RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'मेरे नाराज होने से क्या होता ही क्या है?'
'यदि तुम रूठ गए तो....।'
'जय जो है।' राज ने बात काटकर कहा।
'यह तुम क्या कह रहे हो राज?'
'मैं ठीक कह रहा हूं। मुझे आज पता चला कि तुम किस प्रकार अपनी मर्यादा खो बैठी हो।'
'मुझे तुमसे यह आशा न थी।'
'और डॉली मुझे भी....।'
'आज न जाने कितने दिनों बाद वह मुझसे मिलने आया था। तो न जाती, परंतु उसके बहुत कहने पर मुझे उसकी बात रखनी ही पड़ी। यदि तुम्हें यह भी पसंद नहीं तो मैं कभी
उससे बात न करूगी।'
'यह तो मैं जानता ही हूं कि वह कितने दिनों बाद आया था। खैर, इस वाद-विवाद से क्या लाभ! मेरा दृष्टिकोण इतना संकीर्ण नहीं।'
'तभी तो पीछा करते-करते सिनेमा तक पहुंच गए। यदि तुम्हारे हृदय में अभी इस प्रकार का संदेह है तो मुझे यह सोचकर आश्चर्य होता है कि हमारे भावी जीवन में क्या होगा?'
'क्या होगा, वह मैं भली प्रकार जानता हूं, अब चलने की तैयारी करो।'
"कहां?'
'चंद्रपुर।
'कब?'
"जितनी जल्दी हो सके।
"दो-चार महीने तो....।'
'महीने नहीं, दिनों में।'
'परंतु इतनी जल्दी क्या है?'
'तुम्हें जल्दी नहीं तो मुझे तो है।'
'और यदि मैं न जाना चाहूं तो...।'
'इंकार सुनने की मुझे आदत नहीं, मेरा यह अंतिम निर्णय है।'
'राज, मैं वहां अकेली किस प्रकार रहूंगी?'
"मैं जो साथ हूं, तुम्हारा जी बहलाने के लिए।'
डॉली ने बहुत चाहा कि वह बंबई रुक जाए परंतु राज उसके सामने एक चट्टान के समान था। उसने रोकने के लिए विनय, अनुरोध, क्रोध, छल प्रत्येक संभव चेष्टा की परंतु राज के सामने उसकी एक न चली।
राज के सामने डॉली के सब प्रयत्न असफल रहे। राज के प्रेम के साथ यदि छल हुआ तो वह सहन कर लेगा, परंतु उसके विश्वास को धोखा देने वाले व्यक्ति को वह कभी क्षमा न करेगा।
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