे भी तो वह छोडना नहीं चाहते।
सेठ साहब हंसते हुए बोले, 'अच्छा राज, मैं एक आवश्यक काम से बाहर जा रहा हूं और दोपहर तक लौटुंगा। फिर जी भरकर बातें होंगी। इसे अपना ही घर समझो।'
'जी।'
'डॉली, इनके स्नान आदि का प्रबंध कर दो और किशन से कहो कि बाहर से सामाने ले आए।' और यह कहते सेठ साहब बाहर निकल गए।
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