RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
कुछ सोचकर इंस्पेक्टर बोला- 'आपने अपने बयान में बताया कि जिस समय जमींदार साहब का खून हुआ–आप बरामदे में थीं।'
'जी।'
'फिर आप विश्वासपूर्वक कैसे कह सकती हैं कि गोलियां खिड़की की ओर से चली थीं।'
'क्योंकि उस समय जय मेरे सामने थे और उनके हाथ में रिवाल्वर भी न थी।'
'क्या आपको पूरा विश्वास है कि गोलियां खिड़की की दिशा से ही चली थीं?'
'जी।'
'फिर तो आपने हत्यारे को अवश्य देखा होगा?'
'नहीं-मैं उसकी सूरत नहीं देख सकी।'
'खैर।' इंस्पेक्टर बोला- 'अब अंतिम प्रश्न। आप बता सकती हैं-जय एवं जमींदार के बीच झगड़ा किस बात पर हुआ था?'
'मेरा ख्याल है-संपत्ति से संबंधित कोई विवाद था।'
'किंतु हरिया ने तो...।'
डॉली ने साहस एवं दृढ़ता से उत्तर दिया 'इंस्पेक्टर साहब! हरिया ने आपसे क्या कहा है-यह मैं नहीं जानती। मैंने सिर्फ वह कहा जो मैं जानती हूं।'
'क्या आप सरकारी गवाह बनना पसंद करेंगी?'
'नहीं इंस्पेक्टर साहब! मैं किसी उलझन में फंसना नहीं चाहती। वैसे भी इस हत्याकांड से मेरा कोई संबंध नहीं है। न तो मैंने कुछ देखा है और न ही कुछ सुना है। मेरा अपराध केवल यह है कि मैं उस वक्त एक मेहमान के रूप में यहां उपस्थित थी।'
'खैर, अब आप यहीं रहेंगी अथवा अपने किसी रिश्तेदार के पास जाएंगी?'
'इंस्पेक्टर साहब! आपके इस प्रश्न का संबंध मेरे व्यक्तिगत जीवन से है। मैं इस शहर में भी रह सकती हूं और अपने किसी रिश्तेदार के पास भी जा सकती हूं किन्तु विश्वास कीजिए-मैं इस मकान में नहीं रहूंगी।'
'थॅंक डॉली जी!' इंस्पेक्टर उठ गया और बोला 'मुझे आपसे और कुछ नहीं पूछना है। वैसे मैं चाहूंगा कि आप यहीं रहें और इस मुकदमे में अपनी गवाही दें।'
डॉली ने कुछ न कहा।
इंस्पेक्टर ने उससे और कोई प्रश्न न किया और चला गया। डॉली उसके जाते ही फिर उसी विज्ञापन को पढ़ने लगी।
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