RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
डॉली ने अब आनाकानी नहीं की। दवा पी ली और खाली प्याला राज को पकड़ाते हुए बोली, 'तुम कितने अच्छे हो। इतना तो कोई सगा भी किसी से न करे जितना तुम मुझसे....।'
'तो क्या तुम मुझे पराया समझती हो?'
'नहीं तो, यह बात नहीं। वैसे ही कभी-कभी सोचती हूं कि तुम मेरा इतना ख्याल क्यों रखते हो, मैंने तो कभी तुम्हारा कोई काम नहीं किया।'
'मैं तुम्हारा ध्यान क्यों रखता हूं?' राज मुस्कराने लगा, 'इसलिए कि तुम मुझे अच्छी लगती हो और जो वस्तु किसी को अच्छी लगे उसके लिए मनुष्य क्या-क्या नहीं करता है, यह तो तुम भली प्रकार समझ सकती हो।' ।
'तुम्हारी यह कविता तो मेरी समझ के बाहर है। जरा सामने की खिड़की बंद कर दो, हवा आ रही है।' राज ने उठकर खिड़की बंद कर दी।
'एक काम कहूं, करोगे?'डॉली राज की ओर देखते हुए बोली।
'क्यों नहीं!' उसने समीप आते हुए कहा।
जरा मेरी पीठ सहला दो। न जाने क्यों बहुत देर से जलन हो रही है। डॉली ने पेट के बल लेटते हुए कहा।
राज चपचाप उसके बिस्तर पर बैठ गया और धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाने लगा।
डॉली बोली, 'तुम भी कहोगे कि हुक्म चलाए जा रही हूं। करू भी क्या? और घर में है ही कौन। देखो न अब लड़कियों के काम भी तुमसे ले रही हूं।'
राज चुपचाप सुनता रहा।
'जरा और जोर से। तुम तो ऐसे नरम-नरम हाथ लगा रहे हो जैसे शरीर में जान ही न हो।'
राज और जोर से सहलाने लगा। उसका हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था। उसके हाथ तेजी से रेशमी वस्त्रों पर चल रहे थे। हाथ और शरीर की रगड़ से एक आग-सी उत्पन्न हो रही थी जिससे उसका हाथ जलने-सा लगा, परंतु इस जलन में भी उसे एक आनंद का अनुभव हो रहा था।
'यदि तुम लड़की होते तो अंदर हाथ डालकर सहलाने को कहती।'
'कुछ समय के लिए मुझे लड़की समझ लो।'
'ऊं ऊं. यह कैसे हो सकता है?'
'क्यों नहीं हो सकता?' राज ने यह कहते ही डॉली का शरीर अपने हाथों पर उलट लिया और उसकी मस्त आंखों में अपनी आंखें डबो दी।
डॉली घबराकर बोली, 'मेरी ओर घूर-घूरकर क्या देख रहे हो? मुझे इस प्रकार अपनी बांहों में क्यों उठा रखा है? तुम्हें ध्यान नहीं कि मैं बीमार हूं?'
राज उसके हृदय की तेज धड़कन स्वयं अनुभव कर रहा था। 'ओह! मैं तो भूल ही गया कि तुम बीमार हो।' उसने डॉली का शरीर ढीला छोड़ते हुए कहा और कुर्सी पर जा बैठा।
डॉली क्रोधित होकर बोली, 'यह कभी-कभी तुम्हें क्या हो जाता है? तुम पढ़े-लिखे मनुष्य हो, फिर न जाने जंगलीपन क्यों कर बैठते हो? कल रात भी....।' यह कहते-कहते वह रुक गई।
'डॉली, मैं एक मनुष्य हूं, देवता नहीं।'
'परंतु यहां तुम्हें देवता बनकर रहना होगा।'
'यह किस प्रकार संभव है कि कोई आग में जल रहा हो और उसके कपड़े न जले।'
'साफ-साफ कहो, तुम कहना क्या चाहते हो?'
राज ने डॉली की ओर देखा। कितनी सुंदर लग रही थी! वह आज अवश्य अपने हृदय के उद्गार उसके सामने उड़ेल देता और वह बोल ही तो पड़ा, 'डॉली, मैं तुमसे प्रेम करता हूं। तुम्हें अपना जीवन-साथी बनाना चाहता हूं।'
'अब तुम्हें हुआ क्या है, होश में तो हो?'
'होश में हूं। बहुत दिनों से प्रयत्न कर रहा था कि तुमसे यह सब कह दूं, परंतु तुम्हारा बचपन का-सा बर्ताव और वह आदर जो मेरे हृदय में तुम्हारे लिए है, मुझे इस अशिष्टता की आज्ञा नहीं देते थे और...।'
'राज मुझे तुमसे यह आशा न थी कि तुम मेरे इस स्वतंत्र बर्ताव को इतना गलत समझोगे। मैं तो तुम्हें एक चरित्रवान व्यक्ति समझती हूं।'
'किसी से प्रेम करना तो कोई पाप नहीं और न ही मैं तुम्हें बहकाने का प्रयत्न कर रहा हूं। वह तो सीधी-सी बात है कि मैं तुम्हें अपना जीवन-साथी बनाना चाहता हूं।'
|