RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
डॉली अभी न लौटी थी। राज एवं शिवानी कमरे में बैठे आज की डाक देख रहे थे। मेज पर बीसों लिफाफे फैले पड़े थे और ये सभी
अखबार के दफ्तर से आए थे।
शिवानी बड़े ध्यान से लिफाफों में रखी तस्वीरें देख रही थी जबकि राज की नजरें । वॉल-क्लॉक की सुइयों पर टिकी थीं। संध्या के छह बज चुके थे और डॉली अभी तक न आई थी।
एकाएक राज ने अपनी व्हील चेयर के पहिए घुमाए और खिड़की के समीप आ गया।
तभी एक तस्वीर को देखते-देखते शिवानी ने उसे संबोधित किया- 'भैया!' 'यह आगरे वाला लिफाफा देखा आपने?'
'नहीं-अभी नहीं।'
'लड़की का नाम लता है। आयु अट्ठारह वर्ष और नयन-नक्श भी अच्छे हैं। परित्यकता है।'
राज ने इस बार कुछ न कहा और मूर्तिमान-सा खिड़की से बाहर देखता रहा।
शिवानी फिर बोली- 'मुझे तो यही लड़की पसंद है।'
'शिवा!' राज बोला। 'यह डॉली तुझे कैसी लगती है?'
'क्यों?' शिवानी ने पूछा और चौंककर राज को देखने लगी।
'यूं ही पूछ बैठा।'
'यूं ही पूछ बैठे।' शिवानी उठकर राज के समीप आई और बोली- 'अथवा डॉली आपको पसंद आ गई?'
'नहीं-ऐसी तो कोई बात नहीं शिवा! दरअसल मैं सोच रहा था मैं सोच रहा था कि बेचारी अनाथ है। कहीं कोई अपना नहीं। यदि उसे सहारा मिल जाता तो।'
'तो-यूं कहिए न कि आप डॉली से विवाह करना चाहते हैं?'
'इसमें बुराई भी क्या है?'
'हां, बुराई तो कुछ नहीं भैया! किन्तु दिक्कत यह है कि डॉली हमारे विषय में कुछ और सोच सकती है। वह यह भी सोच सकती है कि हम उसकी बेबसी का लाभ उठा रहे हैं।'
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