RE: SexBaba Kahani लाल हवेली
डॉली कुछ कहना चाहती थी किन्तु बाद में वह खामोश हो गई। वह जान रही थी कि राज जो भी कर रहा है, उसके भाई की खोज की बाबत ही कर रहा है। ऐसे में उसे किसी बात पर टोकना उचित न होगा। उसे इसी बात की खुशी थी कि मुसीबत की उस घड़ी में एक मददगार उसके साथ था...ऐसी मददगार जो जान की बाजी लगाने से कतई हिचकिचाता नहीं था। उसकी जगह कोई भी दूसरा होता तो इतने बड़े खतरे को सामने देख कब का भाग खड़ा होता। बल्कि...सावन्त बन्धुओं का नाम ही उसके लिए काफी होता और वह डॉली का साथ छोड़कर एक किनारे हो जाता।
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गहरे नीले रंग की एस्टीम तेज रफ्तार से चौड़ी सड़क को रौंदती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी। एस्टीम स्वयं जय ड्राइव कर रहा था। उसके बराबर मैं बैठा राज सिगरेट फूंकने में व्यस्त था।
कार बोरीवली के घनी बस्ती वाले क्षेत्र की ओर बढ रही थी।
" ऐन उसके ठिकाने पर पहुंचने के बाद ये कहने की जरूरतें नहीं है कि ये जोगलेकर का घर है...क्या समझा।" राज उसे समझाता हुआ बोला।
"तो..."
"ठिकाना आने से पहले ही बोल देना।"
"बरोबर।"
घनी आबादी वाला क्षेत्र आ जाने की वजह से एस्टीम की गति अब काफी कम हो गई थी। जय को गति कम करने पर मजबूर हो जाना पड़ा था। थोड़ी देर बाद एक चौड़ी गली कै मोड़ से पहले ही जय ने एस्टीम को किनारे पार्क करके उसको इंजन बंद कर दिया।
राज न सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछालने के बाद उसकी ओर देखा।
"क्या हुआ...जोगलेकर का ठिकाना आ गया क्या...।"
"हां...।" जय ने कार से बाहर निकलते हुए कहा-"आ गया ठिकाना।"
"किधर है।"
"अभी दूर से दिखाना पड़ेगा। नेई तो तुम बोलेगा ऐन सिर पर पहुंच को बोला।"
"होशियारी की बात की।"
राज मुस्कराता हुआ एस्टीम से बाहर आ गया। जय पहले ही बाहर आ चुका था। वह पेंट की जेब में हाथ डालकर इस प्रकार इधर-उधर देख रहा था मानो बाहर से आया हुआ एकदम नया आदमी हो।
"आगे चले...।" राज के बाहर आने पर उसने सहज स्वर में पूछा।
"हां...चल।"
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वह आगे-आगे चलने लगा। राज उससे एक कदम पीछे रहा। थोड़ी दूर निकलने के बाद मोड़ क्रॉस हुआ और मोड़ क्रॉस होने के बाद सामने ही एक बड़ी-सी चाल नजर आने लगी। उस चाल का क्षेत्रफल इतना बड़ा था कि उसमें कम से कम चार सौ आदमी आ सकते थे। जय ने केवल आ संखों से उस चाल की ओर संकेत करते हुए कहा
"बाप...वो चाल देखेला है...।"
___"वही है जोगलेकर का ठिकाना...।" राज ने उत्सुकतावश पूछा।
"नेई...वो जोगलेकर का ठिकाना नेई।"
"फिर...।"
"उस चाल का पीछ एक पुराना टाइप का मकान है। एकदम फटेला सा...उजड़ा रईस जैसा स्टाइल में।"
"वो है जोगलेकर का ठिकाना।" राज ने सामने देखते हुए जय से सवाल किया।
" हां..अपुन लोग जभी उधर से गुजरेगा तब तुम अच्छे से देख लेना उधर...बरोबर।"
दोनों धीमी गति से चलते हुए आगे बढ़ते रहे। चाल की सीमा समाप्त हो जाने के बाद राज ने पूर्व निर्देशित दिशा की ओर देखा। वर्णित मकान सचमुच जीर्ण अवस्था में था। मकान के आसपास किसी प्रकार अतिक्रमण नहीं था और न ही किसी ने आसपास किसी प्रकार का अपना कोई काम फैलाने की कोशिश की थी। मकान के दरवाजे बंद थे। गली के दूसरे छोर पर चाय का छोटा-सा होटल था।
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