RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'फिर क्या बात है?'
डॉली इस प्रश्न पर मौन रही।
जय फिर बोला- 'बताइए न फिर आप मुझसे दूर क्यों जाना चाहती हैं?'
'अपने दुर्भाग्य के कारण।' डॉली बोली- 'मैं नहीं चाहती कि मेरे दुर्भाग्य की छाया आप पर भी पड़े।'
'और यदि मैं यह कहूं कि आपका मुझसे मिलना मात्र एक संयोग ही नहीं मेरा सौभाग्य है तो?'
'फिर भी मैं चाहूंगी कि आप मुझे भूल जाएं।
आप तो जानते ही हैं कि रामगढ़ यहां से दूर नहीं। उन लोगों को जब पता चलेगा कि मैं यहां हूं तो।' 'तो यह बात है।' जय की आंखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गईं। एक पल मौन रहकर वह बोला- 'फिर तो आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं। रामगढ़ में ऐसा कोई नहीं जो हमारे विरुद्ध जुबान भी खोल सके।'
तभी बाहर से नौकर की आवाज सुनाई पड़ी 'छोटे मालिक! स्नान का पानी रख दिया है।'
'ठीक है हरिया!' जय ने कहा। इसके पश्चात वह डॉली से बोला- 'अब आप स्नान कर लीजिए और हां, मैं एक घंटे के लिए रामगढ़ जाऊंगा। बात यह है कि पापा के दिमाग में कुछ कमी आ गई है। सुना है वो शादी कर रहे हैं-यूं मुझे उनके इस निर्णय से कोई दिक्कत नहीं। मैं तो पिछले पांच वर्षों से रुद्रपुर रहता हूं। वहीं पढ़ाई की और वहीं बिजनेस भी शुरू कर दिया। यूं समझिए पापा के व्यक्तिगत जीवन से मेरा कोई लेना-देना नहीं। फिर भी साठ वर्ष की आयु में शादी-यह मुझे पसंद नहीं। मैं उन्हें समझाने का प्रयास करूंगा।'
डॉली पत्ते की भांति कांप गई।
'जय फिर बोला- 'मैंने यह भी निर्णय लिया है कि मैं आपको लेकर आज ही रुद्रपुर चला जाऊंगा। न-न-मेरे इस निर्णय में पापा की स्वीकृति-अस्वीकृति कोई बाधा न बनेगी।'
'ल-लेकिन जय साहब!'
'ऊं!' जय ने अनजाने में ही डॉली के होंठों पर अपनी हथेली रख दी और बोला- 'अब बातें खत्म। अब आप स्नान करके आराम कीजिए। मेरे लौटने तक हरिया खाना बना देगा।'
डॉली चाहकर भी कुछ न कह सकी किन्तु न जाने क्यों-उसकी आंखों में आंसुओं की बूंदें झिलमिला उठीं।
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