RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'इसमें बेबसी कैसी? आखिरकार एक-न-एक दिन तो उसे किसी के साथ बंधना ही है और जब वह हमारे घर रहती है तो यह उत्तरदायित्व भी हमें ही निभाना है। हां यदि इस संबंध में तेरी अपनी मर्जी न हो तो।'
'नहीं भैया! डॉली तो मुझे भी पसंद है।'
'तो फिर किसी दिन टटोलकर देख न उसका हृदय।'
'देखूगी भैया!' शिवानी ने कहा और उसी समय अंदर आती डॉली को देखकर वह राज से बोली- 'लीजिए भैया! शैतान की नानी को याद करो और नानी हाजिर।' कहकर वह हंस पड़ी।
राज अपनी चेयर घुमाकर डॉली को देखने लगा।
गर्मी के कारण डॉली के मस्तक पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। उसने शिवानी की बात के उत्तर में भी कुछ न कहा और बैठकर अपना पसीना पोंछने लगी।
यह देखकर शिवानी उसके समीप आकर बैठ गई और बोली- 'लगता है बहुत थक गई है?'
'हां।'
'कहां-कहां गई थी?'
'तीन-चार जगह।'
'कहीं बात बनी?'
'नहीं।' डॉली ने धीरे से कहा।
उसी समय राज बोला- 'शिवा! यह बात शिष्टाचार के विरुद्ध है। कोई दिन भर का हारा-थका घर आए तो पहले उससे चाय-पानी के विषय में पूछा जाता है।'
'सॉरी! यह बात तो मैं भूल ही गई थी।' इतना कहकर शिवानी उठी और डॉली के लिए पानी ले आई।
डॉली पानी पी चुकी तो शिवानी ने उससे पूछा 'अब यह बता-ठंडा पिएगी अथवा गर्म?'
'नहीं-अभी मन नहीं। सर में दर्द है इसलिए थोड़ी देर आराम करूंगी।' डॉली ने एक ही सांस में कहा और उठकर दूसरे कमरे में चली गई।
राज एवं शिवानी उसे आश्चर्य से जाते देखते रहे। फिर शिवानी ने राज से कहा- 'भैया! यह लड़की तो मेरे लिए कभी-कभी बहुत बड़ी पहेली बन जाती है।'
'वह क्यों?'
'कभी तो इतनी खुश रहेगी-मानो संसार-भर की खुशी मिल गई हो और कभी इतनी उदास कि पूछिए मत।'
'शिवा! कुछ लोगों को समझना आसान नहीं होता। डॉली ने वैसे भी अपने जीवन में हजारों पीड़ाएं झेली हैं। हां, एक बात याद आई। डॉली जब बाहर जा रही थी तो क्या तूने उसे कुछ रुपए भी दिए थे?'
'क्यों?'
'बस का किराया और चाय वगैरहा का खर्च?'
'नहीं तो।'
'बस, इसीलिए उदास है तेरी सहेली। बेचारी पूरे दिन पैदल घूमती रही। क्या सोचा होगा उसने? यही न कि हमने उसे पराया समझा।'
'भैया! मैंने वास्तव में यह न सोचा था। मैं तो भूल ही गई थी कि जब वह यहां आई थी तो उसके पास एक भी पैसा न था। मैं उससे क्षमा मांगती हूं।' इतना कहकर शिवानी बाहर चली गई।
राज अपनी व्हील चेयर बरामदे में ले आया।
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