RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मैं बच्ची ही हूँ , मुझ में बड़ों जैसी अक्ल नही है। मैंने एक ग़लती की घर छोड़ने की क्या उस के लिए मैं अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दूँ?” शीतल ने रोते हुए कहा।
“बाहर घूमने से क्या जिंदगी आबाद हो जाएगी?”राज ने कहा।
“आबाद नही पर मन तो हल्का हो जाएगा………………,इतने दिन से दिल पर जो बोझ है वो तो………………।” रोने की वजह से शीतल इसके आगे नही बोल सकी।
राज शीतल के पास आया और आँसू पोछे और उसे गले से लगा कर बच्चों की तरह चुप कराने लगा। राज ने पहली बार शीतल को इस तरह से छूआ था। शीतल कुछ नही बोली और कुछ देर में वो सो गयी।
सुबह शीतल राज से कुछ नही बोली। राज ही बोला “ कहीं चलना है।”
“नही,” शीतल ने कहा।
“सर्दी बहुत पड़ रही चलो कुछ सर्दी के कपड़े ले आते हैं,” राज ने कहा।
शीतल फिर भी कुछ नही बोली।
तुम कुछ बोल क्यों नही रही,बाद में कहोगी की मैं कुछ नही बोलता, राज ने कहा।
“तुम जाओ मेरी तबियत ठीक नही है,” शीतल ने कहा।
“क्या हुआ तुम्हें…………? झूठ बोल रही हो……………गुस्सा हो मुझसे।”
“कुछ नही हल्का बुखार है। तुम जाओ और मेरे लिए भी कपड़े लेते आना। मैं गुस्सा नही हूँ,” शीतल ने कहा और हल्का सा मुस्कुरा दी।
राज चला गया,शीतल दिन भर घर पर ही रही। रात के 8 बज गये थे लेकिन राज अभी तक नही आया था। शीतल उसका इंतज़ार करते-करते सो गयी। करीब 10 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया शीतल ने दरवाजा खोला तो बाहर राज नही था कोई और था।
“ये राज का घर है,”उस आदमी ने पूछा।
“हाँ,पर आप कौन?”शीतल ने पूछा।
“राज मेरे यहाँ काम करता है। उसका एक्सिडेंट हो गया है,”उस आदमी ने कहा।
“क्या?किस हॉस्पिटल में एडमिट है वो?”शीतल ने पूछा।
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