RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
इस समय वह दर्पण के सामने खड़ी अपने बालों को संवार रही थी। एकाएक शिवानी ने पीछे से आकर कहा- 'बिजली कहां गिराएगी?'
'कैसी बिजली?'
'अपने सौंदर्य की।'
'मैं इतनी सुंदर तो नहीं।'
'यह तो किसी दिन भैया से पूछा होता।'
'क्यों?'
'हर समय तेरी ही प्रशंसा करते हैं।' कहते-कहते शिवानी ने डॉली के कंधे पर अपना सिर रख दिया और बोली- 'जानती है आज सुबह क्या कह रहे थे?
' 'क्या?'
'कहते थे डॉली जैसी कोई लड़की मेरे जीवन में आती तो यह घर स्वर्ग बन जाता।'
डॉली यह सुनकर चौंकी नहीं। राज की भावनाओं को वह समझती थी। राज की आंखों में जो मौन प्रस्ताव था-वह भी उससे छुपा न था। उसे यों विचारमग्न देखकर
शिवानी फिर बोली- 'क्या सोचने लगी?'
'सोचती हूं-उनकी पत्नी ज्योति तो मुझसे अधिक सुंदर थी।'
'हां।'
‘फिर यह घर स्वर्ग क्यों न बना?'
'भैया को इसी बात का तो दु:ख है। वो आज भी यह सोचकर पछताते हैं कि उन्होंने ज्योति को समझने में इतनी बड़ी भूल क्यों की।'
डॉली ने इस विषय को आगे न बढ़ाया। विषय को बदलकर वह बोली 'तू तो घर ही रहेगी न?'
'क्यों?'
'मैं कहीं जा रही हूं।'
'रामगढ़?'
'ऊंहु-रामगढ़ का नाम न ले।'
'फिर?'
'नौकरी की तलाश में।'
'किन्तु भैया ने तो...।'
'वो अपने ढंग से प्रयास करेंगे और मैं अपने ढंग से।'
'कब लौटेगी?'
'संध्या से पहले लौट आऊंगी।'
'मैं भी चलूं?'
'तू क्या करेगी?'
'अकेली जाएगी। कहीं किसी की नजर लग गई तो?'
'नजर तो तुझे भी लग सकती है।'
'मैं इतनी सुंदर कहां।'
'सुंदरता अपनी नहीं देखने वाले की आंखों में होती है।' डॉली ने कहा। उसने ब्रुश रख दिया और मुड़कर बोली- 'किसी दिन पूछना किसी से, लेकिन सुन! पूछते-पूछते दिल न दे बैठना।'
'क्या होगा?'
'रोग लगा लेगी जीवन भर का। दिन में चैन न मिलेगा और रातों में नींद न आएगी।'
'अच्छा!' शिवानी ने शरारत से मुस्कुराकर कहा
'तो इसीलिए तू रात-रातभर करवटें बदलती है। किसी को दिल दे बैठी है क्या?'
'ना बाबा! मैं दिल-विल के चक्कर में कभी नहीं पड़ती और यदि पड़ती भी तो इतना अवसर ही न मिला। पूरे दिन तो घर में कैद रहती थी।'
'किन्तु यहां तो पूरी आजादी है, बना ले किसी को अपना।'
'नहीं अभी नहीं।
'फिर कब?'
'वर्ष-दो वर्ष बाद।'
'बूढ़ी होने पर?' शिवानी ने पूछा और हंस पड़ी।
'पगली! बुढ़ापे का प्यार जवानी के प्यार से अधिक मधुर होता है। अच्छा-अब मैं चलूं?'
'देख जल्दी लौट आना।'
'प्रॉमिस।' डॉली ने कहा और उसी क्षण शिवानी ने उसका कपोल चूम लिया।
'शरारती कहीं की।' डॉली बोली।
शिवानी खिलखिलाकर हंस पड़ी।
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