RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज ने लिफाफे को ध्यान से देखा। उस पर डॉली लिखा था। उसने सोचा कि हो न हो वह जय का पत्र है। नहीं तो चोरी-चोरी इस समय उसे यह पत्र और कौन भेज सकता है। देखें तो सही क्या लिखा है। यह सोचकर उसने लिफाफा पिन की सहायता से इस प्रकार खोला कि फिर से चिपकाने पर किसी को पता न चले कि किसी ने पत्र खोला है। पत्र खोलने पर सबसे पहले पत्र लिखने वाले का नाम पढ़ा। यह जानकर उसे आश्चर्य हुआ कि वह माला का पत्र था। उसने व्यर्थ ही खोला। परंतु फिर भी पढ़ने में क्या दोष है, यह सोचकर पढ़ने बैठ गया। "प्रिय डॉली, आज पूना से आए छः दिन हो चुके हैं और तुम मुझसे मिलने नहीं आई। मैं यह भली प्रकार जानती हूं कि मैंने जो बात हंसी में राज से पूना में कह दी थी, उसके कारण तुम मुझसे क्रुद्ध हो। मुझे क्या पता था कि मेरी साधारण-सी हंसी राज को तुमसे इतना दूर कर देगी और तुम्हें मुझसे। पहले तो मैंने सोचा कि स्वयं तुम्हारे पास आऊं परंतु साहस न हुआ। मेरी प्रिय सखी, अब जो हो चुका उसे भूल जाओ। सच पूछो तो मेरा इसमें दोष ही क्या है? मुझे क्या पता था कि राज तुमसे प्रेम करता है और तुम... नहीं तो मैं इस प्रकार की हंसी नहीं करती। आशा है तुम इस पत्र के उत्तर में स्वयं राज को साथ लेकर मुझसे मिलने आओगी।
- तुम्हारी माला।
राज ने माथे से पसीना पोंछा। क्या यह सत्य है? क्या माला ने जो कुछ कहा था हंसी में कहा था? परंतु डॉली का जय के साथ इस प्रकार रात के समय अकेले बातें करना, वह भी क्या हंसीमात्र था? उसे इतने शक्की स्वभाव का न होना चाहिए। आखिर वह उसका मित्र है और आधुनिक युग में तो लड़कियों के मित्र होते ही हैं। बुराई भी क्या है? मित्रता, मित्रता है। प्रेम - प्रेम। उसके मुख पर हल्की-सी चमक दौड़ गई। उसने सावधानी से लिफाफा बंद किया और डॉली के कमरे की ओर चल दिया।
वहां पहुंचकर उसने धीरे-से दरवाजा खटखटाया।
'अंदर आजाओ।' डॉली ने आवाज दी। राज धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर आ गया। उसे शर्म सी आ रही थी और वह भयभीत हो रहा था कि न जाने डॉली उसे देखते ही किस प्रकार का व्यवहार करेगी। डॉली बिस्तर पर बैठी एक पुस्तक पढ़ रही थी। उसे देखते ही बोली 'आओ राज।'
'यह पत्र कोई यह कहकर दे गया कि डॉली को दे देना।'
'तुमने क्यों कष्ट किया? किशन के हाथ भिजवा देते अथवा मुझे वहीं बुलवा लेते।' उसने पत्र को राज के हाथ से लेते हुए कहा और पत्र खोलकर पढ़ने लगी । पढ़ने के बाद फिर लिफाफे में डालते हुए बोली, 'खड़े क्यों हो, आओ बैठ जाओ।'
राज कुर्सी पर बैठ गया।
'वहां नहीं, मेरे पास।' उसने राज को इशारा करते हुए कहा।
राज डॉली के समीप आकर बैठ गया। डॉली बोली 'माला का पत्र है तुम्हें बुलावा भेजा है।'
'केवल मुझे या तुम्हें भी?'
'यह तुम कैसे जान गए?'
'इसमें जानने की क्या बात है, सहेली तो तुम्हारी है।'
'हां लिखा है कि आकर मुझसे मिल जाओ और राज को भी साथ ले आना। क्यों चलोगे?'
'अवश्य। क्यों नहीं? कब?'
'कल कुछ जल्दी आ जाना, चलेंगे।' इसके बाद दोनों चुपचाप एक-दूसरे को देखने लगे।
'डॉली! एक बात पूछू, तुम मुझसे नाराज तो नहीं?'
'नहीं तो।'
'मैंने सोचा शायद पूना वाली बात से तुम कुछ....।'
'इधर मैं समझ रही थी कि तुम नाराज हो।' डॉली ने बात काटते हुए कहा।
"वास्तव में यह मानव-स्वभाव है कि साधारण-सा भी संदेह उत्पन्न हो जाए तो साधारण घटनाएं भी उस संदेह की पुष्टि करने लगती हैं।'
'जय तो समीप रहने और कॉलेज में एक-साथ पढ़ने के कारण कुछ मेरे साथ घुल-मिल गया है। यदि तुम्हें पसंद न हो तो मैं उससे बोलना छोड़ दूं?'
'नहीं, ऐसा करने की क्या आवश्यकता है और फिर इसमें बुरी बात भी क्या है? क्या थोड़े ही दिनों में मैं माला से घुलमिल नहीं गया?'
'पुरुष कुछ अधिक संदेही स्वभाव वाले होते हैं।'
राज सोच रहा था.... यह भी अजीब लड़की है, पल में रुलाती है और पल में हंसाती है। रात में वस्त्रों में वह और भी सुंदर जान पड़ती थी और राज के मन में अजीब गुदगुदी पैदा कर रही थी। किशन पानी का गिलास रखने आया तो डॉली बोली, 'किशन! खाने के कमरे में एक प्लेट में माल्टे रखकर तो ले आओ।'
'अच्छा जी।'
और थोड़ी देर में किशन एक प्लेट में माल्टे लेकर लौट आया। 'यहां रख दो और तुम जाओ।' डॉली ने यह कहते हुए अपनी पुस्तक मेज पर रख दी। 'लो राज, खाओ।'
'इसकी क्या आवश्यकता थी!'
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