RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। अकेला मनुष्य जाए भी कहां और घोड़े भी तो अच्छे नहीं मिलते।'
'तो आप कभी हमारे यहां पधारिए। एक से एक अच्छी जाति का घोड़ा मौजूद है और पहाड़ियों में घुड़सवारी को छोड़कर और कौन सा मनोरंजन हो सकता है?'
'देखिए, प्रयत्न करूंगी।'
इतने में राज वहां आ पहुंचा और कुर्सी पर बैठते हुए बोला, 'क्यों, अभी चाय नहीं आई?'
'वह सामने ला ही रहा है।' डॉली ने उत्तर दिया।
हरिया ने अपने स्वामी की आवाज सुनते ही शीघ्रता से चाय लाकर मेज पर रख दी। सब मिलकर चाय पीने लगे।" जब शंकर लाल वापस जाने को तैयार हुआ तो डॉली के बहुत अनुरोध करने पर उसे रात के खाने तक रुकना पड़ा। बहुत समय तक गपशप होती रही। खाने में कुछ देर थी तो शंकर लाल के कहने पर सब सड़क तक घूमने चले गए। डॉली को आज ऐसा जान पड़ा मानों शंकर लाल का आना बसंत का आगमन है। इन सूने जंगलों में एक भी तो ऐसा मनुष्य नहीं जिससे मेलजोल बढ़ाया जाए। धीरे-धीरे शंकर उनके घर आने लगा। राज का तो वह बहुत गहरा मित्र बन गया और डॉली का समय बिताने का साधन। वह डॉली को भांति-भांति की मनोरंजक बातें सुनाकर प्रसन्न करता।
एक दिन शंकर डॉली के घर आया तो राज घर पर न था। वह डॉली के पास ही बैठकर बातें करने लगा। डॉली ने चाय के लिए पूछा। शंकर बोला, 'डॉली अगर हो सके तो ठंडा पानी मंगवा दो। गर्मी बहुत है और चाय पीने को जी नहीं चाहता।'
'इसमें कौन-सी बात है? अभी लो।' यह कहकर डॉली अंदर गई और थोड़ी देर में शर्बत बनाकर ले आई।
'इसकी क्या आवश्यकता थी?' शंकर ने देखते ही कहा।
'ठंडा पानी ही तो है, पीजिए।'
उसने गिलास आगे करते हुए उत्तर दिया। शंकर ने गिलास ले लिया और बोला, 'और आप?'
"मैं तो चाय ही पीऊंगी। अभी आती हूं।'
शंकर एक ही सांस में सारा शर्बत पी गया, जैसे बहुत देर से प्यासा हो। डॉली उसके मुंह की ओर देखती रही।
'क्या बात है, राज अभी तक नहीं आया।'
'कहीं गए हैं। कह रहे थे पास के गांव में कुछ काम है, शायद देर से लौटूं।'
'डॉली, तुम दोनों बहुत भाग्यवान हो।'
'कैसे?'
"एक-दूसरे को पाकर।'
'तो वह कितनी भाग्यवान है जिसे तुम्हारे जैसा पति मिला है?'
वह सुनते ही शंकर जोर से हंसा और बोला, 'आपने भी खूब कही।'
'तो क्या मैंने कुछ गलत कहा?'
'अजी, अभी तो मैं अकेला ही हूं।'
'ओह! तो यह बात है! तो कब लाइएगा भाभी को?'
"जब कोई पसंद आएगी।'
'अच्छा मैं भी तो सुनूं, कैसी चाहिए?'
'यह तो एक बहुत टेढ़ा प्रश्न है।'
"फिर भी, कुछ तो सोच रखा होगा आपने?'
'यदि बुरा न मानों तो कहूं।'
'हां कहो ना।'
'मुझे तो ऐसी लड़की चाहिए जो आप जैसी सुंदर और सभ्य हो।'
डॉली यह सुनकर सकुचा गई और धीरे से बोली, 'आप क्या कीजिएगा ऐसी फीकी सुंदरता और सभ्यता को लेकर?'
शंकर यह सुनकर कुछ सहम-सा गया। फिर प्रयत्न करके उसने कहा, 'डॉली एक बात पूंछू?'
'पछो।'
'मैं कई दिन से देख रहा हूं कि तुम बहुत उदास रहती हो।'
'नहीं तो।'
'तुम मुझसे कुछ अवश्य छिपा रही हो। तुम्हारे चांद से मुख पर उदासी की छाया मुझे धोखा नहीं दे सकती।'
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