RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मेरे पास तुम्हारे फालतू कामों के लिए वक्त नही है और तुम जानती हो कि हमें रुपयों की कितनी ज़रूरत है फिर भी तुम इस तरह की बात कर रही हो,”राज ने कहा।
“पैसा ही सब कुछ नही होता। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, मुझ पर भी ध्यान दिया करो,” शीतल ने कहा।
“तो क्या करूँ,मैं तुम से प्यार नही करता ना ही मुझे तुमसे शादी करनी थी वो हालात ऐसे हो गये थे जो मुझे तुमसे शादी करनी पड़ी। तुम्हे जो करना हो वो करो रोना है तो रोओ,हँसना है तो हँसो,मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता,”राज ने कहा और घर से बाहर चला गया।
शीतल वहीं की वहीं खड़ी रही,उसके पैर वहीं जम गये,उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे। थोड़ी देर बाद उसने खुद ही अपने आँसू पोछे और तैयार होकर कॉल सेंटर चली गयी।
शाम को शीतल तो जल्दी आ गयी पर राज रोज़ की तरह देर से ही आया। शीतल उस समय पढ़ रही थी जब राज आया।
“आज कॉल सेंटर गयी थी?”राज ने पूछा।
“हाँ।”
“आज खाना क्या बनाया है?”राज ने फिर पूछा।
“कुछ नही।”
“राज कुछ नही बोला वो खुद ही खाना बनाने लगा।”
“मुझे चार दिन बाद लखनऊ जाना है,”शीतल ने कहा।
“किसलिए?”
“मेरा ssc का इंटरव्यू है,रिटन में मैं पास हो गयी हूँ,”शीतल ने कहा।
“अकेले चली जाओगी या फिर मुझे……?”
“आप भी साथ चलना।”
कुछ देर में राज ने खाना बना लिया,उसने अपना और शीतल का खाना एक प्लेट में लिया और शीतल के पास आकर बैठ गया।
“लो खाना खाओ,”राज ने कहा।
“मुझे नही खाना।”
“क्यों?”
“भूख नही है,”शीतल ने कहा।
“सुबह का गुस्सा अभी शांत नही हुआ,”राज ने कहा।
शीतल कुछ नही बोली,किताब बंद करके रख दी और लेट गयी।
राज ने भी शीतल से कुछ नही कहा,उसने खाना खाया और वो लेट कर सो गया।
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4 दिन बाद शीतल का इंटरव्यू था इसलिए वो कॉल सेंटर की जॉब छोड़कर घर पर इंटरव्यू की तैयारी करने लगी।
शीतल इंटरव्यू में पास हो गयी और उसे गवर्नमेंट जॉब मिल गयी। शुरुआत में 7000 रुपये महीने की पेमेंट थी। शीतल को जॉब करते 1 महीने हो गये और उसे पहली पेमेंट मिल गयी।
“तुम अब जल्दी आया करो,”शीतल ने कहा।
“क्यों ?”
“मैं अकेले घर में बोर हो जाती हूँ और अब तो पैसों की भी कोई दिक्कत नही है,”शीतल ने कहा।
“कोशिश करूँगा,वैसे तुम्हारे ऑफिस में कितने लोग काम करते हैं?”राज ने पूछा।
“बहुत लोग काम करते हैं पर मेरी उम्र की लड़कियाँ दो-तीन ही हैं और सब बहुत सीनियर हैं। एक-दो बहुत गंदे हैं मुझे बहुत बुरी नज़र से देखते हैं,”शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला।
“तुम इतना कम क्यों बोलते हो?”शीतल ने पूछा।
“थोड़ी बड़ी हो जाओ,तुम में बचपना बहुत है,”राज ने कहा।
शीतल हँस दी पर कुछ बोली नही। बहुत दिन बाद राज ने उससे इतनी प्यार से बोला था। उन्हे घर छोड़े 5 महीने हो गये थे लेकिन उनके बीच अब भी उतनी दूरियाँ थी जितनी की पहले।
राज घर जल्दी आने लगा,दोनों 7 बजे तक घर आ जाते थे। साथ में खाना बनाते और साथ में खाते पर एक-दूसरे से बात बहुत कम करते थे।
“कल मेरे ऑफिस की छुट्टी है,कहीं बाहर चलें,”शीतल ने कहा।
“नही मेरा मन नही है,”राज ने कहा।
शीतल का मन उदास हो गया। वो गुस्से से बोली-“तुम्हारा मन ही कब करता?”
“मुझे अभी बहस नही करनी है,”राज ने कहा।
“पर मुझे अभी बात करनी है,”शीतल ने कहा और वो रोने लगी।
राज ने कुछ नही कहा।
“माना की हमने शादी किसी मजबूरी में की लेकिन की तो,मैं तुम्हारी पत्नी हूँ तुम मुझ पर ध्यान क्यों नही देते,”शीतल ने कहा।
“मैं कोई फर्ज़ नही निभा सकता,”राज ने कहा।
“तो मुझ से शादी क्यों की?क्यों मुझे अपने साथ ले आए?छोड़ देते मुझे वहीं अकेला……………। तुम मुझ से सिर्फ़ इसलिए दूर रहते हो ताकि तुम मुझसे प्यार ना करने लगो जैसे मैं……,” शीतल बोलते –बोलते बिल्कुल चुप हो गयी।
“शीतल , तुम बच्चों की तरह ज़िद क्यों करती हो?”राज ने कहा।
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