RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज को श्यामसुंदर का अतिथि बने आज आठ दिन हो चुके थे। सवेरे सेठ साहब के साथ ही कारखाने चला जाता और शाम को ठीक पांच बजे लौट आता। डॉली भी उसी समय कॉलेज से आती। दोनों एक साथ ही चाय पीते। वह सोचता, आखिर कब तक वह इसी प्रकार उनका अतिथि बना रहेगा? उसे अब किसी दूसरे स्थान पर रहने का प्रबंध कर लेना चाहिए। एक दिन सवेरे जब सब बैठे चाय पी रहे थे तो राज ने सेठ साहब से कह ही दिया
'बंबई में स्थान तो शीघ्र मिलना कठिन है। मेरे एक मित्र यहां ग्रीन होटल में मैनेजर हैं। अभी तो एक कमरे का प्रबंध वहां कर लिया जाए। स्थान भी अच्छा है और किराया भी उचित। आपकी क्या सम्मति है?'
"परंतु इतनी जल्दी क्या है?' सेठ साहब ने केक का टुकड़ा मुंह में डालते हुए कहा, 'होटलों में रहना मुझे पसंद नहीं और फिर तुम अकेले हो। पहले काम-काज का प्रबंध हो जाने दो फिर देखा जाएगा। घर में ही तो बैठे हो।'
'वह तो सेठजी आपकी कृपा है, परंतु फिर भी....।'
'अच्छा छोड़ो इस विषय को।' सेठ साहब ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा, 'पहले काम की बातें हो जाएं। कल मैं ज्वालाप्रसाद के यहां गया था और तुम्हारे बारे में बातचीत भी की। परंतु सच पूछो तो मुझे वह काम तुम्हारे वश का नहीं दीखता। बहुत-सी कठिनाइयां हैं। तुम्हारे पास अभी अनुभव की कमी है। कम से कम एक डेढ़ वर्ष ट्रेनिंग में लगाओ तो कारोबार के सही भेदभाव जान सकते हो और यदि ऐसे ही पैसा लगाया जाए तो हानि होने का भय है।'
'यह तो ठीक कहते हैं। आजकल किसी प्रकार का रिस्क का समय नहीं, जो हो सब सोच-समझकर करना चाहिए। यह भी तो आवश्यक नहीं कि यही काम किया जाए। मुझे तो कुछ करना है, ताकि पिताजी यह न कह सकें कि एक छोटी-सी हठ के कारण मैंने जीवन नष्ट कर लिया और मुझे एक हारे सिपाही की भांति उन्हीं सूनी घाटियों में आश्रय लेना पड़े जिनसे विदा ले आया हूं।'
'इसका अभी से क्या कहा जा सकता है? मनुष्य का कर्त्तव्य तो प्रयत्न करना है, सो किए जाओ।' सेठ साहब ने बात बदलते हुए डॉली से कहा, जो चुपचाप बैठी दोनों की बातें सुन रही थी 'मेरी कुछ फाइलें यहां पड़ी थी?'
"वे सामने अलमारी में रखी हैं, अभी ला देती हूं।' डॉली ने कुर्सी से उठते हुए उत्तर दिया।
सेठ साहब ने जेब से घड़ी निकालकर देखते हुए कहा 'राज, एक काम करो। आज तुम बस में सीधे फैक्टरी चले जाओ। मैनेजर आ चुका होगा। उससे कहना कि मद्रास की पार्टी का सारा माल तैयार करवा दें, मुझे कुछ देर हो जाएगी। इम्पोर्ट ऑफिस जाना है। तुम वहीं रहना।'
'यह लीजिए।' डॉली ने फाइलें देते हुए कहा।
अच्छा डॉली, तुम्हें भी तो कॉलेज जाना होगा। जल्दी से तैयार होकर राज के साथ ही बस में चली जाओ। मुझे तो जाने में देर है। दस बजे दफ्तर खुलेगा।
'अच्छा डैडी।' थोड़ी देर में दोनों तैयार होकर सड़क के किनारे खड़े बस की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों चुप थे।
'क्यों, आज सवेरे से 'मूड' बिगड़ा हुआ दिखाई देता है?'
'नहीं तो।' डॉली ने होठों पर मुस्कराहट लाकर कहा।
'बात कुछ अवश्य है। चाय भी बहुत ही चुपचाप पी गई और अब।'
'उस समय तो डैडी आपके रहने का प्रबंध कर रहे थे। मैंने सोचा कि मुझे चुप ही रहना चाहिए। आजकल मकान बड़ी कठिनता से मिलते हैं और अब बस भी तो कोई आसानी से मिलती दिखाई नहीं देती।'
'दोनों हंस पड़े।'
'आपकी यहीं बातें तो हमें आपकी ओर खींच लेती हैं और आपकी खामोश सूरत देख नहीं सकते।'
'तनिक कम खींचियेगा। खींचा-तानी में कभी-कभी धागे टूट भी जाते हैं।'
'कोई बात नहीं। टूटे हुए जोड़ लेंगे।'
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