RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
दीना की चौपाल पर महफिल जमी थी। सुबह होने को थी-किन्तु पीने-पिलाने का दौर अभी भी चल रहा था। दीना शराब के नशे में कुछ कहता और यार-दोस्त उसकी बात पर खुलकर कहकहा लगाते। एकाएक अंदर से कोई आया और उसने दीना के कान में कहा- 'काका! यह तो गजब हो गया।'
'क्या हुआ?'
'तुम्हारी भतीजी डॉली...।'
'रो रही होगी।'
'काका! बात रोने की होती तो कुछ न था।'
'अबे! तो कुछ हुआ भी।'
'डॉली घर में नहीं है।'
दीना के सामने विस्फोट-सा गूंज गया। वह कुछ क्षणों तक तो सन्नाटे जैसी स्थिति में बैठा रहा और फिर एकाएक उठकर चिल्लाया- 'यह-यह कैसे हो सकता है?'
'काका! यह बिलकुल सच है। डॉली गांव छोड़ गई है।' दीना तुरंत अंदर गया और थोड़ी देर बाद लौट भी आया। दोस्तों ने कुछ पूछा तो वह दहाड़ें मारकर रो पड़ा। बात जमींदार तक पहुंची। दिन निकलते ही जमींदार का बुलावा आ गया। दीना को जाना पड़ा।
जमींदार ने देखते ही प्रश्न किया- 'क्यों बे! हमारी दुल्हन कहां है?'
'सरकार!'
'सरकार के बच्चे! हमने तुझसे अपनी दुल्हन के बारे में पूछा है।' जमींदार गुर्राए।
दीना उनके पांवों में बैठ गया और रोते-रोते बोला- 'हुजूर! मैं तो लुट गया। बर्बाद हो गया हुजूर! उस कमीनी के लिए मैंने इतना सब किया। उसे अपने घर में शरण दी। उसे सहारा दिया और वह मुझे धोखा देकर चली गई। चली गई हुजूर!'
'कहां चली गई?'
'ईश्वर ही जाने हुजूर! मैं तो उसे पूरे गांव में खोज-खोजकर थक गया हूं।'
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