RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
रात को उन्होंने डॉली को अपने पास बुलाकर सब किस्सा सुनाया। उन बातों का आज तक डॉली को कुछ पता न था। वह भी उनके साथ उलझन में पड़ गई। अब क्या होगा। वह तो राज को एक दुर्बल युवक समझती थी। परंतु वह तो एक पर्वत बनकर सामने खड़ा हो गया। दोनों बाप-बेटी देर तक सोचते रहे परंतु कुछ सूझ नहीं पड़ा। चारों ओर अंधेरा था।
डॉली बोली, 'चाहे कुछ भी क्यों न हो, हम 'सोसायटी' में बदनामी सहन कर लेंगे परंतु अपने आपको कानून का हाथों में कभी न सौंपेगे। बिरादरी की बदनामी तो दो-चार दिन तक सब भूल जाएंगे। परंतु जमा हुआ कारोबार फिर से कभी न संभल सकेगा। रुपया है तो आदर उनके चरण चूमेगा और यदि यही न रहा तो यह बिरादरी उन्हें क्या दे देगी?'
उधर राज दूसरे दिन की प्रतीक्षा में था। जब संध्या हुई तो वह तैयार होकर अपने कमरे में बैठ गया। होटल की सीढ़ियों पर तनिक-सी आहट होती या मोटर का कोई हार्न बजता तो राज उठकर खिड़की के बाहर झांकता परंतु निराश होकर कुर्सी पर आ बैठता।
धीरे-धीरे पैरों की आवाज उसके कमरे के पास आकर रुक गई और किसी ने दरवाजा खटखटाया। राज ने लपककर दरवाजा खोला तो डॉली को सामने खड़ा पाया। 'डॉली तुम? आओ।'
डॉली अंदर आ गई और राज के पीछे से दरवाजा बंद कर दिया। डॉली कुर्सी पर बैठ गई। 'यह भी अच्छा हुआ कि डैडी ने उत्तर तुम्हारे हाथों भेज दिया।' राज ने डॉली के चेहरे की ओर देखते हुए कहा।
डॉली ने कमरे के चारों ओर एक सरसरी दृष्टि डाली और उत्तर दिया, 'जी।'
"फिर तो मुंह मीठा कराने के लिए कुछ मंगाऊ?'
'राज, क्या अभी तक तुम्हारे हृदय में मेरे लिए स्थान है या केवल अपनी हठ ही पूरा करना चाहते हो?'
'डॉली, तुम चाहे मेरी ओर से ध्यान हटा लो, परंतु राज से डॉली को कोई पृथक नहीं कर सकता। तुम्हारे लिए तो मेरे हृदय के द्वार सदा के लिए खुले हैं। ये दो आंखें तो तुम्हारी प्रतीक्षा करते-करते थक चुकी हैं।' राज कुर्सी के बाजू पर बैठ गया और डॉली के बालों को छेड़ने लगा।
'देखो, इस प्रकार किसी के बालों को छेड़ना ठीक नहीं।' यह कहकर डॉली कुर्सी से उठी और खिड़की में जा खड़ी हुई।
राज भी उसके पीछे जा खड़ा हुआ और बोला, 'डॉली देखो, सामने समुद्र में लहरें किस प्रकार तट से मिलने के लिए लालायित हैं।'
"मिलने जा रही हैं या टकरा-टकराकर वापस लौट रही हैं?'
'टकराएं या आकर मिलें, मतलब तो एक ही है।' राज फिर डॉली के बालों से खेलने लगा।
'मैंने कहा ना, किसी लड़की के बालों से खेलना नहीं चाहिए।'
'क्या दोष है?'
'लड़की अपनी सुध-बुध खो बैठती है।'
'मैं भी तो यही चाहता हूं कि तुम मुझमें खो जाओ।' उसने बाल पकड़कर डॉली का चेहरा अपनी ओर कर लिया और उसकी आंखों में आंखें डाल दीं।
डॉली की आंखों में वह चंचलता और उसके चेहरे पर वही आभा थी जो राज का सर्वस्व लूटकर ले गई थी। उसने अपनी बांहें डॉली की कमर में डाल दी और उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, 'डॉली कभी-कभी मुझ पर यह जंगलीपन-सा सवार हो जाता है। बुरा तो नहीं मान रही?'
डॉली ने तीखी नजरों से देखते हुए उत्तर दिया, 'चलो हटो।' और राज के पलंग पर जा लेटी। उसके होंठों पर अर्थभरी मुस्कान थी। राज उसके बालों से खेलने लगा। डॉली के बालों की सुगंध से राज पर नशा-सा छा गया। उसने अपनी नाक डॉली के बालों पर रख दी और उसके बालों को चूम लिया।
'डॉली, तो क्या मैं अब समझ लूं कि डैडी और तुमने मेरे ही पक्ष में निर्णय किया है?'
'निर्णय चाहे जो हो परंतु तुमने ऐसा क्यों किया?'
'इसके अतिरिक्त तुम्हें पाने का और कोई उपाय भी तो न था।'
'तुम तो कहते हो कि तुम्हें मुझसे सच्चा प्रेम है?'
'मैंने इसे कब अस्वीकार किया है?'
'सच्चा प्रेम तो ऐसा मार्ग अपनाने की आज्ञा नहीं देता।'
'कैसे?'
'सच्चे प्रेम में तो त्याग को प्राप्ति से मधुर माना जाता है। त्याग ही सच्चा प्रेम है।'
'केवल कायरों के लिए।'
'जो भी हो। अपना-अपना दृष्टिकोण है।'
'इसका अर्थ यह हुआ कि तुम अंतिम बार प्रयत्न करने आई हो कि शायद हवा का रुख बदल जाए।'
'नहीं. ऐसी कोई बात नहीं। मेरा निर्णय तो हो चूका।'
'क्या?'
'मैं तुम्हारी हूं।' डॉली ने बहुत धीमे स्वर में कहा और वह पलटकर सीधी होकर लेट गई।
राज अधीरता से बोला, 'क्या सच?'
'उठो ना या यों ही पड़े रहोगे।' डॉली ने राज का सिर ऊपर उठाते हुए कहा।
राज अपना सिर और भी जोर से दबाते हुए बोला, 'मैं आराम से हूं, मुझे ऐसे ही रहने दो।'
'देखो, मुझे गुदगुदी-सी हो रही है।'
'लो, यदि तुम्हें बुरा लगता है तो मैं यहां से उठ जाता हूं।' यह कहते हुए राज उठा परंतु डॉली ने जोर से हाथ खींच लिया। यकायक झटका लगने से राज अपने को संभाल न पाया और डॉली के वक्ष-स्थल पर जा गिरा। डॉली ने उसे खींचकर छाती से लगा लिया।
घड़ी ने आठ बजाए तो डॉली बोली, 'राज, बहुत देर हो रही है, अब मैं चलती हूं।'
'यह सुहावनी संध्या कितनी मंगलमयी है डॉली, जिसने हम दोनों को फिर से मिला दिया। यह घड़ी हमारे जीवन की सबसे मधुर घड़ी होगी।'
और वह डॉली को दरवाजे तक छोड़ने चला। डॉली ने पीछे मुड़कर देखा, 'अरे हां, वे कागज तो दे देते।'
"उनकी इतनी जल्दी क्या है?'
'जल्दी तो कोई नहीं। मेरा मतलब था कि डैडी को जब तक वे कागज न मिलेंगे, उन्हें व्यर्थ की चिंता रहेगी।'
'उसके लिए तुम न घबराओ। मैं उन्हें अपने-आप लौटा दूंगा।'
'यह दूसरी बात है, यदि तुम मुझ पर विश्वास नहीं तो....।'
'यह तुम क्या कह रही हो डॉली,
मेरा मतलब था कि यदि मैं ले जाती तो हम लोगों का आदर डैडी की नजरों में बढ़ जाता!'
तब तो अवश्य ले जाओ। यह कहकर राज कमरे के एक कोने की ओर गया। उसने अपना सूटकेस का ताला खोला और एक बड़ा-सा लिफाफा और डिब्बा उठा डॉली के हाथ में देते हुए बोला 'यह संभाल लो। सावधानी से ले जाना। अब खजाने की ताली तुम्हारे हाथ ही जा रही है। मेरे हाथ तो खाली हो चुके।'
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