RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
"ऐसे दिल तो सवेरे से शाम तक हजारों ले लो।'
'डॉली, अब इस बहस से क्या लाभ? बोलो, अब क्या करू?'
'कोई ऐसा उपाय सोचो जिससे उसके मन से यह संदेह दूर हो जाए।'
माला सोच में पड़ गई। थोड़ी देर बाद बोली, 'देखो यह काम तुम मुझ पर छोड़ दो, मैं अभी चली जाती हूं। राज आने वाला है। उसे यह न पता लगे कि मैं यहां आई थी।'
'इससे क्या होगा?' डॉली ने पूछा।
'तुम देखती जाओ, आज रात को एक पत्र तुम्हें भेजूंगी। तुम्हें मिलने से पहले किसी तरह उसे राज पढ़ ले तो सब काम बन जाएगा। घबराओ नहीं, मेरा काम तो तुम लोगों की सेवा करना है।' यह कहकर माला ने साइकिल उठाई और चल दी। डॉली की समझ में न आया कि उसे यह पत्र की क्या सूझी। कहीं और आपत्ति न खड़ी कर दे। माला ने घर पहुंचते ही डॉली के नाम एक पत्र लिखा और अंधेरा होते ही अपने नौकर को सिखाकर उसके घर भेज दिया।
नौकर पत्र लेकर डॉली के घर पहुंचा और उसने राज के कमरे की खिड़की से झांका। राज अपने कमरे में ही था। नौकर दरवाजे की ओर बढ़ गया और उसने धीरे-से खटखटाया। राज ने दरवाजा खोलते ही पूछा, 'क्या काम है?'
'ओह! क्षमा कीजिए मैं कमरा भूल गया। उसने कांपती आवाज में कहा, मुझे तो डॉली बीबी से काम है।'
'क्या काम है?' राज ने उतावलेपन से पूछा।
'यह चिट्ठी उन्हें देनी है।'
"किसने भेजी है?'
'यह मैं आपको नहीं बता सकता।'
'लाओ, मैं दे दूंगा।'
'नहीं साहब, यह केवल उन्हीं को देनी है।' उसने पत्र को राज के सामने करते हुए कहा। राज ने पत्र को संदेह की दृष्टि से देखकर हाथ से छीन लिया।
'साहब, यह आप क्या कर रहे हैं? यह तो डॉली बीबी....।'
'हां! मैं जानता हूं। जाओ मैं उसे दे दूंगा, वह घर पर नहीं है।'
'अच्छा साहब, मैं जाता हूं। किसी और के हाथ न लग जाए, बहुत प्राइवेट है।' यह कहकर वह मुड़ा और दरवाजे से बाहर निकल गया।
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