RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'यह क्यों नहीं कहते कि डॉली के प्रेम ने पैरों में बेड़ियां डाल दीं।'
'राज, होश में हो। संसार का प्रत्येक व्यक्ति उतना नीच नहीं जितना तुम समझते हो।'
'तो तुम कहना चाहते हो कि मैं झूठ कह रहा हूं।'
'यदि तुम्हें अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं तो मेरी बातों पर तुम्हें किस प्रकार विश्वास आएगा। जाओ, बाहर अस्तबल के पास डॉली घोड़े लिए खड़ी है। आज मैं न आ सकूँगा।'
डॉली का नाम सुनते ही राज आवेश में भरा बाहर निकल गया और शंकर चारपाई पर बैठ गया। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसके शरीर में जान ही न हो। उसके राज पर क्रोध था परंतु साथ ही तरस भी। उसने सोचा कि शांत होने पर वह राज को समझाएगा। थोड़ी ही देर में टॉम दौड़ा हुआ अंदर आया। उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रही थी। 'क्यों टॉम, क्या बात है?' शंकर ने जल्दी से उठते हुए पूछा।
'साहब राज बाबू ने काला घोड़ा सवारी के लिए ले लिया।'
'तुमने खोलने क्यों दिया?' कहता-कहता शंकर भागा हुआ अस्तबल के निकट पहुंचा। काले घोड़े पर डॉली सवार थी और राज ने उसे पकड़ रखा था। शंकर ने पास पहुंचते ही कहा, 'राज यह क्या कर रहे हो?'
'डॉली की परीक्षा, इतने दिनों में कितनी घुड़सवारी सीखी है?'
‘परंतु यह घोड़ा।'
डॉली यह सुनकर घबराई और घोड़े को उसने मजबूती से पकड़ लिया। राज उसे घबराया देखकर बोला, "डॉली, घबराओ नहीं, अभी जवान हो और एक मस्त घोड़े पर बैठकर तो और भी सुंदर जान पड़ती हो।'
'हो क्या गया है तुम्हे राज? छोड़ दो इसे।' शंकर ने घोड़े की लगाम पकड़ते हुए कहा। 'तुम जानते हो कि जब जवानी के मद में कोई अंधा हो जाता है तो उसका क्या परिणाम होता है?'
राज ने शंकर को जोर से धक्का देकर अलग कर दिया और बोला, 'लो देखो।' यह कहते ही उसने जोर से घोड़े तो चाबुक लगाई और छोड़ दिया। थोड़ी ही देर में घोड़ा हवा से बातें करने लगा। डॉली ने जोर से घोड़े के बालों को पकड़ लिया।
'राज!' शंकर जोर से चिल्लाया और कूदकर दूसरे घोड़े पर सवार हो गया। वह भी काले घोड़े का पीछा करने लगा। दोनों घोड़े सरपट दौड़ रहे थे।
डॉली के चिल्लाने की आवाज अभी तक राज के कानों में आ रही थी। टाख...टाख... घोड़ों की टापें मैदान की पथरीली जमीन पर एक शोर-सा मचा रही थी। राज की नजरें दोनों घोड़ों की ओर लगी थीं। बहुत दूर तक भी शंकर डॉली का घोड़ा न पकड़ सका। थोड़ी ही देर बाद राज ने डॉली को घोड़े से गिरते देखा। शायद वह किसी गड्ढे में जा गिरी थी। काला घोड़ा वहीं रुक गया था और नीचे गड़े में देखने लगा था। शंकर भी वहां पहुंचा और घोड़े से उतरकर उसी गड्ढे में उतर गया।
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'क्यों, अब तबियत कैसी है डॉली की?' शंकर ने बरामदे में पैर रखते ही राज से पूछा।
राज ने उत्तर नहीं दिया। शंकर उत्तर न पा, आगे बढ़कर डॉली के कमरे में चला गया। डॉली सामने ही पलंग पर लेटी हुई थी। उसके सिर और हाथ पर पट्टी बंधी थी।
'कैसी तबियत है, डॉली?'
'अब तो कुछ आराम है।'
'बैठे-बिठाये मुसीबत आ गई।'
'कोई बात नहीं भैया! वह इसी में प्रसन्न हैं तो ऐसा ही सही।'
'डॉली, तुम कितनी बदल गई हो।'
'सब आपकी कृपा है।'
शंकर मुस्करा दिया और बोला, 'डॉली, मनुष्य में दुर्बलता तो पहले से ही होती है, केवल उसे अपने अधिकार में लाना ही उसकी विजय है।'
'परंतु अभी तक तो मैं हारी हुई हूं।'
'तुम्हारी यह हार ही तुम्हारी जीत है। अच्छा अब मैं चलता
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शंकर जब बरामदे में पहुंचा तो राज पहले से ही वहां उपस्थित था और बरामदे में चक्कर लगा रहा था। शंकर बरामदे में खम्भे के पास खड़ा हो गया और चुपचाप उसे देखने लगा। राज क्रोधित था। 'क्यों, देख आए?' राज ने पूछा।
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