RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज बहुत उदास था। आज उसकी रही-सही आशा भी उसे छोड़ गई। क्या यह सब सत्य था? उसने प्रेम किया है अपने को खोकर... परंतु डॉली का व्यवहार? कभी स्वप्न में भी वह नहीं सोचता था कि डॉली उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार करेगी। इसी प्रकार विचारों में संध्या बीत गई और वह कमरे में ही लेटा हुआ इस गुत्थी को सुलझाने का प्रयत्न कर रहा था कि किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया....| 'कौन है?'
"मैं माला।'
'दरवाजा खुला है, अंदर आ जाओ।' माला ने दरवाजा खोला और अंदर आ गई। राज उठ बैठा और बोला, 'आओ माला।'
'डॉली कहां है?' 'बैडमिन्टन खेलने गई है।'
'अच्छा , क्या तुम सो रहे थे?'
'नहीं तो।'
'आंखों से ऐसा जान पड़ता है कि नींद से उठे हो या रो रहे थे।
अभी आया हूं, थका हुआ था। चलो ड्राइंगरूम में चलकर बैठे।
दोनों उठकर ड्राइंगरूम की ओर चल दिए। राज, तुम कुछ छिपा रहे हो। मेरे आने से पहले तुम अवश्य रो रहे थे।
'नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मैं अभी हाथ-मुंह धोकर आता हूं।' यह कहकर राज गुसलखाने में चला गया और माला ड्राइंगरूम में बैठी उसकी प्रतीक्षा करने लगी। थोड़ी ही देर में राज मुंह-हाथ धोकर माला के पास आ गया और दोनों एक साथ चाय पीने लगे।
माला ने पूछा, 'आज चाय इतनी देर से क्यों? डॉली तो कहती थी, आप दोनों शाम की चाय एक साथ पीते हैं। झगड़ा हो गया है?'
'नहीं तो, इसमें झगड़े की क्या बात है? आज मैं कुछ देर से आया। वह पीकर जा चुकी थी।'
'तुम्हें यह कैसे पता चला कि वह बैडमिंटन खेलने गई है?'
"रैकेट उसके हाथ में था।'
'अभी तो तुमने कहा कि वह तुम्हारे आने से पहले ही जा चुकी थी।'
"मेरा मतलब.... वह जा रही थी।'
'हूं। कुछ दाल में काला अवश्य दिखाई देता है। राज, मुझसे क्यों छिपाते हो, हो सकता है कि मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकू।'
तुमने झूठ क्यों बोला था माला
'मैं समझी नहीं।'
"तुमने पूना में जो कुछ मुझसे कहा था वह सत्य था। फिर न जाने क्यों मैं मूर्ख की भांति डॉली की बातों में आकर सब कुछ भूल गया और विशेषकर मुझे तुम्हारे पत्र में लिखी बातों ने बहुत धोखे में रखा।'
'कौन-सा पत्र?'
'जो तुमने डॉली को लिखा था। भूल से मैंने पढ़ लिया। तुमने अपनी सहेली को मनाने के लिए झूठ लिखा था। परंतु मुझे कहीं का भी न रखा।'
'जब वह तुम्हें नहीं चाहती तो फिर तुम इतने आतुर क्यों हो?'
'तुम क्या जानो माला। परंतु अब ऐसा ही करना होगा। उसने आज साफ-साफ कह दिया कि वह जय को पसंद करती है और मुझसे वचन मांगा है कि मैं उनके रास्ते में न आऊं।'
'मैं तो पहले ही समझती थी कि वह कभी तुम्हारी नहीं हो सकती।'
'कितना अच्छा होता, यदि मैं पहले से ही जान लेता।'
'अच्छा अब चलती हूं।'
'अभी ठहरो ना, डॉली आती होगी।'
'नहीं, पता नहीं कब आए।' यह कहकर माला उठी।
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