RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
ऐसा नहीं था कि डॉली को अनुमान नहीं था या वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है लेकिन राज के हाथों की रेंगती हुई उंगलियां उसे सुखद अनुभव की ओर ले जा रही थीं।
उस सुखद एहसास की अनुभूति से वह आनन्दित हो रही थी। ब्लाउज का पहला हुक खुला...फिर दूसर...फिर तीसरा। डॉली के नेत्र बंद हो गए। ब्लाउज के दोनों पट ढीले होकर अलग हो गए। काले रंग की चोली की बैलट नजर आने लगी।
राज के हाथ की उंगलियों ने चोली की बैल्ट के हुक भी निकाल दिए।
वक्ष के समूचे बंधन शिथिल पड़ गए। बंधन मुक्त होते ही डॉली के मुख से गहरी सांस निकली। उस गहरी सांस में कामुक कराह का भी संगम था। वह एकाएक ही पलटकर राज के अॅक से लिपट गई। अधरों से अधर टकराए। गर्म सांसें घुलने लगीं। धमनियों में रेंगने वाला खून ज्वार-भाटे की लहरों की तरह मचलने लगा। डॉली ने राज के जिस्म से एक-एक वस्त्र नोंचकर अलग कर दिया। फिर नग्न स्निग्ध बाहें आपस में गुंथ कर स्पर्शित हुई तो एकाएक ही वासना का ज्वर उमड़ पड़ा। और फिर! फिर कठोर अहसास ने डॉली के अंदर जो आग लगाई तो उसके मुख से रह-रहकर कामुक सीत्कार उभरने लगे। बदनतःोड़ ढंग से वह राज को सहयोग करने लगी। यहां तक कि दोनों की सांसें उफनने लगीं। बुरी तरह हांफने लगे। तत्पश्चात् अंत में सांसों का बांध टूट गया। दोनों थककर चूर एक-दूसरे की बांहों में गुंथे हुए देर तक अपनी सांसों को संयत करने का प्रयास करते रहे।
शीघ्र ही निद्रा ने उन्हें अपनी बांहों में दबोच लिया। वे उसी प्रकार गुंथे हुए गहरी नींद में सो गए।
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अगले रोज।
सुबह-सवेरे ही जय आ धमका।
"कामरेड की हालत कैसी है?" राज ने सिगरेट सुलगाते हुए उससे पूछा।
"पहले से तो बहुत ठीक है। अपुन कामरेड का वास्ते डाक्टर का इंतजाम किएला है बाप...क्या मस्त डाक्टर है। एकज इंजेकशन में कामरेड सीधा होएला है...।" जय उत्साहित स्वर में बोला।
"घाव वगैरह...।"
"बरोबर हैं...सब ठीक हो जाएंगा। फिकर नेई करने का...क्या!"
"हां...फिक्र तो नहीं करने का लेकिन उसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। गरीब को आज के वक्त में जो तकलीफ हासिल हुई है वो महज हम लोगों की...बल्कि मेरी वजह से। न मैं उसे जोश दिलाकर अखबार में सच्चाई छापने को बोलता...न वो छापता और न उसके सामने इतनी बड़ी मुसीबत पेश आती।"
"ऐसा काय कू सोचता बाप...?"
"सच्चाई से मुंह नहीं मेड़ना चाहिए...जो सच है वो सच है। उसका जो भी अहित हुआ है...मेरी वजह से हुआ है। बेचारे की जान पर बन आयी थी। रंजीत सावन्त के आदमियों ने उसे कष्ट ही दिया था अगर वक्त पर मैं पहुंच न गया होता।"
"बरोबर बोलता बाप।"
"मैं उससे मिलना चाहता हूं।"
"कभी भी मिलने को सकता...बस हुकुम करने का अपुन कू...अपुन फौरन ले चलेगा।"
इसी बीच...।
डॉली कॉफी बनाकर ले आयी। उसने कॉफी के मग टेबल पर रख दिए और ट्रे टेबल के बेस में। वह उन दोनों के बीच में बैठ गई। उसे मालूम था कि कोई भी ताजातरीन खबर जय से ही हासिल हो सकती थी। इसीलिए वह उनके करीब बैठकर उनका वार्तालाप सुनने लगी।
"कामरेड को बाहर निकलने मत देना।" राज ने सिगरेट की राख ऐश-ट्रे में झाड़ते हुए कहा
___ "पन काय कू?" जय ने आश्चर्यमिश्रित दृष्टि से उसकी ओर देखा।
"इसलिए कि उसके लिए बाहर खतरा होगा। वह कलम का सिपाही है...तलवार से नहीं लड़ सकता।"
"एक दो पे तो भारी पड़ जाएगा।"
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