RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
रात आधी बीत चुकी थी। सब सो रहे थे। राज की आंख खुली तो उसने अंधेरे में ऐसा अनुभव किया मानों डॉली अपने बिस्तर पर न हो। उसने दो-तीन बार डॉली को पुकारा। कोई उत्तर न पाकर वह उठा और शय्या के पास जाकर देखा, डॉली बिस्तर पर न थी। वह दरवाजे की ओर बढ़ा। किवाड़ खुले थे। इतनी रात को अकेली कहां गई होगी? यह सोचकर वह अपनी टार्च लिए मुंडेर की ओर हांफता उसके निकट पहुंचा। उसकी सांस जोर-जोर से चल रही थी। उसने अस्फुट स्वर में कहा, 'डॉली... इस समय...यहां... तुम क्या कर रही हो?'
'नींद नहीं आ रही थी। हवा में बैठने के विचार से ऊपर चली आई।'
'इतनी रात में! अनोखा स्वभाव है तुम्हारा। मेरे तो प्राण निकले जा रहे हैं।'
'इसमें प्राण निकलने की क्या बात थी? मैं नदी में कूदने के लिए तो नहीं आई थी। उसने लापरवाही से उत्तर दिया।
राज को मानों किसी ने तमाचा मारा हो। धीरे-से बोला, 'क्षमा करना, अभी भगवान ने इतनी शक्ति नहीं दी कि तुम यह कर सको और न ही अभी तुम जीवन से इतनी तंग आ गई हो?'
'यह तुम कैसे जानते हो?'
इसलिए कि अभी मैं जीवित हूं। उसने उसी प्रकार अपनी बांहें डॉली की कमर में डालीं और अपने साथ नीचे ले जाकर उसे बिस्तर पर लिटा दिया। "डॉली, तुम जानती हो कि मन व्याकुल क्यों होता है?'
'मुझे जानने की आवश्यकता नहीं।'
'जानने में हानि भी क्या है। लो सुनो, मैं बताता हूं। मां बालक का सिर चूमती है ताकि उसका जीवन बना रहे। पिता बालक का माथा चमता है ताकि उसका यौवन बना रहे और वह उसका सहारा बन सके। मित्र और सहेलियां एक-दूसरे के गाल चूमते हैं ताकि मुख का सौंदर्य बना रहे और प्रेमी अपने प्रेमिका के होंठ चूमता है ताकि उसके यौवन का सारा माधुर्य वह चूस ले और उसके सहारे जी सके।'
डॉली मौन थी। राज ने उसे धीरे-से झिंझोड़ते हुए कहा, 'क्या सो गई?'
'नहीं तो। ऐसे ही तुम्हारे बे-पैर को सुन रही थी।'
'यह बे-पैर की नहीं, वास्तविकता है।' यह कहकर राज उठा और अपने पलंग पर जा लेटा। उसे धीरे-धीरे अनुभव होने लगा कि डॉली उससे घृणा करती है। उसके हृदय को ठेस लगी। राज अब डॉली को संदेह और घृणा की दृष्टि से देखने लगा।
डॉली भी यह बात ताड़ गई। अब उसे राज से डर लगने लगा। जब वह अपनी तीखी दृष्टि डॉली पर डालता तो वह सहम जाती। डॉली सोचती कि अब उसके लिए दो ही मार्ग हैं। आत्महत्या अथवा अपेक्षा।
राज के हृदय में अब यह भय था कि उसकी अनुपस्थिति में डॉली कहीं चली न जाए। उसने हरिया और चौकीदार को समझा कर चौकन्ना कर दिया।
विष्णु हवेली के चौकीदार का भाई था। उसे पहलवानी का बहुत शौक था। वह प्रायः अपने भाई से मिलने के लिए आया करता था और कई-कई दिन वहीं पड़ा रहता। जब कभी भी वह आता अपने साथ फल आदि ले आता, कुछ अपने भाई के लिए और कुछ उसके स्वामी राज के लिए। इन दिनों जब भी वह भीतर फल देने जाता तो डॉली का उससे सामना होता और वह फलों के बदले उसे पुरस्कार दे दिया करती। वह पुरस्कार पाकर बहुत प्रसन्न होता और अपनी फटी-फटी नजरों से डॉली को देखा करता। डॉली उसे इस प्रकार निहारते देख कर मुस्करा देती और वह उसे देखकर फूला न समाता।
नित्य की भांति एक दिन जब विष्णु ने फलों को टोकरा डॉली के सामने रखा तो डॉली ने मुस्कराते हुए उसकी हथेली पर दस रुपये का नोट रख दिया। वह आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा। आज एक के स्थान पर दस क्यों?
डॉली उसे आश्चर्यचकित देखकर बोली, 'तुम्हारा इनाम! तुम बहुत अच्छे हो।'
विष्णु फूला न समाया और दस का नोट पल्ले से बांध वापस जाने लगा। जब वह दरवाजे तक पहुंचा तो डॉली ने उसे आवाज दी 'क्यों विष्णु, मैं तुम्हें कैसी लगती हूं?'
डॉली का यह एक अनोखा प्रश्न था जिसे सुनकर विष्णु धर्म-संकट में पड़ गया। कुछ देर चुप रहने के बाद बोला - 'मैं कुछ समझा नहीं बीबीजी।'
"मेरा मतलब यह है कि तुम्हें मेरा स्वभाव पसंद है?' ।
'क्यों नहीं?' वह हंसते हुए बोला, 'आप जैसी देवियां भला किसे अच्छी नहीं लगतीं?'
"तो तुम मेरा एक काम करोगे?'
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