RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
राज जब चंद्रपुर पहुंचा तो उसके पहुंचने से पहले ही हृदयगति बंद हो जाने से उसके पिता, जमींदार रामदास परलोक सिधार चुके थे। इस घटना से उसे हार्दिक दुःख हुआ। मुनीमजी ने उसे बताया कि उनकी अंतिम आकांक्षा यही थी कि राज को एक बार देख लेते। परंतु उनकी यह कामना पूर्ण न हो सकी। राज की आंखों से आंसू बह निकले। वह शहर जाकर कारोबार में इतना उलझ गया कि उसे अपने पिताजी का भी ध्यान न रहा। उसने यह दु:खद समाचार बंबई में सेठ साहब के पास भेज दिया। उसने रीति के अनुसार अपने पिता का क्रिया-कर्म कर दिया। निर्धनों को दान दिया और जमींदार साहब ने जो बातें वसीयत में लिखी थीं, सबको पूरा किया। वह अपनी सारी जायदाद राज को दे गए थे। जब वह सब आवश्यक काम कर चुका तो उसने सारी जमींदारी की जिम्मेदारी मुनीमजी को सौंप दी और उनसे कह दिया कि वह शीघ्र ही आकर वहां का कारोबार संभाल लेगा।
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आज राज बीस दिन के बाद बंबई वापस जा रहा था। स्टेशन पर जब उतरा तो उसका हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था। इसी बीच में सेठ साहब और डॉली ने शायद सोचकर उसको अपने मार्ग से हटाने का प्रबंध कर लिया हो। पिताजी की मृत्यु ने वैसे ही उसे आधा पागल बना दिया था। जब वह कोठी पहुंचा तो बरामदे में कोई न था। वह अपनी अटैची उठाये भीतर गया। अपने आने का समाचार उसने किसी को नहीं दिया था। संध्या का समय था। वह सोच रहा था कि डॉली कॉलेज से आ चुकी होगी। इसी समय उसे बहुत से आदमियों और औरतों के हंसने का शब्द सुनाई दिया, मानों कोई सभा हो रही थी। वह पिछले मार्ग से अपने कमरे में जाने लगा। जब वह दरवाजे के पास पहुंचा तो किसी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। वह घबरा गया। उसने घूमकर देखा। माला सामने खड़ी थी।
'ओह तुम!' उसने मुस्कराते हुए कहा।
'क्यों जी? चोरी-चोरी इस प्रकार अंदर आने का मतलब?'
'माला, अंदर यह सब क्या हो रहा है?'
'बताती हूं, पहले तुम बताओ, कब आए?'
'अभी तो आ रहा हूं सीधा।'
'तुम्हारे पिताजी के विषय में सुनकर दुःख हुआ। सुना है तुम्हारे पहुंचने से पहले ही....।'
'हां माला, यह मेरा दुर्भाग्य था कि अंतिम समय में उनसे न मिल सका।' कुछ देर दोनों मौन रहे। राज ने फिर पूछा, 'मेरे प्रश्न का उत्तर अभी तक नहीं मिला।'
'हां राज, डॉली की जय से बात पक्की हो गई है। अभी सगाई तो नहीं हुई परंतु डॉली से एडवांस पार्टी ली जा रही है। चलो कपड़े बदल लो और सम्मिलित हो जाओ।'
राज के सिर पर मानो किसी ने हथौड़ा मार दिया हो। भूमि और छत घूमती हुई दिखाई देने लगी। उसने अपने निर्जीव हाथों से कमरे का दरवाजा खोला और अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ गया। माला बड़े कमरे में लौट गई। थोड़ी ही देर में डॉली राज के पास आई और बोली, 'मुझे तो अभी माला ने बताया कि तुम आ गए हो। समाचार भेज देते तो मोटर पहुंच जाती।'
'कोई विशेष आवश्यकता तो थी नहीं, केवल एक अटैची साथ थी।'
'तुम्हारे पिताजी की आकस्मिक मृत्यु से तो तुम्हें बहुत धक्का लगा होगा। यह सब कैसे हुआ?'
'ईश्वर की इच्छा बड़ी प्रबल है।'
'अच्छा अब मैं चलती हूं। सब प्रतीक्षा कर रहे होंगे।' यह कहती हुई वह उछलती हुई कमरे से बाहर चली गई। राज ने जोर से दरवाजा बंद किया। शीघ्र ही राज तैयार होकर बड़े कमरे में पहुंचा। एक अच्छी सभा-सी लग रही थी। डॉली के सब मित्र व सहेलियां इकट्ठी थीं। सब मौन बैठे माला का गाना सुन रहे थे। वह धीरे से कमरे में आया। उसके आते ही माला गाते-गाते रुक गई और उसे निर्निमष नेत्रों से देखने लगी। गाना बंद होते ही सबने मुड़कर पीछे की ओर देखा। राज बहुत सुंदर दिखाई दे रहा था। डॉली ने भी उसे देखा। दोनों की आंखें चार हुई। वह धीरे से डॉली के पास आकर बैठ गया। माला ने फिर गाना शरु कर दिया। डॉली के एक ओर राज और दूसरी ओर जय बैठा था। दोनों कभी-कभी एक दूसरे को देख लेते मानों दो शिकारी एक ही शिकार के लिए एक-दूसरे को देखते हों। दोनों के बीच में डॉली मूर्ति की भांति बैठी थी और सामने माला की ओर देख रही थी। उसके मुख पर गंभीरता थी। माला का गाना समाप्त होते ही सबने तालियां बजाई। आज उसके गीत में एक वेदना थी। गाने के बाद डॉली ने राज का परिचय सब आने वालों से कराया। अनिल, जो बहुत देर से राज की ओर देख रहा था, उसका मौन भंग करने के लिए बोला, 'क्यों जी, क्या बात है? कुछ खोए-खोए बैठे हो!'
'मैं या आप सब लोग?' इस पर सब जोर से हंस पड़े।
"जान पड़ता है कि अभी तक इन भाई साहब को यह भी पता नहीं कि यह सभा क्यों लगी है।' एक साहब बोले।
'राज ने यह कहा, यह आप कैसे जान गए? सचमुच अभी तक मेरी समझ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है?'
'तो आप यहां पहुंचे क्यों कर?' अनिल ने पूछा।
'किसी ने बुलाया, मैं चला आया।'
'किसने?'
'यहां ही थीं यही कहीं... वह रही।' उसने डॉली की ओर संकेत करते हुए कहा।
'तो साहब, यह भी खूब रही। बुलाने वाले ने दावत पर बुला लिया और मेहमान आ भी गए। खाना-पीना आरंभ हो गया और मेहमानों को यह अभी तक नहीं पता कि दावत क्यों हो रही है?' अनिल ने हंसते हुए कहा और सब जोर से हंसने लगे।
'अगर मेहमानों को बताया ही न जाए तो इसमें उन बेचारों का क्या दोष?' राज ने चाय का खाली प्याला मेज पर रखते हुए कहा।
'तो आइए। मैं आपको बताए देता हूं।' अनिल ने राज को जय के सामने ले जाते हुए कहा, 'इनको तो आप जानते ही होंगे?'
'जी। इन्हें भला कौन नहीं जानता?'
और यह। उसने डॉली की ओर संकेत करते हुए कहा, 'यह तो हमारी होस्ट है ही। बस इस होस्ट और गेस्ट ने आपस में समझौता कर लिया है।'
'क्या?'
'कि जीवन भर एक साथ रहेंगे और इस खुशी में यह पार्टी....।' इतने में राज धीरे-धीरे चलकर डॉली के समीप पहुंच गया और बोला, 'चुनाव तो अच्छा है, यदि जीवन भर का साथ बन जाए तो।' उसने यह कहते हुए जय की ओर देखा। डॉली ने पीछे से चुटकी ली। वह मौन हो गया और बात बदलकर बोला, 'डॉली यदि एक कप चाय और बना दो तो कृपा होगी।'
'आज यार खूब जंच रहे हो। इस सूट में तो ऐसे बांके दिखाई देते हो कि हम लोगों को शर्म-सी आ रही है।'
'फिर तो मेरा सौभाग्य है कि आप लोग मुझे पसंद करने लगे।' राज ने कहा।
'अरे, हमारे पसंद करने से क्या? कोई लड़की पसंद करे तब ना।'
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