RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
संध्या के समय सेठ साहब अपने कमरे में बैठे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे। डॉली कहीं बाहर गई थी। इतने में दरवाजा खुला और राज ने कमरे में प्रवेश किया। 'आओ राज।' सेठ साहब ने ऐनक में से नजरें ऊपर उठाते हुए कहा। राज चुपचाप जाकर उनके समीप ही खड़ा हो गया और सिर नीचा किए अपनी उंगलियों से खेलने लगा।
सेठ साहब समझ गए कि कुछ कहना चाहता है। 'क्यों राज, कैसी तबियत है?'
'अब तो अच्छी है डैडी....।' कहते हुए वह रुका तो सेठ साहब बोले- 'क्यों, क्या बात है, रुक क्यों गए?'
'मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।'
'क्या?'
'कहने से पहले इस अशिष्टता के लिए क्षमा चाहता हूं।'
'कौन-सी ऐसी बात है जो इतना....?'
'मुझे आपसे कुछ मांगना है।'
"क्या ?'
'डॉली।'
'यह तुम क्या कह रहे हो, राज?'
'मैं आपसे ठीक ही कह रहा हूं। कई दिन से कहने का विचार कर रहा था परंतु....।'
'मुझे तुमसे यह आशा न थी।' सेठ साहब के मुख पर क्रोध की रेखाएं खिंच गई।
'मैं कोई पाप नहीं कर रहा। क्या मैं इस योग्य नहीं?'
'मेरा तुम्हें अपने घर में रखना और डॉली के साथ इस प्रकार स्वतंत्र मेल-जोल की आज्ञा देने का यह अभिप्राय....।'
'मैं नहीं समझता कि मैंने इस अवधि में आप लोगों द्वारा दी गई सुविधाओं का दुरुपयोग किया हो।' राज बीच में ही बोल उठा, "मैं उससे प्रेम करता हूं और प्रेम करना कोई अपराध नहीं।'
'क्या डॉली को इसका ज्ञान है?'
'मैं कह नहीं सकता। जहां तक मैं समझता हूं उसे भी....।'
'राज तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे पिता के समान हूं?'
'इसीलिए तो मैं सीधा आपके पास चला आया।'
'और यह भी अच्छी तरह जानते हो कि जय से उसके बारे में बात भी हो चुकी है?'
'इसीलिए तो मुझे यह अशिष्टता समय से पहले करनी पड़ी।'
'इसका अर्थ यह हुआ कि बहुत समय से तुम्हारे दिमाग में....।'
'जी, इसे डॉली भी भली प्रकार से जानती है।'
'यह सब बकवास है डैडी।' डॉली ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा। वह दरवाजे के पीछे से सब बात सुन रही थी।
'यह सब क्या तमाशा है? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता। डॉली, तुम यहां से जाओ।' सेठ साहब ने डॉली से कहा और वह नाक सिकोड़ती हुई दूसरे कमरे में चली गई। सेठ साहब ने राज को संबोधित करके कहा 'राज, ये सब बातें कहकर तुमने बहुत बुरा किया।'
'हमारा खानदान क्या किसी से कम है? और मेरे पिताजी को आप अच्छी तरह जानते हैं। हमारी हैसियत से भी आप अपरिचित नहीं। यह दूसरी बात है कि मैं आज आपका नौकर
'लंबी-चौड़ी बहस की मुझे आदत नहीं। मेरा इतना उत्तर ही बहुत है कि यह सब असंभव है।'
'क्यों?'
'इसका उत्तर देना मैं उचित नहीं समझता।' 'इसलिए कि डॉली तुम्हें पसंद नहीं करती।'
'यदि मैं यह कहूं कि यह सत्य नहीं तो?'
'वह कभी झूठ नहीं बोल सकती, मुझे विश्वास है।'
'तो इसका अर्थ यह हुआ कि आपको मुझ पर विश्वास नहीं?'
'हो सकता है।'
'आप लोग व्यापार के लिए तो मुझ पर विश्वास कर सकते हैं परंतु मेरी कही हुई बात पर आपको विश्वास नहीं?'
"तुम आवश्यकता से अधिक अशिष्टता पर उतर आए हो।'
'आप यह अनुभव नहीं कर सकते कि मेरे ऊपर क्या बीतती है और मैं इसके लिए कितना पतित हो चुका हूं।'
'क्या कुछ और पतित होना बाकी है?'
'आप मुझे गलत समझ रहे हैं।'
'मेरी आंखों से दूर हो जाओ।'
'आपकी आज्ञा सिर-आंखों पर परंतु यह न भूलिए कि आपके पास डॉली मेरी धरोहर है।' यह कहकर राज बाहर निकल गया। सेठजी ने क्रोध में हाथ की पुस्तक फेंक दी और डॉली के कमरे की ओर चल दिए।
सेठ साहब और डॉली अब एक उलझन में पड़ गए। डॉली को आशा न थी कि राज यहां तक बढ़ सकता है और सेठ साहब ने तो ऐसा स्वप्न में भी न सोचा था।
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