RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
फैक्टरी बंद होते ही राज घर पहुंचा। सेठ साहब बरामदे में तैयार खडे थे। कदाचित कहीं बाहर जा रहे थे। राज को देखते ही बोले, 'अच्छा हुआ कि तुम समय पर पहुंच गए। मैं आवश्यक काम से बाहर जा रहा था, डॉली अकेली थी।'
'कैसी तबियत है अब उनको।'
'अब तो कुछ आराम है। दोपहर को कुछ बुखार तेज हो गया था और पेट में भी सख्त दर्द था। डॉक्टर को बुलाया था। दवाई दे गया है।'
'कब तक लौटेंगे आप?'
'प्रयत्न तो शीघ्र आने का करूंगा। दवाई रखी है, दो घंटे तक एक खुराक दे देना।'
'बहुत अच्छा ।' राज डॉली के कमरे में चला गया। डॉली की आंखें बंद थी। शायद सो रही थी। उसे जगाना उचित न समझा और वह दबे पांव लौट पड़ा।
"कौन है! राज तुम आ गए। डॉली ने उसे देखकर पुकारा।
'मैं समझा कि तुम सो रही हो।'
'वैसे ही आंखें बंद थीं, नींद कहां!'
'डैडी कह रहे थे कि दिन में कष्ट अधिक था। अब कैसी हो?'
'अब तो तनिक आराम है।'
'बीमारी भी सुंदरता की उपासक है, नहीं तो मैं तुमसे अधिक भीगा था।'
'तुम्हें तो बस हर समय हंसी ही सूझती है। देखो, सामने मेज पर थर्मामीटर होगा।'
राज ने मेज पर से थर्मामीटर उठाया और धोकर डॉली के मुंह में रख दिया। उसे अब भी सौ डिग्री बुखार था।
'देखो सामने से कुर्सी ले लो और मेरे पास बैठ जाओ।' डॉली ने थर्मामीटर राज के हाथ में पकड़ाते हुए कहा।
राज कुसी लाकर उसके समीप आ बैठा और उसके मख की ओर देखने लगा। कभी-कभी डॉली भी उसकी ओर देख लेती। किसी के पैरों की आहट हुई, राज ने मुड़कर देखा। वह जय था। आते ही बोला, 'हैलो राज' और फिर डॉली को संबोधित करके बोला, 'क्यों डॉली, तबियत तो ठीक है?'
"वैसे ही जरा बुखार आ गया था।'
'मैंने सोचा कि न जाने आज कॉलेज क्यों नहीं आई। रात को तो तुम लोगों ने बहुत प्रतीक्षा कराई। कहां चले गए थे दोनों?'
'वास्तव में बात यह है कि हम लोग खेल समाप्त होने से पहले ही आ गए थे। मेरी तबियत कुछ खराब हो रही थी।'
'तो पूरी पिक्चर भी न देखी, खूब! मैं तो न जाने क्या सोचता रहा।'
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