RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
सोचते हुए डॉली ने अपने-आपसे प्रश्न किया 'तो क्या वह विज्ञापन राज ने ही छपवाया था? राज भी तो विकलांग है और आयु भी चालीस वर्ष से अधिक नहीं। वैसे शारीरिक गठन के । हिसाब से राज पैंतीस से अधिक न लगता था। तभी विचार श्रृंखला टूट गई। चाय की लंबी चुस्की लेकर राज ने शिवानी से कहा- 'वैसे तो शिवा! मेरे विचार से यह ठीक नहीं हुआ। इस आयु में विवाह। लोग क्या कहेंगे? और वैसे भी भाग्य में यदि पत्नी का सुख होता तो ज्योति का ही साथ क्यों छूटता?' राज के इन शब्दों में पीड़ा थी।
शिवानी बोली- 'भैया! आपने तो अपने जीवन में बहुत कुछ देखा है और बहुत कुछ पढ़ा भी है। इतना तो आप भी जानते होंगे कि जीवन का सफर अकेले कभी नहीं कटता। इस सफर के लिए किसी-न-किसी साथी की जरूरत हर किसी को महसूस होती है। इसके अतिरिक्त भैया! अतीत के दर्द को दबाने के लिए किसी-न-किसी खुशी का होना भी आवश्यक होता है। इंसान को एकाएक कोई खुशी मिले तो वह अतीत की पीड़ाओं को भूल जाता है।'
'पीड़ाओं को भूलना तो असंभव ही होता है शिवा! वैसे सच्चाई यह है कि यह विज्ञापन मैंने तेरी वजह से दिया है।'
'मेरी वजह से?'
'हां।' राज ने खाली प्याली रख दी और बोला- 'तेरी वजह से। बात यह है कि अब तू बड़ी हो गई है और तुझे अपनी ससुराल भी जाना है। तेरे जाते ही जो अकेलापन मुझे डसेगा-वह मुझसे सहन न हो पाएगा।' इतना कहकर राज ने अपनी व्हील चेयर घुराई और उसके पहिए घुमाते हुए वह बाहर चला गया।
शिवानी उसे जाता देखती रही। भाई की पीड़ा उससे छुपी न थी।
तभी डॉली उससे बोली- तुझे राज भैया से यह सब नहीं कहना चाहिए था।'
'मैंने क्या कहा?'
'कहा तो कुछ विशेष नहीं, किन्तु विवाह की बातों से उन्हें यों लगा-जैसे उनके घावों को कुरेदा गया हो।'
'भैया वास्तव में शादी के पक्ष में नहीं। यदि मैं जीवन-भर इसी घर में रहती तो वो निश्चय ही शेष जीवन यूं ही गुजार देते, लेकिन तू तो जानती है कि कोई भी लड़की अपने बाबुल के घर जीवन भर नहीं रह सकती। भैया केवल इसी बात से दुखी हैं और इस दु:ख को कम करने के लिए ही दूसरा विवाह कर रहे हैं।'
'कैसी लड़की चाहिए उन्हें?' डॉली ने पूछा।
शिवानी बोली- 'बस सुंदर, पढ़ी-लिखी और ऐसी जो उनका सहारा बन सके। खैर छोड़, अब तू स्नान कर ले। कपड़े मेरे पहन लेना और हां, आज तो रहेगी न?'
डॉली ने इस प्रश्न पर चेहरा झुका लिया। उसने तो अभी तक शिवानी से अपने दुखों की चर्चा भी न की थी। यह भी न बताया था कि वह यहां किस उद्देश्य से आई थी।
शिवानी ने उसे यों विचारमग्न देखा तो आत्मीयता से बोली- 'डॉली! तूने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। मेरा यह पूछना तुझे बुरा लगा?'
'नहीं, ऐसी बात नहीं शिवा!'
'फिर क्या बात है?'
"शिवा!' डॉली को कहना पड़ा- 'मैंने रामगढ़ छोड़ दिया है।'
'क्या मतलब?'
'चाचा मुझे बेचना चाहते थे। उन्होंने मेरा सौदा कर दिया था। गांव का सत्तर वर्षीय जमींदार मुझे खरीद रहा था और कल यह सब होना था, किन्तु एकाएक मुझे अवसर मिला और मैं रात के अंधेरे में रामगढ़ से चली आई। यहां आने पर पता चला कि चाचा भी न रहे।'
'ओह!'
'सोचा था-कहीं दूर चली जाऊंगी किन्तु फिर यह न समझ सकी कि इतनी बड़ी दुनिया में जाऊं तो कहां जाऊं। कोई अपना नहीं-कोई ऐसा नहीं जो मुझे आश्रय दे सके। आज कहीं बैठी यही सब सोच रही थी कि एकाएक तेरा ध्यान आया। सोचा-शिवा मेरे लिए कुछ और न भी करेगी तो सलाह तो अवश्य देगी।' यह सब कहते-कहते डॉली की आंखें भर आईं और आवाज रुंध गई।
|