RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'कितना अच्छा होता यदि तुम इस वक्त रामगढ़ में होतीं।' जमींदार ने फिर कहा- 'तुम शादी का सुर्ख जोड़ा पहनतीं हम सेहरा बांधकर आते और तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर लाते लेकिन कोई बात नहीं। सुर्ख जोड़ा न सही-तुम तो हो और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस वक्त तुम हमारे घर में हो। आओ!' इतना कहकर जमींदार ने डॉली के कंधे पर हाथ रखा।
डॉली की आत्मा तक कांप गई, किन्तु अगले ही क्षण वह फुर्ती से पीछे हट गई और नागिन की भांति फुफकार उठी- 'खबरदार जमींदार साहब! हाथ भी मत लगाना मुझे।'
जमींदार के चेहरे पर पल भर के लिए सन्नाटा फैल गया किन्तु दूसरे ही क्षण उनका चेहरा क्रोध से तमतमा उठा और वह बोले- 'क्यों, हाथ क्यों न लगाएं तुझे? साली-हमारी दुल्हन है-हमने तुझे दस हजार में खरीदा है।'
'सौदा पशुओं का होता है जमींदार साहब! इंसानों का नहीं। हट जाइए मेरे सामने से।'
'क्या मतलब?'
'मतलब यह है कि न तो मुझे आप में कोई । दिलचस्पी है और न ही आपकी दौलत में। यदि मुझे पता होता कि यह मकान आपका है तो मैं यहां पांव भी न रखती। मैं जा रही हूं यहां से।'
'खूब-बहुत खूब।' जमींदार साहब हल्का -सा ठहाका लगाकर बोले- 'तू यहां से जाएगी, पर तूने यह कैसे सोच लिया कि हम तुझे जाने देंगे। साली-कितना अपमान सहा है हमने तेरी वजह से। कितनी भयानक आग धधक रही है हमारे सीने में और तू यहां से चली जाएगी।' कहते ही जमींदार साहब ने डॉली की कलाई पकड़ ली।
डॉली को यों लगा मानो उसका हाथ किसी शिकंजे में जकड़ा गया हो। उसने अपनी कलाई छुड़ाने के लिए पूरी शक्ति लगाई किन्तु जब सफल न हुई तो वह घृणा से चिल्लाई 'कुत्ते-कमीने! छोड़ दे मुझे। मैं कहती हूं-छोड़ दे मेरी कलाई। नहीं तो मैं तेरा खून पी जाऊंगी।'
'हम तुझे खून नहीं बल्कि मस्ती की शराब पिलाएंगे रानी! एक बार हमारे सीने से तो लग। आ न साली!' इतना कहकर जमींदार साहब ने उसकी दूसरी कलाई भी पकड़ ली।
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