RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'छोड़ दो मुझे, यही समझना कि मैं तुम्हारे लिए मर गई हूं।'
'डॉली, यह मेरे जीवन-मरण का प्रश्न है।'
'तो जाकर तेजाब पी लो ना, किस्सा ही समाप्त हो जाए।' डॉली ने जोर से हाथ छुड़ाया और वापस खाने के कमरे में चली गई। राज वहीं खड़ा रहा।।
कुछ देर में जय और डॉली खाना खाकर ड्राइंगरूम में चले गए। बैरिस्टर साहब और जय के चले जाने पर डॉली अपने कमरे में चली गई और सेठ साहब राज के कमरे में।
'डैडी आप....?'
'क्यों क्या बात है, तबियत तो ठीक है। डॉली कह रही थी कि तुमने खाना भी नहीं खाया।' ।
'जी कुछ भूख कम थी, सोचा कुछ देर ठहरकर खा लूंगा।'
'दो तो बज गए हैं और कब खाओगे। चलो खा लो, गरमी हो जाएगी।' राज उठा और जाने लगा। सेठ साहब भी उसके साथ-साथ खाने के कमरे में चले गए और बैठकर बातें करने लगे। 'राज, जानते हो बैरिस्टर साहब क्यों आए थे?'
'किसी कारोबार के बारे में?'
'नहीं, डॉली की सगाई के लिए।'
'किससे?' राज के हाथ का कौर हाथ में ही रह गया।
'जय से।' क्यों राज, लड़का भी तो अच्छा है, घर भी अच्छा है और बैरिस्टर साहब ने आप ही रिश्ता मांगा है।
'परंतु मैं क्या परमर्श दे सकता हूं। आप अधिक समझ सकते हैं।'
'डॉली को तो कोई आपत्ति नहीं होगी?'
'आपके घरेलू मामलों को जितना आप स्वयं समझ सकते हैं, दूसरा क्यों कर समझ सकता है?'
'आखिर तुम भी तो मेरे ही हो। डॉली के चले जाने के बाद मेरा है ही कौन?'
'उसे क्या आपत्ति हो सकती है? लड़का अच्छा है, धन है, मान है और क्या चाहिए उसे?'
'परंतु लड़िकयां अपनी इच्छा की होती हैं। एक बार उससे पूछ तो लेना चाहिए। पर पूछे कौन? घर में मेरे सिवाय है कौन और मैं कैसे पूछू। राज तुम तो डॉली से बहुत खुले हुए हो।'
'आपका मतलब?'
'यही कि बहन-भाई आपस में हंसी करते ही रहते हैं और -हंसी में तुम उससे पूछ सकते हो।'
'और यदि उसे यह स्वीकार न हो तो....?'
'तो मुझे क्या पड़ी है? मुझे तो उसकी प्रसन्नता ही चाहिए।'
'प्रयत्न करूगा।' राज ने उत्तर दिया। सेठ साहब उठकर दूसरे कमरे में चले आए। राज ने जैसे-तैसे एक चपाती खाई और हाथ धोकर अपने कमरे में जाकर लेट गया। तो डॉली की सगाई जय से हो रही है! डॉली को जय पसंद है। यह सब सोचकर वह हंसने लगा। उसका हृदय रो रहा था। उसका संसार उसके सामने ही नष्ट हो रहा था। परंतु वह क्या करता और कर भी क्या सकता था! मनुष्य यदि अपनी इच्छा की वस्तु पा सकता तो पीड़ा का कोई अस्तित्व ही न रहता।
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