RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'मैं जानती हूं कि खाने के बाद तुमने फल नहीं खाया।'
'जब तुम्हें मेरा इतना ध्यान है तो काटकर भी खिला दो।'
'अवश्य।' और डॉली ने छुरी हाथ में ली। उसने माल्टे काटकर प्लेट में रख दिए और बोली, 'लो खाओ।'
राज ने प्लेट उठाकर उसके आगे बढ़ाते हुए कहा, 'पहले तुम।'
'मैं तो अभी खा चुकी हूं।' 'कोई बात नहीं, मेरा साथ ही सही।' डॉली ने एक टुकड़ा उठाकर चूसना आरंभ कर दिया और फिर राज ने भी। राज की दृष्टि डॉली के मुख पर जमी थी। बड़े प्यार से उसे माल्टे खिला रही थी वह। माल्टे के टुकड़े को चूसते समय राज को ऐसा लगता मानों वह डॉली के होठों का रस चूस रहा है। 'डॉली, एक बात पूछू?' राज ने छिलके प्लेट में रखते हुए कहा।
'पूछो।'
'तुम्हें जय पसंद है या मैं?'
'तुम्हारा मतलब मैं नहीं समझी।'
'मेरा मतलब? तुम्हें दोनों में से एक को चुनना हो तो किसे चुनोगी?'
'अभी तो मुझे तुम अच्छे लगते हो, आगे न जाने ऊंट किस करवट बैठता है। परंतु मेरे इन शब्दों का कोई और अर्थ न निकाल लेना।'
'नहीं, वह तो मैं भली प्रकार समझता हूं। अच्छा अब मैं चलता हूं। देर बहुत हो चुकी है। डैडी न आ जाए।'
'तो डैडी क्या कहेंगे?'
डॉली ने राज के हाथ में कैंची बनाकर कहा। 'यही कि इतनी रात तक तुम यहां क्या कर रहे हो?' 'क्या कुछ चोरी करने आये हो जो....।'
'हो सकता है?'
'क्या चुरा लोगे?'
'तुम्हारा हृदय।'
'जाओ, हटो तुम्हें तो शरारत ही सूझती है।' कहकर डॉली करवट बदलकर बिस्तर पर लेट गई। फिर धीरे-से बोली, "जरा बत्ती बंद करते जाओ। राज ने बत्ती बुझा दी और अपने कमरे की ओर चल दिया।
वह प्रसन्न मन अपने बिस्तर पर जा लेटा। दूसरे दिन वह ठीक समय पर डॉली के पास पहुंच गया। फिर दोनों माला के घर गए। वहां माला ने भी बातों-बातों में राज के मन से अनेक संदेह निकाल दिए। राज सब कुछ मान गया और पुरुष जब सुंदरियों के वश में हो जाए तो वह सब-कुछ मनवा लेती है। राज को डॉली की बातों पर विश्वास हो गया। वह जो कहती वह मान लेता। अभी तो वह उसे जय से अधिक पसंद करती है और लड़कियों को अभी तो... यह सोचकर वह मुस्कराने लगा। परंतु यह दिल-बहलावा और डॉली की बातें अधिक समय तक उसे प्रसन्न न रख पाई। एक रात जब वह सो रहा था तो किसी ने दरवाजा खटखटाया। वह घबराकर उठा। वह किशन था। बोला, 'जरा जल्दी से चलिए, सेठ साहब के पेट में बहुत दर्द हो रहा है।'
'क्यों, क्या बात है?' उसने चप्पलें पहनते हुए कहा।
'पता नहीं, मैं रसोई में बर्तन मांज रहा था। आवाज सुनकर गया तो वह बोले कि जरा राज या डॉली को जगा दो। मेरे पेट में बहुत दर्द है। इसलिए मैं आपके पास....।'
'अच्छा किया तुमने, डॉली की क्या आवश्यकता है। उसकी नींद खराब करने से क्या लाभ? चलों, मैं चलता हूं।' यह कहकर राज जल्दी से सेठ साहब के कमरे में पहुंचा।
'क्यों डैडी क्या बात है?' राज ने घबराकर पूछा।
'न जाने अचानक पेट में कुछ दर्द-सा उठा और बढ़ता ही जा रहा है। अब तो सहन भी नहीं होता। डॉली नहीं आई?'
'उसे जगाने की क्या आवश्यकता है, मैं जो हूं।'
'देखो, अलमारी में अमृतधारा रखी होगी, दो-चार बूंदें दे दो।' राज ने अलमारी खोली और शीशियां टटोलने लगा परंतु दवा न मिली।
'न जाने कहां रख दी। सौ बार कहा है कि प्रत्येक वस्तु अपने स्थान पर होनी चाहिए। देखो, सामने दराज में तो नहीं?' सेठ साहब ने कहा। वह दर्द से कराह रहे थे। राज ने दराज खोला और अमृतधारा मिल गई। उसने दो-चार बूंदें पानी में मिलाकर सेठ साहब को पिला दी। दर्द कुछ घटा, पर थोड़ी देर बाद फिर होने लगा। राज ने दो-चार बूंदें अमृतधारा और पिला दी।
|