RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'इस प्रकार प्राणों को संकट में न डालो। आखिर तुम हो कौन? तुम्हें अपने माता-पिता पर दया नहीं आती? क्या नाम है तुम्हारा?'
'यह तो कभी सोचा ही नहीं। हां, मैंने आज तक अपना नाम किसी को नहीं बताया परंतु तुम्हें बता देता हूं। मेरा नाम रंजन है... यह कहते ही वह गाड़ी से कूद पड़ा। मैंने खिड़की से सिर बाहर निकाला परंतु चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा थी। रंजन का नाम सुनते ही मैं कांप गई, परंतु फिर यह सोचकर अपनी मूर्खता पर हंसने लगी कि हमारा रंजन भला ऐसा हो सकता है!'
कुसुम जब यह सब कुछ कह चुकी तो उसने देखा कि राज बाबू का चेहरा पीला पड़कर पसीने से तर हो गया है। 'क्यों बाबा, क्या हमारा रंजन ऐसा हो सकता है?'
'कुसुम।' राज ने चिल्लाकर कहा और कुसुम सहमकर रह गई। राज ने उसे इस प्रकार भयभीत देखकर पुचकारते हुए कहा, 'ऐसे ही तुमने आते ही भयानक बातें छेड़ दीं।' और राज बाबू ने कुसुम का सिर अपनी छाती से लगा लिया और उसके बालों में प्यार भरा हाथ फेरने लगे।
'रंजन एक-दो दिन के लिए कहीं बाहर गया है। उसे तो यह पता ही नहीं कि तुम आ रही हो। नहीं तो क्या वह स्टेशन पर आए बिना रह सकता था?'
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