RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'मैं इसे अपना सौभाग्य समझूगा कि आपके किसी काम आ सकूँ।'
'तो मैं तुम पर विश्वास करू?'
'यह कहने की क्या आवश्यकता है? आप चिंता न करे।'
'यदि तुम यह काम करो तो मैं तुम्हें एक सौ रुपया इनाम दूंगी।'
'जान पड़ता है कि काम बहुत कठिन है जिसके लिए आप इतना अधिक इनाम....'
'ठीक है, परंतु घबराने की कोई बात नहीं। आओ, अंदर आ जाओ।' डॉली यह कहकर कमरे के अंदर चली गई। विष्णु धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे कमरे में आया और जाकर निःसंकोच डॉली के समीप ही बैठ गया। डॉली ने उसके कान में कुछ कहा। पहले तो उसने सिर हिला दिया परंतु डॉली के बहुत कहने पर उसने हां कर दी। थोड़ी देर तक वे इसी प्रकार बातें करते रहे। जाते समय डॉली ने विष्णु के हाथ में दस-दस के दो नोट रखे और बोली, 'बाकी इनाम काम हो जाने पर।'
राज संध्या को घर लौटा। अंधेरा बहुत हो चुका था। कपड़े उतार कर उसने डॉली के साथ खाना खाया। डॉली आज प्रसन्न दिखाई देती थी। जब वह हवेली के दरवाजे बंद करने गया तो डॉली भी उसके साथ थी। उसने ताले लगाए और चाबियों के गुच्छे को बहुत ही सावधानी से हाथ में लेकर कमरे की ओर जाने लगा। डॉली ने अपना हाथ राज की कमर में डाल दिया। राज जब बरामदे की सीढ़ियां चढ़ने लगा तो उसने देखा कि कोने वाली हौदी का दरवाजा खुला है। वह उल्टे पैर लौटा, 'न जाने कितनी बार इन लोगों से कहा है कि दरवाजा बंद रखा करें परंतु कोई सुनता ही नहीं', यह कहते-कहते उसने दरवाजे का पल्ला उठाया। उसे ऐसा जान पड़ा जैसे हौदी की सीढ़ियों पर कोई बैठा हो। उसने आवाज दी, 'कौन है?'
'मालिक मैं।'
'कौन तुम? विष्णु! यहां क्या कर रहे हो?'
'मैंने सोचा कि रात को बाहर पानी लेने कौन जाए। सोचा कि सीढ़ियों से उतरकर नदी में से भर लूं।'
'यदि जरा पांव फिसल जाता तो सीधे स्वर्ग की सैर करते। तुम्हारा दिमाग भी पहलवानी करते-करते मोटा हो गया है। देखो इसे बंद कर दो।' 'कल इन तख्तों में एक कुण्डी लगवा देंगे।'
यह सुनते ही विष्णु ने तख्ते बंद किए और राज डॉली को साथ ले अपने सोने वाले कमरे में चला गया।
डॉली ने कहा, ' इसमें इतना पानी तो नहीं कि कोई फिसल जाए।'
'अभी तो नहीं परंतु आगे चलकर बरसात में देखना, ये सब सीढ़ियां पानी में बिल्कुल डूब जाएंगी।'
'आपने जब विष्णु से कहा तो मैं डर-सी गई।'
'वह तो मैं ऐसे ही डरा रहा था ताकि फिर कभी वहां जाने का साहस न करे।'
'कितने अच्छे हैं आप!'
'यह तुमने अनुभव किया। अनोखी बात है।' राज ने बिस्तर पर लेटते हुए उत्तर दिया। डॉली राज के पास आकर लेट गई और अपना सिर राज की छाती पर रख दिया। उसके बटनों को खोलते और बंद करते हुए बोली, 'यदि सवेरे का भूला सांझ को...।'
'ठीक है डॉली।' राज ने बात काटते हुए कहा, 'ऐसी बात न करों, मेरे हृदय को दुःख पहुंचता है।' राज ने डॉली को प्यार से अपनी बांहों में ले लिया।
डॉली उसके और समीप आ गई और उसकी आंखों में आंखें डालकर देखने लगी। बोली, 'कैसे लग रहे हैं मेरे होंठ?'
राज के आश्चर्य का ठिकाना न । उसने कहा, 'नटखट कहीं की!' और डॉली को अपने हृदय से लगा लिया। 'अच्छा डॉली, अब तुम आराम करो।' राज ने डॉली का हाथ दबाते हुए कहा और वह उठकर अपने बिस्तर पर जा लेटी। राज भी आंखें बंद करके सोने का प्रयत्न करने लगा। वह हैरान था कि आज डॉली को क्या हो गया है, इतनी प्रसन्न तो वह विवाह के बाद आज ही हुई है। कुछ देर बाद जब डॉली को विश्वास हो गया कि राज सो गया है तो वह चुपके से उठी। उसने समीप रखी मेज के नीचे से एक अटैची निकाली जिसमें शायद उसके गहने इत्यादि थे। धीमे-धीमे पैर बढ़ाती हुई वह दरवाजे के पास जा पहुंची। उसने धीरे-से किवाड खोले और बाहर निकल गई। भयानक काली रात थी। हवा बहुत तेज चल रही थी। घास के खेत सांय-सांय कर रहे थे। हौदी के पास विष्णु पहले से ही बैठा था। उसने तख्ता उठाया और डॉली को साथ लेकर नीचे उतर गया। उसने तख्त उसी प्रकार बंद कर दिया। हौदी के अंदर बहुत अंधेरा था। विष्णु ने अपना हाथ फैला दिया और डॉली उसके हाथ का सहारा लेकर उसके साथ-साथ आगे बढ़ने लगी। नदी का पानी कुछ फुट की ही दूरी पर था, परंतु वहां तक पहुंचने के लिए भी भयानक दलदल में से होकर जाना था। वहां धूप न पहुंचने के कारण बहुत दुर्गध थी। डॉली ने अपनी नाक बंद कर ली और विष्णु से पूछा, 'सब तैयार है?'
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