RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज और डॉली के बीच अब एक दीवार-सी खड़ी हो गई थी। डॉली को अब वह अपने से दूर समझने लगा। जब डॉली उसे पसंद ही नहीं करती तो वह मूर्ख की भांति उसके पीछे क्यों पड़ा है? डॉली ने कई बार प्रयत्न किया कि राज को बातों में लाकर फिर से मना ले परंतु राज इस बार उससे दूर-दूर ही रहा। निराश होकर डॉली ने भी उपेक्षा प्रकट करनी आरंभ कर दी।
संध्या का समय था। राज घर लौटा तो डॉली बरामदे में रैकेट लिए खड़ी थी। शायद वह खेलने जा रही थी। राज ने चाहा कि उसका सामना न हो। वह दूसरी ओर जाने लगा। 'राज!' डॉली की आवाज ने उसे रोक दिया। वह राज के सामने आकर बोली, 'क्यों, मेरे सामने आते भय लगता है जो सीधा रास्ता छोड़कर टेढ़े रास्ते जाने लगे? भयभीत तो मुझे होना चाहिए।'
'तुम्हारी तरह निर्लज्ज तो नहीं बन सकता।'
'तो बनने को कौन कहता है? तुम तो एक भले आदमी हो और भलाई अपना आभूषण मानते हो, फिर मुझ जैसी निर्लज्ज और चंचल लड़की से तुम क्या आशा रखते हो।'
"तुमसे मुझे क्या-क्या आशाएं थीं परंतु...।' वह मौन हो गया।
डॉली ने बात काटकर कहा, 'परंतु उस रात के दृश्य को देखकर अब जी भर गया और कोई इच्छा नहीं रही... यह कहना चाहते हो ना?'
'मैं तुम्हारा अभिप्राय नहीं समझा।'
'राज, मैं जानती हूं तुम्हें मुझसे घृणा हो गई है, होनी भी चाहिए। तुम मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते। मेरी केवल एक इच्छा है यदि मानो तो....।'
'क्या?'
'तुम मुझसे बोलना न छोड़ो। मैं तुमसे बोले बिना नहीं रह सकती। तुम जिस नाते से मुझे चाहते हो वह पूरा नहीं हो सकता और न अब तुम्हारे हृदय में उसके लिए कोई इच्छा ही शेष है परंतु मित्रता के नाते तुम मुझे नहीं छोड़ोगे।'
'मित्रता! कैसी मित्रता।'
'कम्पेनियनशिप।'
'तुम कैसे जानती हो कि अब मेरे हृदय में तुम्हें पाने की कोई इच्छा नहीं रही?'
'मुझे उस रात उस दशा में देखकर जो कोई भी होता, यही करता। क्या अब भी तुम्हारे हृदय में मेरे प्रति कोई झुकाव
'हो सकता है।'
'फिर तो मैं भाग्यवान हूं जो इतना होने पर भी तुम्हारे हृदय में मेरे लिए कुछ सहानुभूति है।'
"ऐसा ही समझ लो। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण किसी के मन को ठेस पहुंचे। इस प्रयास में मेरा अपना अस्तित्व ही मिट जाए तो मुझे परवाह नहीं।'
'राज, मुझे तुमसे यही आशा थी। जब तुम मेरा इतना ख्याल रखते हो तो मुझे एक वचन दो।'
'कैसा वचन?'
'कि तुम मेरे और जय के रास्ते में न आओगे।' 'मैं जय से प्रेम करती हूं और मैं....' 'मैं तुम्हारा दिल दुखाना न चाहती थी।'
'बस डॉली, बस! क्या तुम समझती हो कि इन बातों से मेरे हृदय को शांति मिल रही है?'
'परंतु अब मैं तुमसे कुछ छिपाकर रखना नहीं चाहती। तुम विश्वास दिलाओ कि अब मेरा ख्याल छोड़ दोगे।'
'प्रयत्न करूगा, विश्वास नहीं दिला सकता।' यह कहकर राज अंदर चला गया। डॉली भी उसके पीछे-पीछे गई।
'तुम्हारी आंखों में आंसू कैसे?'उसने राज को रोते देखकर कहा।
'अभी हृदय पतथर का नहीं बना। प्रयत्न कर रहा हूं।'
'तुम तो बालकों की भांति रोने लग गए।' डॉली ने अपने रुमाल से उसके आंसू पोंछे।
'तुम जाओ डॉली, मुझे अकेला छोड़ दो। मैं प्रयत्न करूंगा कि जो कुछ हुआ है उसे शीघ्र भूल जाऊं।'
'तुम भी साथ चलो न, कुछ देर खेलकर लौट आएंगे।'
"मेरी इच्छा नहीं. तम जाओ।'
'मेरी बात का बुरा तो नहीं माना तुमने।'
'बुरा क्यों मानने लगा और फिर तुम्हारी बातों का?'
'अच्छा राज!' डॉली ने राज के हाथ को अपने हाथ में दबाते हुए कहा और बाहर चली गई।
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