RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'तो क्या यह कोई स्वयंवर हो रहा है? तब तो हमारा भी चांस है।'
डॉली ने धीरे-से अपना पांव मारा। राज समझ गया कि यह चुप रहने की सूचना है। वह चाय पीने लगा।
अनिल ने कहा 'राज, मान लो कि यह एक स्वयंवर हो रहा है तो तुम्हें किसी से यह आशा है कि वह तुम्हारे गले का हार बन जाए?'
'क्यों नहीं? आखिर जो भी आता है किसी आशा पर ही आता है।'
'मॉडर्न स्वयंवर में किसी माला की आवश्यकता नहीं, केवल संकेत से ही काम चल जाता है।'
'हमें भी तो मालूम हो कि वह कौन-सा संकेत है?'
'भई, हम तो इतना जानते हैं कि अगर कोई लड़की तुम्हारी चुटकी ले जाए तो समझो वह तुम्हें पसंद करती है। यदि कोई धीरे-से चोरी-चोरी पैर से ठोकर लगा दे तो समझो उसे तुमसे प्रेम हो गया।' यह सुनकर सब हंस पड़े।
राज धीरे-धीरे चाय का प्याला पीते हुए मेज के दूसरे किनारे पर जा खड़ा हुआ और सब लोगों की तरह-तरह की बातें सुनने लगा।
'भला क्या आपत्ति हो सकती है।' अनिल ने कहा। 'राज साहब, यदि आपके हाथों में फूलों की माला हो और स्वयंवर में आपको छोड़ दिया जाए तो आप माला किसके गले में डालेंगे?'
'यह काम किसी लड़की को सौंपा होता तो अच्छा था।'
'कुछ समय के लिए यदि आप लड़की बन जाएं तो क्या अंतर पड़ता है? कल्पना ही कर लीजिए।'
'यदि कुछ समय के लिए यहां की सब लड़कियां अपने आपको लड़का समझने लग जाएं तो....।'
'मान लो समझ लें फिर....।'
'राज ने चारों ओर देखा। सब उसकी ओर देख रहे थे कि उसकी दृष्टि कहां जाकर ठहरती है। उसकी आंखें घूमती हुई डॉली पर जा रुकीं।
सब राज की ओर देखने लगे। उसने उंगली से डॉली की ओर संकेत किया।'
'तुम्हारा मतलब, डॉली?'सबके मुंह से एक साथ निकला।
'जी! डॉली।'
'तो जय बेचारा क्या करेगा?' अनिल बोला और सब हंसने लगे।
डॉली ने क्रुद्ध होकर कहा, 'राज मुझे यह अशिष्टता पसंद नहीं।'
'इसमें अशिष्टता क्या? यह कल्पना ही तो की जा रही है।'
जय से रहा न गया। उसने कहा 'इस प्रकार की हंसी अपनी बहनों से नहीं की जाती।'
'ओह! मुझे पता न था कि डॉली तुम्हारी बहन है।' राज ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।
'राज होश में रहो। यह तुम क्या कह रहे हो? आखिर शराफत भी कोई चीज है।'
'शराफत?' वह जोर से हंसा और फिर बोला, 'शराफत तो उसी मनुष्य के पास है जिस बेचारे को कोई अवसर नहीं मिला। अंतर केवल इतना है कि किसी को आधी रात के अंधेरे में और किसी को दिन के उजाले में अवसर मिल ही जाता है।'
'तुम आवश्यकता से अधिक बढ़ते जा रहे हो।
डॉली बोली, कृपा करके यहां से चले जाइएगा।'
राज चुपचाप बाहर की ओर जाने लगा। चाय का प्याला तब उसके हाथ में था। वह दरवाजे के पास रखी मेज पर उसे रखने लगा।
तभी उसे जय के ये शब्द सुनाई दिए, 'कमीना कहीं का!'
इतना सुनना था कि राज उल्टे पैरों वापस लौटा। सब मौन खड़े उसकी ओर देख रहे थे। राज जय के ठीक सामने आ गया। उसके मुख पर रोष था, आंखें मानों चिनगारियां बरसा रही हो.... लगता था कि वह आपे से बाहर हो जाएगा... परंतु दूसरे ही क्षण उसने हाथ का प्याला मेज पर दे फेंका और मुंह फेरकर धीरे-धीरे बाहर चला गया।
कुछ अतिथियों के कपड़ों पर गरम चाय गिरी और कुछ पर प्याले के टुकड़े। दो-चार की तो चीख निकल गई और कुछ घबराकर पीछे हट गए।
रात के नौ बजे थे। राज वापस आया और उसने अभी अपना कोट उतारकर अलमारी में रखा ही था कि किशन कमरे में आते ही बोला, 'आपको साहब बुला रहे हैं।'
'कहां?' 'अपने कमरे में।
'चलो, अभी आता हूं।' यह कहकर राज किशन के पीछे-पीछे हो लिया। यह जानता था कि सेठ साहब उससे क्या कहने वाले हैं, परंतु आज उसके हृदय में किसी प्रकार का भय नहीं था। वह बेधड़क सेठ साहब के कमरे में जा पहुंचा। वह क्रोध में भरे अपने कमरे में चक्कर काट रहे थे। 'कहिए क्या आज्ञा है?'
'आओ, कहो कब आए?'
'आज शाम की गाड़ी से।'
'तुम्हारे पिताजी की आकस्मिक मृत्यु से बहुत दुःख हुआ।'
'इस पर मेरा दुर्भाग्य कि मैं उनसे अंतिम समय मिल भी न सका।'
'जो भगवान को स्वीकार हो उसे कौन टाल सकता है?'
'जी।' और राज लौट पड़ा।
'क्यों? कहां चल दिए?'
'कपड़े बदलने हैं। अभी बाहर से आया हूं। कहिए क्या आज्ञा है?'
'राज, तुम पहले ही बहुत दुःखी हो। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें और दुःखी करू, परंतु बात ही कुछ ऐसी है कि लाचार हूं।'
'क्यों, ऐसी क्या बात है, क्या मुझसे कोई भूल हो गई है?'
'आज शाम की पार्टी में जो कुछ हुआ, क्या उसको दोहराने की आवश्यकता है।'
'नहीं तो।'
'मेरी दी हुई स्वतंत्रता का तुमने दुरुपयोग किया।'
'मैं तो ऐसा नहीं समझता।'
'इसलिए कि तुम जानते हो कि तुम्हारे बिना मेरे कारोबार को ठेस पहंचेगी और मैंने तुम्हें कुछ ऐसे भेद बता दिए हैं जो न बताने चाहिए थे। परंतु यह याद रखना कि मैं अपनी हठ के लिए अपना घर भी नष्ट कर सकता हूं।'
'अशिष्टता के लिए क्षमा। वैसे हठ में मैं भी आपसे कम नहीं।'
'बदतमीज...। पहले सभ्यता से बात करना सीखो।'
'सभ्यता तो आप ही के पास रहकर सीखी है। विश्वास न हो तो डॉली से पूछ लीजिए।'
'उसका नाम अपनी गंदी जुबान पर न लाओ। वह तुम्हारी सूरत तक देखना नहीं चाहती।'
'परंतु मैं तो देखना चाहता हूं।'
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