RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'वाह! हृदय की विकलता हो तो ऐसी। मैं बेकार में परेशान हुआ तुम्हें ढूंढने में। मैं तो डर गया था।'
'क्यों?'
"कि कहीं....।'
'पहाड़ियों से कूदकर आत्महत्या न कर बैठी होऊं।' डॉली ने बात काटते हुए कहा।
'तुम्हारे शंकर के घर जाने से जो दुःख पहंचता है, उतना शायद तुम्हारे आत्महत्या कर लेने से न होता।'
'यदि मेरी मृत्यु से ही तुम्हारे हृदय को शांति हो सकती है तो लो, मैं तैयार हूं, यह शुभ काम भी तुम अपने हाथों से कर दो।'
'मुझे तुम जैसी अपराधिन और छलना के खून में हाथ नहीं रंगने।' यह कहकर राज दूसरे कमरे में चला गया। डॉली रो पड़ी।
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आधी रात का समय है, डॉली मुंडेर पर खड़ी है। नीचे गहरी और भयानक घाटियां हैं। एक भयंकर तूफान आंधी का रूप धारण किए है और मुंडेर की लंबी दीवार पर राज काले कपड़े पहने उसकी ओर बढ़ता जा रहा है। वह पास आकर बोला, 'अब डरती क्यों हो? कूद पड़ो ताकि वे गहरी घाटियां तुम्हें अपने आंचल में छिपा लें और तुम्हें लज्जा से झुका सिर उठाने की जरूरत न पड़े।' 'परंतु मैं इस प्रकार मरना नहीं चाहती।'
'क्यों?'
'मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं।'
'मेरा बच्चा!' यह कहकर वह जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, "ले जाओ, इस पाप को भी अपने साथ...।' यह कहते ही उसने डॉली को धक्का दिया। नीचे भयानक घाटियां देखकर भय से उसकी चीख निकल गई।
'डॉली, डॉली, क्यों क्या हुआ?'
'मैं कहां हूं?'
'तुम सो रही थी! अभी चीख मारकर उठ बैठी!'
'तो मैंने एक भयानक स्वप्न देखा।'
"क्यों, कैसा स्वप्न? तुम डर गई हो।'
'राज, अब मैं मरना नहीं चाहती।' डॉली यह कहते हुए राज से चिपट गई। राज ने प्यार से उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, 'तो कौन कहता है तुम्हें मरने को? पगली कहीं की!'
'सच?' वह और भी राज के समीप हो आई। आज कितने ही दिन बाद राज की बांहों में इस प्रकार आई थी। वह सोचने लगी कि यदि वह भयानक स्वप्न न देखती को उसे कौन इस प्रकार से अपनी बांहों में लेता। वह धीरे-धीरे बोली, 'राज, यदि तुमने मुझे मरने न दिया तो मैं भी कुछ दिन बाद तुम्हें एक ऐसा शुभ समाचार सुनाऊंगी कि तुम प्रसन्नता से फूले नहीं समाओगे।'
'अच्छा, अब सो जाओ। रात बहुत हो चुकी है।' राज ने यह कहकर डॉली को बिस्तर पर लिटा दिया और वह स्वयं अपने बिस्तर पर जाने लगा। डॉली ने उसका कुर्ता खींचते हुए कहा, 'अभी न जाओं, मुझे डर लगता है।
'पगली कहीं की! पास ही तो सो रहा हूं।' यह कहकर पास की चारपाई के पास गया जहां कुसुम सो रही थी। जाली का कपड़ा उसके मुख पर डालता हुआ बोला, 'डॉली, कितनी बार कहा कि रेशमी फ्रॉक बच्चे को रात को नहीं पहनाते। देखा न, आग-सी निकल रही है। रेशम में और ऊपर से यह गरमी।'
'फिर कभी ऐसा न होगा।'
राज अपने बिस्तर पर लेट गया। डॉली ने चाहा उसकी आंख लग जाए परंतु उसकी आंखों में नींद कहां, यह सोचकर प्रसन्न हो रही थी कि राज बच्चों का कितना ध्यान रखता है और वह उसे कुछ दिनों बाद यह शुभ समाचार और उसका मन चुटकियां लेने लगा। आज उसने उससे यह कह दिया। डॉली ने शर्माकर अपना मुंह तकिए में छिपा लिया.....।
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