RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'देखिए, यदि आप मानें तो एक निवेदन करू?'साग का कटोरा आगे बढ़ाते हुए राज ने कहा।
'हां हां कहो।'
'यदि मैं आपके किसी काम आ सकू तो.....।'
"परंतु तुम तो अपना कारोबार करना चाहते हो?'
'यह कोई आवश्यक तो नहीं है। मुझे तो यदि आप आपने पास रख लें तो मेरा जीवन अवश्य सार्थक बन जाए।'
'भली प्रकार विचार कर लो। यह काम बड़े उत्तरदायित्व का है और यदि कल इससे ही उकता जाओ तो....।'
'मनुष्य करना चाहे तो सब कुछ कर सकता है। आप मुझे अवसर तो दीजिए।' राज ने विनम्र भाव से कहा।
'तो कल से काम सीखना आरंभ कर दो।'
'बहुत अच्छा।' राज ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया। घड़ी ने चार बजाए और राज ने घर जाने की आज्ञा ली।
'आज तो जा सकते हो परंतु कल से....।'
"मैं सब समझता हूं आप निश्चिंत रहे।' राज ने सेठ साहब की बात काटते हुए कहा और कमरे से निकल गया। उसके पैर बहुत तेजी से बढ़ रहे थे। राज बस से उतरते ही सीधे कोठी पहुंचा। डॉली पहले से ही उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। राज ने मुंह-हाथ धो लिए और दोनों एक-साथ चाय पीने को बैठे। डॉली की आंखों में एक अद्भुत सी मादकता भरी थी, होंठों पर एक दबी-सी चंचल मुस्कराहट थी। राज के वश में होता तो वह इन नेत्रों में सदा के लिए समा जाता। वह एकटक उसे देखे जा रहा था।
'क्या बात है? आज आवश्यकता से अधिक प्रसन्न दिखाई दे रहे हो। डॉली ने चाय का प्याला आगे बढ़ाते हुए कहा।'
'डॉली, कुछ बात ही ऐसी है कि....।'
'हम भी तो सुनें।'
'भविष्य में हर शाम की चाय इस प्रकार साथ बैठकर न पी सकेंगे।'
'तो इतने प्रसन्न होने की क्या बात है?' डॉली ने व्यंग्य से कहा।
'खुशी तो नहीं, मैं तो तुम्हें यह सूचना देने वाला था कि तुम्हारे डैडी ने मुझे अपने पास रख लिया है।'
'तो उन्होंने जाने को कब कहा था?'
'घर में नहीं कारखाने में।'
'अच्छा? मैंने समझा कि न जाने हृदय की कौन-सी अभिलाषा पूरी हो गई कि फूले नहीं समाते।' ।
'तो क्या यह कम प्रसन्नता की बात है कि अब तुम्हारे समीप रह सकूँगा?'
'मेरे समीप रहने से आपको क्या मिल जाएगा?'
राज एकटक डॉली को देखता रहा फिर डॉली का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला, 'सच पूछो तुम मुझे इतनी अच्छी लगती हो, यह मैं कैसे बताऊं? तुम क्या जानो कि तुम्हारी एक झलक के लिए मैं कितना व्याकुल हो उठता हूं।'
'अच्छा जी, बातें तो कवियों की भांति करते हो।' डॉली ने हाथ छुड़ाते हुए कहा, 'परंतु यह ध्यान रहे यह चंद्रपुर नहीं बंबई है।'
और वह दूसरे कमरे में चली गई।
राज भी पीछे-पीछे वहां जा पहुंचा।" 'आज का क्या प्रोग्राम है जी?'
'एक सहेली के घर जाना है, तुम अपने प्रोग्राम के आप मालिक हो।' 'यह कहकर वह ड्रेसिंग रूम में चली गई और राज अपने कमरे में।'
कुछ ही दिनों में उसने एक कमरे का प्रबंध कर लिया। यद्यपि वह इनके घर से जाना न चाहता था, परंतु वह यह भी भली प्रकार जानता था कि सेठ साहब कहें चाहे न कहें उसे अपना कर्त्तव्य भूलना न चाहिए।
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