RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
ठीक ही तो कहा था उसकी अंतरात्मा ने। इतने बड़े संसार में वह बिलकुल अकेली थी। निराश्रित-कहीं कोई आश्रय नहीं। ऐसे में क्या कर सकेगी वह जय के लिए?
सोचते-सोचते एकाएक उसकी नजर अखबार पर पड़ी। एक पृष्ठ पर वैवाहिक विज्ञापन छपा था। लिखा था-चालीस वर्षीय विकलांग युवक, अपना मकान, अपना व्यवसाय को आवश्यकता है जीवन संगिनी की। परित्यकता एवं विधवा भी स्वीकार्य, पूर्ण विवरण के साथ लिखें। नीचे युवक का पता था। डॉली ने यह विज्ञापन पढ़ा और पढ़ते ही उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंध गया- 'यदि वह उस युवक से विवाह कर ले तो? इस प्रकार स्वयं का-उसका जीवन भी संवर जाएगा और वह जय का मुकदमा भी लड़ सकेगी। युवक व्यवसायी है और अपना मकान भी है। कमी है तो केवल यह कि युवक विकलांग है, किन्तु इसमें उस बेचारे का क्या । दोष? घटी होगी जीवन में कोई घटना और ऐसी घटना तो किसी के साथ भी घट सकती है।' 'लेकिन।' हृदय ने कहा- 'जय को जब तेरे विवाह का पता चलेगा तो क्या वह इसे सहन कर पाएगा? तू जानती है-वह तुझे कितना चाहता है। कितना प्यार करता है वह तुझे।'
'हां-दु:ख तो होगा। पीड़ा तो होगी उसे, किन्तु । ऐसा करने से उसका जीवन तो बच जाएगा। वह सुंदर है-पढ़ा-लिखा है। अपने पिता की लाखों की संपत्ति का उत्तराधिकारी है-ऐसे में कोई भी लड़की उसे अपना जीवनसाथी बना सकती है।'
'तुझे भूल जाएगा वह?'
'भूलना कठिन तो होगा, किन्तु समय का मरहम बड़े-बड़े घावों को भर देता है। जीवन में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं कि इंसान को न चाहते हुए भी सब कुछ भूलना पड़ता है।'
तभी डॉली के विचारों का दर्पण गिरा और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया। बाहर किसी गाड़ी का हॉर्न सुनाई दे रहा था। शायद पुलिस की गाड़ी होगी यह सोचकर डॉली उठी और उसने द्वार खोल दिया। वास्तव में पुलिस की गाड़ी थी।
द्वार खुलते ही जीप में बैठा पुलिस इंस्पेक्टर बाहर आया और डॉली के समीप आकर अत्यंत शिष्टता से बोला- 'क्षमा करें डॉली जी! आपसे दो-चार प्रश्न और पूछने थे इसलिए आना पड़ा।'
'आइए।' डॉली ने कहा और बरामदे में आ गई।
'पूछिए।'
'आप वास्तव में रामगढ़ की रहने वाली हैं?'
'नहीं इंस्पेक्टर साहब!' डॉली ने उत्तर दिया- 'मेरा जन्म तो इसी शहर में हुआ था। यहीं मैंने बचपन के दिन देखे और यहीं शिक्षा प्राप्त की किन्तु एकाएक माता-पिता का देहांत हो गया और मुझे अपना शहर छोड़कर रामगढ़ जाना पड़ा।'
'रामगढ़ में?'
'पापा के दूर के रिश्ते के भाई रहते थे-दीनानाथ। मैं बेसहारा हो गई तो वे मुझे अपने साथ रामगढ़ ले गए।'
'फिर आपने रामगढ़ क्यों छोड़ दिया?'
'चाचा मुझे बेचना चाहते थे। उन्होंने किसी के हाथों मेरा सौदा कर दिया था। मुझे यह पता चला तो मैंने उसी रात रामगढ़ छोड़ दिया। सोनपुर में एक रिश्तेदार रहते हैं। सोचा था-वहीं चली जाऊंगी किन्तु एकाएक जय साहब से मुलाकात हुई और वे मुझे यहां ले आए।'
'जय का आपको यहां लाने के पीछे क्या उद्देश्य था?'
'वो मेरे भविष्य की ओर से चिंतित थे। उन्हें यह भी भय था कि कहीं मैं इन दुखों से घबराकर आत्महत्या न कर बैठू। अत: वो । चाहते थे कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने ढंग से जीने की कोशिश करूं। इसके लिए वह मुझे हर प्रकार का सहयोग देने को तैयार थे।'
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