RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
उस आदमी की आंखें एक बार फिर बंद हो गईं। राज ने उसे झिंझोड़कर जगाने का प्रयत्न किया लेकिन इस बार उसके ऊपर कोई असर नहीं हुआ। वह या तो मर चुका था या फिर गहरी बेहोशी में डूब चुका था।
तभी पुलिस सायरन उस क्षेत्र में गूंज उठा।
भाग जय...पुलिस!" कहता हुआ राज बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
जय उसके पीछे था।
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दूसरे दिन राज अचम्भित रह गया।
कामरेड करीम भाई के अखबार में सतीश मेहरा कांड हैडलाइन में था और शब्दश: सच छपा था। उसने जुल्म की कहानी बयान करत हुए धरम सावन्त का नाम मोटे अक्षरों में छापा था। पुलिस प्रशासन की चाटुकारिता को भी बयान किया था। ये भी लिखा था कि करप्शन का दैत्य एक ईमानदार पुलिस इस्पेक्टर को निगल गया। उस समाचार को राज ने कई बार पढ़ा। उसे उम्मीद नहीं थी कि करीम भाई इतना हिम्मतवर रिपोर्टर होगा।
डॉली उसके साथ सटकर बैठी हुई कामरेड करीम की शाया रिपोर्ट को बड़े गौर से पढ़ रही थी। उस समय वह राज के साथ राज के चैम्बर वाले फ्लैट में थी। हालांकि जय दोनों को घाटकोपर ले जाना चाहता था लेकिन राज के सामने उसकी एक न चली।
___"ये करीम भाई तो काम का आदमी निकला...।" राज समाचार पत्र डॉली के सुपुर्द करता हुआ बोला-"बड़े जिगरे वाला है। जिस सच्चाई को छापने से बड़े-बड़े अखबार पीछे हट गए ...कामरेड के छोटे से अखबार ने वो दुस्साहस कर डाला। कमाल का आदमी था भई...मैं अभी उसे उसके काम के लिये शुक्रिया अदा करता हूं।"
उसने मोबाइल निकालकर कामरेड करीम के नम्बर मिलाए। दूसरी तरफ घंटी जाती रही लेकिन किसी ने फोन रिसीव नहीं किया।
"लगता है कामरेड अपने आफिस में है नहीं...।"
__"शायद...।" डॉली अखबार देखती हुई बोली।
राज ने रंजीत सावन्त का नम्बर मिलाया।
"कौन?" दूसरी तरफ से गुर्राहट भरा स्वर उभरा। उस स्वर को वह पहले भी सुन चुका था।
"रंजीत सावन्त को बुला फोन पर...।" उसने मुंह बिगाड़ते हुए कर्कश स्वर में जान-बूझकर इसलिए कहा ताकि दूसरी तरफ वाला उखड़ जाए। और वही हुआ भी।
"सावन्त साहब बोल ढोलकी के...सावन्त साहब...साले, तू एक बार मुझे मिल जा कहीं...सिर्फ एक बार फिर मैं तुझे तेरी बदतमीजी की सजा देता हूं। तेरी रूह कांप उठेगी...। यूं...थर- थर...।"
"मुझे उसकी आवाज सुनाई दे रही है।" राज हंसा।
"सारी हंसी आख में डाल दूगा...तू सिर्फ एक...सिर्फ एक बार मेरे सामने आ जा।"
"रंजीत को फोन पर बुला...जरूरी काम है
"अभी तू ठहर...फिर बताता हूं।"
उसके बाद सन्नाटा छा गया।
थोड़ी देर बाद रंजीत की आवाज उभरी "हैलो कौन है...?"
"वही...जिसकी वजह से रातों की नींद उड़ गई रंजीत सावन्त...जिसे मारने की तेरी कोशिश नाकामयाब रही और बदले में जिसने तेरे कई आदमी मौत के घाट उतार दिए।"
"तो तू है...।"
"बराबर पहचाना...आज का अखबार देख...?"
"तू किस अखबार की बात कर रहा है?"
"दैनिक प्रभात...।"
दूसरी ओर से रंजीत सावन्त का कहकहा उभरा।
"दैनिक प्रभात ने धरम सावन्त द्वारा सतीश मेहरा पर लगाए गए झूठे आरोप की पोल खोल दी है। तेर पापों का घड़ा भर चुका है। अब तो तू महज उसके फूटने का इंतजार कर।"
"दैनिक प्रभात की एक भी कापी बाजर से लाकर बता तो सही...।"
"क्या मतलब?"
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