RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
न कोई बारात सजी, न कहीं शहनाई बजी और दो दिन पश्चात ही डॉली दुल्हन बन गई। केवल फेरों की रस्म अदा हुई थी और राज के दोस्तों ने वर-वधु को मुबारकबाद दी थी। इस अवसर पर राज के मित्रों ने कहकहे भी लगाए थे और तरह-तरह के तोहफे भी दिए थे किन्तु इनमें से शायद ही किसी ने डॉली की विवशता और पीड़ा को समझा हो।
संध्या होते-होते राज के मित्र एवं शिवानी की सहेलियां विदा हो गईं। तभी शिवानी ने कमरे में आकर एक डिब्बा डॉली के हाथों में थमा दिया और कहा- 'भाभी! यह तोहफा मम्मी की ओर से।'
डॉली ने कुछ न पूछा। केवल प्रश्नवाचक नजरों से डिब्बे को देखती रही। शिवानी फिर बोली 'अपने अंतिम क्षणों में मम्मी ने यह डिब्बा मुझे दिया था। कहा था-राज दूसरा विवाह करे तो यह जेवर बहू को दे देना। वैसे तो इन जेवरों पर ज्योति भाभी का ही अधिकार था, किन्तु क्योंकि भैया ने प्रेम विवाह किया था और ज्योति का घर की बहू बनना उन्हें बिलकुल पसंद न था अतः यह जेवर ज्योति को न मिल पाए थे किन्तु आज इन पर ज्योति का नहीं तुम्हारा अधिकार है। संभालकर रखना।' डॉली ने फिर भी कुछ न कहा किन्तु जेवरों का डिब्बा देखकर एकाएक एक विचार उसके मस्तिष्क में कौंध गया। उसने सोचा, यदि उसे राज से कुछ न मिला तो वह इन जेवरों को बेचकर जय का मुकदमा लड़ लेगी। तभी शिवानी ने उसके हाथों से डिब्बा लेकर मेज पर रखा और खोल दिया।
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डॉली की आंखें चुंधिया गईं। डिब्बे के अंदर पुराने ढंग के कई जेवर जगमगा रहे थे।
'अच्छे हैं न भाभी?' शिवानी ने पूछा।
'शिवा!' डॉली बोली।
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'तू मेरा नाम नहीं ले सकती क्या?'
'ऊंहु! अब यह सब ठीक नहीं। अब तुम लक्ष्मी हो इस घर की।'
'लेकिन तेरे लिए तो...।'
'समय के साथ रिश्तों का बदलना जरूरी होता है।' इतना कहकर शिवानी ने डिब्बा बंद कर दिया और बोली- 'अब चलूं। तुम्हारा कमरा भी ठीक करना है। नहीं तो कहेगी कि शिवा ने मेरे लिए कुछ न किया और हां एक बात और सुन लो। अभी कुछ समय तक तुम घर के किसी भी काम को हाथ न लगाओगी।'
'क्यों?'
'यह हमारे वंश की परंपरा है। ठीक! अब मैं चलती हूं।' कहते हुए शिवानी ने डॉली के कपोल का एक चुंबन लिया और हंसते हुए कमरे से बाहर चली गई।
डॉली कुछ क्षणों तक तो बाहर की दिशा में देखती रही और फिर उसकी नजरें सामने रखे डिब्बे पर जम गईं। डॉली के विचार में जेवरों की कीमत पचास हजार रुपए से कम न होगी। सोचते हुए उसने डिब्बे की ओर हाथ बढ़ाया किन्तु तभी शिवानी ने अंदर प्रवेश किया और उसे आते देखकर डॉली ने शीघ्रता से हाथ पीछे खींच लिया।
शिवानी के हाथ में एक लिफाफा था। समीप आकर उसने लिफाफा डॉली को थमाया और बोली- 'तुम्हारा यह तोहफा तो रह ही गया भाभी!
' 'क्या है इसमें?'
'वे रुपए जो भैया के मित्रों ने दिए हैं। ढाई हजार होंगे।' डॉली को लिफाफा पाकर खुशी हुई। उसे याद आया, कपूर साहब ने उस फीस के रूप में दो हजार रुपए मांगे थे। डॉली ने सोचा 'इसमें से दो हजार वह कपूर साहब को दे देगी और शेष अन्य किसी काम आ जाएंगे।'
'कमाल है भाभी! तुम तो न जाने किन सोचों में गुम हो गईं।' एकाएक शिवानी ने कहा और डॉली पत्ते की भांति कांप गई। चेहरे पर ऐसे भाव फैल गए जैसे उसे चोरी करते पकड़ लिया गया हो।
'भाभी!' शिवानी फिर बोली।
'खाना तो अभी खाएंगी न?'
'नहीं शिवा! मन नहीं है।'
'मन को क्या हुआ?'
'यह तो वही जाने।'
तभी राज ने शिवानी को पुकारा और उसे बाहर जाना पड़ा। डॉली हाथ में थमे लिफाफे को देखती रही।
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