RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
राज और शीतल पैदल ही वहाँ से चल दिए। शाम के 7 बज चुके थे,दोनो एक-दूसरे से कुछ भी नही बोल रहे थे उन दोनों के बीच खामोशी थी। शीतल को अफ़सोस था की उसकी वजह से किसी और की भी ज़िंदगी बर्बाद हो गयी। वो राज से कुछ बोलना चाहती थी पर राज को कोई बात नही करनी थी,वो चुप-चाप चला जा रहा था। उन दोनों ने रात रेलवे स्टेशन पर बिताने का फ़ैसला किया उन्हें स्टेशन पहुचते-पहुचते रात के 9 बज गये थे। दोनों बहुत ज़्यादा थक गये थे। शीतल के बालों की लटें पसीने की वजह से उसके गालों से चिपक गयीं थीं जो उसकी सुंदरता को और बढ़ा रहीं थी। इतनी अस्त-व्यस्त हालत में भी वो बहुत सुंदर लग रही थी। वहाँ पर भीड़ बहुत कम थी। दोनों एक बेंच पर बैठ गये। शीतल राज से सटकर बैठी लेकिन राज उससे थोड़ा दूर हट गया। शीतल,राज से बात करना चाहती थी लेकिन राज खामोश बैठा रहा। धीरे-धीरे भीड़ और कम होने लगी थी 5-6 लोग ही बचे थे वो भी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे। शीतल ने अपना हाथ राज के हाथ पर रख दिया,राज ने शीतल की ओर देखा और फिर अपने हाथ को हटा लिया,उसकी इस हरकत पर शीतल धीरे से मुस्कुरा दी।
“आपका कोई दोस्त नही है जिससे हमें कोई मदद मिल सके,”शीतल ने पूछा।
राज उसको कुछ देर तक देखता रहा और बिना कुछ कहे नज़रें हटा लीं। कुछ देर तक कोई कुछ नही बोला। रात के 11 बज गये थे दोनों को भूख भी लगी थी।
“मैं बाहर से कुछ खाने के लिए लेकर आता हूँ। इस प्लॅटफॉर्म पर तो कोई दुकान भी नही है,”राज ने कहा और वो वहाँ से चला गया।
शीतल वहीं बैठी रही थोड़ी देर में पूरा प्लॅटफॉर्म खाली हो गया उसे वहाँ कोई भी नही दिख रहा था।
शीतल को बहुत डर लग रहा था,उसे राज का इंतज़ार करते हुए 1 घंटे से ज़्यादा हो गया था। थोड़ी देर बाद उसे कोई आता हुआ दिखाई दिया । उसे लगा की राज है वो शीतल की ओर ही आ रहा था। तोड़ा पास आया तो शीतल को उसका चेहरा साफ दिखाई देने लगा,वो राज नही था वो शीतल के बगल आकर बैठ गया,शीतल दूसरी ओर देखने लगी।
“अकेली हो,”उस लड़के ने पूछा।
शीतल कुछ नही बोली।
वो शीतल से सटकर बैठ गया। शीतल तुरंत उठ खड़ी हुई और वहाँ से चलने लगी। उसने महसूस किया की वो भी उसके पीछे-पीछे आ रहा है,वो और तेज़ी से चलने लगी। डर के कारण उसने एक बार भी पीछे मुड़ कर नही देखा। उसे अहसास भी नही हुआ की वो स्टेशन से काफ़ी दूर आ गयी थी। जब मुङ कर पीछे देखा तो पाया की पीछे कोई नही था उसमें वापस लौटने की हिम्मत नही थी लेकिन राज के लिए वो वापस स्टेशन की ओर लौट गयी। स्टेशन पर कोई नही था वो फिर से उसी बेंच पर बैठ कर राज का इंतज़ार करने लगी। आधा घंटा हो गया लेकिन राज नही आया। शीतल उसी लड़के के बारे में सोच कर रोने लगी पर वहाँ ना कोई उसका रोने की आवाज़ सुनने वाला था ना , ही उसके आँसू पोछने वाला। थोड़ी देर में राज वापस आ गया,लेकिन उसने भी शीतल से कुछ नही कहा और खाना उसके सामने रख दिया। राज को देखकर शीतल कमजोर पड़ गयी उसका रोना और तेज हो गया,वो चाहती थी राज उसे चुप कराए उसे अपने कंधे का सहारा दे लेकिन राज ने ऐसा कुछ भी नही किया उसने तो उससे कुछ बोला ही नही। थोड़ी देर में शीतल खुद ही चुप हो गयी। उसने खाना खाया और वहीं सो गयी। सुबह जब उसकी आँख खुली तो उस स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। राज पहले से ही जाग रहा था।
“तुम हाथ-मुँह धुल लो,हमें कोर्ट चलना है,”राज ने कहा।
“कोर्ट किसलिए?”शीतल ने पूछा।
“चलो,बाद में बताएँगे,”राज ने कहा।
कोर्ट जाने के रास्ते में शीतल ने राज से कहा-“आपने मुझे बताया नही की हम कोर्ट क्यों जा रहे हैं।”
“शादी करने के लिए,”राज ने कहा।
“शादी…। ,आप मुझ से शादी करेंगे?”शीतल ने पूछा।
“हां,मैं तुम्हारे साथ इस तरह नही रह सकता,”राज ने कहा।
“पर आप तो कहते थे की आप 27-28 साल से पहले शादी नही करेंगे,”शीतल ने कहा।
“तब हालात कुछ और थे आज कुछ और,”राज ने कहा।
शीतल चुप हो गयी।
“तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं?”राज ने पूछा।
“200 रुपये हैं,और आपके पास ?”
“500,तुम्हारे पास जो हैं वो मुझे दे दो।”
“शीतल ने पूरे रुपये राज को दे दिए।”
दोनो ने कोर्ट में शादी कर ली। जो रुपये थे उन लोगो के पास , वो भी खर्च हो गये थे। दोनों अब पति-पत्नी थे। दिन के 12 बज रहे थे और दोनों ने सुबह से कुछ भी नही खाया था।
“अभी हमें रहने के लिए कोई जगह ढूढ़नी है,”शीतल ने कहा।
“तुम अपने लिए कोई काम ढूँढ लो और मैं अपने लिए कोई काम ढूढ़ने जाता हूँ,”राज ने कहा।
“मैं किसी रूम का पता करती हूँ,काम तुम ढूढों………। मुझे भूख भी लगी है,”शीतल ने कहा।
“पैसे तो हैं नही………………… ये जो तुमने कान में बाली पहनी है सोने की है?”राज ने पूछा।
|