RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'आने दे-मुझे तो तुझ पर प्यार आ रहा है।' शिवानी ने कहा और इसके साथ ही उसने डॉली पर झुककर उसके कपोल पर अपने होंठ रख दिए।
डॉली ने उसकी वेणी पकड़ ली और बोली- 'ठहर तो, आज मैं तेरी शैतानी निकालती हूं।'
'अच्छा बाबा! अब माफ कर।'
'डॉली ने उसकी वेणी छोड़ दी। शिवानी खिलखिलाकर हंस पड़ी।
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कपूर साहब ने फाइल बंद कर दी। आंखों पर चढ़ी ऐनक को दुरुस्त किया और डॉली से बोले 'देखिए, आप मेरी बात को समझने की कोशिश नहीं कर रही हैं। यह कोर्ट है और यहां कोई भी काम पैसे के बिना नहीं होता। आप पैसे का प्रबंध कर लीजिए-फिर मुझे आपका मुकदमा लड़ने में कोई दिक्कत नहीं।'
'लेकिन अंकल! मैंने आपसे कहा ना।'
'डॉली जी! हमारे पेशे में उधार नहीं चलता। अब आप जा सकती हैं।' इतना कहकर कपूर साहब फिर उसी फाइल के पन्ने उलटने लगे।
डॉली की विवशता आंसुओं में बदल गई किन्तु उसने अपने आंसू बहाए नहीं और कपूर साहब के ऑफिस से बाहर आ गई। इस समय उसके चेहरे पर विचारों का बवंडर था और उलझनों के कारण मस्तिष्क की रगें जैसे एक-दूसरे से टकरा-टकराकर टूट रही थीं। उसने तो सोचा था कि उसे नौकरी मिल जाएगी और इस प्रकार उसे मुकदमा लड़ने में कोई दिक्कत न होगी किन्तु शायद नौकरी मिलना इतना आसान न था।
डॉली समझ न पा रही थी कि ऐसी स्थिति में वह क्या करे? कहां से लाए पैसा? किस प्रकार मुकदमा लड़े जय का? किस प्रकार बचाए । अपने प्यार को? डॉली का दिल चाह रहा था कि वह अपनी बेबसी पर फूट-फूटकर रोए। इतना रोए कि उसके अंतर्मन में एक भी पीड़ा न रहे। कोर्ट से निकलकर भी वह यही सब सोचती रही और निरुद्देश्य-सी आगे बढ़ती रही।
सहसा पीछे से आता एक ऑटोरिक्शा उसके निकट आकर रुका। डॉली चौंककर एक ओर हट गई। तभी किसी ने उसे संबोधित किया- 'सुनिए!'
डॉली रुक गई। मुड़कर देखा-यह राज था जो ऑटोरिक्शा में बैठा उसे पुकार रहा था। डॉली ने पलभर के लिए कुछ सोचा और राज के निकट आकर बोली- 'ओह, आप!'
'कहां से आ रही हैं?'
डॉली को झूठ कहना पड़ा- 'यहीं कोर्ट रोड पर एक कंपनी है।'
'समझा-सान्याल प्राइवेट लिमिटेड होगी?'
'शायद।'
'बात बनी?'
'नहीं।'
'फिर आप एक काम कीजिए।'
'वह क्या?'
'मेरे ऑफिस चलिए।'
'वहां क्यों?' डॉली ने चौंककर पूछा।
'मैंने सोचा है-इधर-उधर भटकने से तो अच्छा है कि आप वहीं काम करें। इस प्रकार आपका मन भी लगा रहेगा और आपको नौकरी भी मिल जाएगी।' राज बोला।
'शिवानी क्या कहती है?'
'शिवा भी यही चाहती है।'
'थोड़ा प्रयास और कर लूं उसके पश्चात देख लूंगी। आप तो ऑफिस जा रहे होंगे?'
'हां, किन्तु आप कहें तो।'
'नहीं, अभी मैं घर न जाऊंगी।'
'शाम तो होने को है।'
'अभी कहां-चार ही तो बजे हैं।'
'फिर भी आपको जल्दी घर पहुंचना चाहिए। आकाश में घटाएं घिरी हैं, वर्षा की संभावना है।'
'जी!' डॉली ने केवल इतना ही कहा और आगे बढ़ गई। राज का ऑटोरिक्शा वहां कब तक रुका-यह उसने जानने की कोशिश न की।
चलते-चलते उसके सामने फिर वही उलझनें आ गईं। और जब उलझनें किसी प्रकार भी न सुलझीं तो उसने अपने आपसे प्रश्न किया- 'तो क्या उसे राज का प्रस्ताव मान लेना चाहिए? विवाह कर लेना चाहिए उससे?' 'किन्तु।' हृदय ने कहा- 'यह तो जय के साथ विश्वासघात होगा। क्या तुम्हारे अंदर इतना साहस है कि उसे धोखा दे सको।' 'जय को बचाने का अन्य कोई उपाय भी तो नहीं। कपूर साहब को मुकदमे से पहले ही दो हजार रुपए चाहिए। इतने रुपयों का प्रबंध मैं कहां से करूंगी। और यदि रुपयों का प्रबंध न हुआ तो।'
इस प्रकार डॉली का हृदय भी उलझकर रह गया। तभी एकाएक बादल गरजे-दूर कहीं बिजली गिरी और वर्षा आरंभ हो गई।
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