RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'बहुत अच्छा।' राज ने कुर्सी पर बैठते हुए उत्तर दिया और जल्दी चाय का प्याला बनाकर पीना आरंभ किया।
'क्यों, आज बहुत जल्दी में हो क्या? अभी तो केवल आठ ही बजे हैं।' डैडी ने मुस्कराते हुए प्रश्न किया।
'नहीं तो। ओह, आपका प्याला बनाना तो भूल ही गया जल्दी में!'
'कोई बात नहीं।'
राज ने चाय बनाई और प्याला सेठ साहब के आगे रख दिया। सेठ साहब ने अखबार राज के हाथ में देते हुए कहा, 'सरक्युलर लिखता है कि 'इम्पोर्ट' पर फिर से पाबंदियां लगा दी जाएं, यह अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।'
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'क्यों डॉली क्या हुआ?'
'सब आप जैसे हितैषियों की कृपा है।'
'इसमें मेरा क्या दोष? वर्षा तो भगवान की इच्छा से हुई।'
'परंतु आग बरसाने वाले तो तुम थे।' और डॉली की आंखें फर्श पर जा टिकीं।
"डॉली, रात की बातों का कुछ बुरा तो नहीं माना तुमने?'
'जाओ हटो। दुःखी मत करो। तुम्हें बातें बनानी बहुत आ गई हैं।'
'मैं तो तैयार हूं, डैडी भी तो तैयार हैं। वैसे यदि तुम्हें मेरा ठहरना अच्छा नहीं लगता तो चला जाता हूं।' राज यह कहते हुए आवेश में कमरे से बाहर चला गया।
डॉली ने भावपूर्ण मुस्कराहट के साथ कहा 'पागल मनुष्य को क्रोध कितनी जल्दी आ जाता है।'
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