RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज और डॉली एक-दूसरे को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहे थे। दोनों कुछ देर इसी प्रकार खड़े रहे। 'यदि मुझसे कोई अशिष्टता हो गई हो तो मैं क्षमा चाहती हूं।' डॉली ने दबे स्वर में कहा और पास वाले कमरे में भाग गई।
राज दबे पांव कमरे में प्रविष्ट हुआ। डॉली चुपचाप पलंग पर लेटी छत की ओर देख रही थी।
'डॉली!' राज ने धीरे-से पुकारा।
'जी? ओह मैं भूल गई। स्नान के लिए पानी।' वह शीघ्रता से उठी।
'देखिए मुझे कहीं जाना तो है ही नहीं और आप भी तो लंबी यात्रा से लौटी हैं, तनिक आराम कर लीजिए। मैं पानी के लिए किशन को कहे देता हूं।' राज ने नम्रता भरे स्वर में कहा और किशन को आवाज दे दी।
'आपने मेरी बात का कुछ बुरा तो नहीं माना?'
'नहीं साहब, मैं बुरा क्यों मानने लगा। यह भी जीवन में एक अद्भुत संयोग हुआ, हम सहयात्री बने और वह भी खूब....।' राज ने मुस्कराते हुए कहा।
'मैं दिल्ली एक सहेली के विवाह में गई थी। वापसी पर हम चार लड़कियां थीं। 'लेडीज' कम्पार्टमेंट में सीट्स न मिली, 'जेन्टस' में ही बुक करवा लीं, वे सब बीच में ही मथुरा उतर गई और मुझे बंबई तक अकेला आना पड़ा।'
'खैर, इसमें बुराई ही क्या है? आज की नई सभ्यता में पली लड़कियां तो सारे संसार में अकेली घूम आवे तो भी कोई आश्चर्य नहीं। हम जैसे जिंदादिल छोकरे आप लोगों का कर भी क्या सकते हैं!'
'आप तो लजित कर रहे हैं।'
'नहीं तो। यह तो वैसे ही हंसी हो रही थी।' दोपहर तक दोनों इसी प्रकार की बातें करते रहे और अपने-अपने जीवन के मनोहर चुटकुले एक-दूसरे को सुनाते रहे। दोपहर बाद सेठ साहब आए और सबने एक साथ बैठकर खाना खाया और फिर देर तक गप्पें चलती रहीं। शाम को सेठ साहब राज और डॉली को अपने साथ बाहर सैर को ले गए और एक मित्र के घर में ही भोजन करके देर से लौटे।
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